बुधवार, 21 अगस्त 2013

67. मोती झरना की यात्रा: चित्रकथा


यूँ तो सावन के अन्तिम सोमवार को यहाँ भीड़ जुटती है, पर हमलोग एक दिन पहले रविवार- 18 अगस्त'2013- को वहाँ से हो आये...

चूँकि 'धुलियान पैसेन्जर' रद्द थी, इसलिए बरहरवा स्टेशन के एक प्लेटफार्म पर 'गया पैसेन्जर' का इन्तजार करते हम. 

तीनपहाड़ के तीन पहाड़ों में से एक पहाड़.
कल्याणचक स्टेशन पर 'क्रॉसिंग' के लिए ट्रेन कुछ देर खड़ी रही. यहाँ हमने घर से लाया नाश्ता भी किया और "चॉप" भी खरीदकर खाये. 


बदली वाला दिन था... मौसम सुहाना हो रहा था... 

सफर अच्छा ही रहा

'धनरोपनी' का काम करीब-करीब पूरा हो चुका है.

तालाब की दूसरी तरफ एक झोपड़ी

महाराजपुर में गंगाजी का जलस्तर बढ़ा हुआ है- यहीं से जल लिया
साहेबगंज जा रहे एक फिटफिटी या जुगाड़- यहाँ भुट्भुटिया- ने हमें उस मोड़ पर उतारा, जहाँ से मोती झरना का  रास्ता अलग होता है. 

मोती झरना का प्रवेशद्वार

3 किलोमीटर का पैदल सफर शुरु...

सफर जारी है...

दाहिने खेतों की हरियाली...

सामने पहाड़..

धान रोपती महिलायें...

हल चलाता किसान..

यहाँ झरने की झलक दिखी- हालाँकि कि तस्वीर में नहीं दीखेगी.

रास्ते के बगल में एक सुन्दर मकान.

बस, अब आधा रास्ता बचा है.

सोते का पानी पीकर देखा जाय..

'छोटी' क्यों पीछे रहती.

झरना फिर दीखा-

थोड़ी दूर और...

यह रहा मोती झरना!

झरना दीखते ही फोटो खिंचवाना पड़ता है

चलो, तुमदोनों का भी फोटो हो जाय.

एक और प्रवेशद्वार

यह झरना "दो-मंजिला" है- ध्यान से देखिये.

पहुँच ही गये.

झरने का दूसरा हिस्सा ही दीखता है- ऊपर वाला हिस्सा छुप जाता है.

झरने के बहते पानी को रोककर नहाने के लिए दो तालाब बना दिये गये हैं.

पीछे जो मन्दिर-सा दीख रहा है, वह गुफा का प्रवेशद्वार है.

हम भी क्यों पीछे रहते- 

आखिर पुराने 'तैराक' ठहरे- वायुसेना के! 

उसी गुफा के अन्दर शिवलिंग स्थापित है- यहीं महाराजपुर से लाया गया गंगाजल चढ़ाया गया. 

झरने के सामने.

झरने के सामने.

एकबार फिर पानी में-

मन नहीं भरा.

अब बस करो.

अच्छा, थोड़ी देर और...

वापसी... एक इमली के पेड़ के नीचे.

सुस्ता लिया जाय. (छोटी, अभिमन्यु, शिवम)

खेतों में काम जारी है.

गंगाजी का जलस्तर वास्तव में बढ़ा हुआ है.

दियारा का काफी हिस्सा बाढ़ की चपेट में है

एकबार फिर गंगाजी के पास. 

यही है महाराजपुर स्टेशन, जहाँ से मोतीझरना जाते हैं. वैसे, साहेबगंज से मात्र 15 किलोमीटर पड़ेगा

बरगद के पेड़ के नीचे- जिसपर कि प्रवासी बगुले शोरगुल कर रहे थे- एक झोपड़ीनुमा होटल में पत्तल में दाल-भात-सब्जी-भुजिया खाते हुए.

होटल की 'खिड़की' पर छोटी. 

वापसी में अबिमन्यु मोबाइल से चिपके हुए, शिवम बाहर देखते हुए, छोटी सोते हुए. 





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें