रविवार, 23 जनवरी 2011

हिन्दी हमारी- 3


फेसबुक पर श्री चन्दन कुमार मिश्र जी शुद्ध हिन्दी पर काफी कुछ लिखते हैं. 
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मंगलवार, 18 जनवरी 2011

हिन्दी हमारी- 2

      आम तौर पर हम 'व', 'एवं', 'तथा' और 'और' का प्रयोग अपनी पसन्द के अनुसार जहाँ मन वहाँ कर लेते हैं, जबकि इसके भी कुछ कायदे-कानून हैं आईये, जानते हैं:-
·         'व' का प्रयोग विपरीतार्थक शब्दों को जोड़ने के लिए किया जाता है- जैसे, "गुरू व शिष्य"
·         'एवं' या 'एवम्' का प्रयोग समानधर्मी शब्दों को जोड़ने में किया जाता है- जैसे, "सभ्यता एवं संस्कृति"।
·         'तथा' का प्रयोग विजातीय शब्द को जोड़ने में किया जाता है- जैसे, "टेबल, कुर्सी, मेज तथा टी.वी." ।
·         'और' का प्रयोग सजातीय शब्द को जोड़ने में किया जाता है- जैसे, "टेबल, कुर्सी, मेज और आलमारी"।
·         'और' का प्रयोग दो वाक्याशों को भी जोड़ने में भी किया जाता है- जैसे, "हिन्दी भारत की एक प्रमुख भाषा है और यह भारत सरकार की राजभाषा भी है।" 

शनिवार, 15 जनवरी 2011

हिन्दी हमारी




   हिन्दी में बिन्दी का प्रयोग इतना बढ़ गया है कि बेचारी ‘हिन्दी’ भी अब ‘हिंदी’ बन गयी है
      जहाँ अनुनासिक (नाक से) उच्चारण की आवश्यकता होती है, वहाँ बिन्दी का प्रयोग तो होता ही है, जैसे- संयम, कंस, हिंस्त्र इत्यादि। मगर लेखन और मुद्रण की कठिनाईयों को देखते हुए क, च, ट, त, प- वर्ग में भी बिन्दी के प्रयोग को- शॉर्टकट के रूप में- मान्यता प्रदान की गयी थी, जहाँ कि पंचमाक्षर (ङ, ञ, ण, न, म) अपने ही वर्ग के अक्षरों के साथ संयुक्त होते हैं।
अब तो स्थिति यह है कि आधिकारिक रुप से बिन्दी वाले शब्दों का ही प्रयोग करने के लिए कहा जाता है- शब्दों को उनके मूल रूप में लिखने का प्रचलन बहुत कम हो गया है। बहुतों को यह सही लगेगा, तो बहुतों को इससे दुःख भी है। (मैं दुःखी होने वालों में से हूँ।) ऐसा लगता है, शब्द अपना नैसर्गिक सौन्दर्य तथा लालित्य खो रहे हैं।
इस आलेख में मैं आपसे यह अपील नहीं करने जा रहा हूँ कि कृपया प्रत्येक शब्द को उनके मूल रूप में लिखें। (मैं खुद ‘पञ्चमाक्षर’ के स्थान पर ‘पंचमाक्षर’ लिख रहा हूँ।) बल्कि मेरा सिर्फ इतना अनुरोध है कि कृपया इतना हमेशा ध्यान में रखें कि आखिर किस पंचमाक्षर के बदले में आप बिन्दी का प्रयोग कर रहे हैं, और कुछ शब्दों को उनके मूल रूप में ही लिखें। विशेषकर, ट, त और प वर्ग के मामले में। (कोई लाख सरकारी निर्देश दिखलाये, मगर इस प्रकार के लेखन को एक जुनून की तरह अपनाये रखें!)
आईये, जानते हैं कि किस प्रकार पंचमाक्षरों के बदले में बिन्दी का प्रयोग बढ़ता जा रहा है:-       
       
·        -वर्ग के पहले चार अक्षरोंके साथ जब इसका पंचमाक्षर  संयुक्त होता हैतब ङ् (आधा के बदले में बिन्दीका प्रयोग होता है
उदाहरणअङ्क ¼vš½ अंकशङ्ख ¼'k™½ = शंखगङ्गा ¼x›k½ गंगासङ्घ = संघ
·        -वर्ग के पहले चार अक्षरोंके साथ जब इसका पंचमाक्षर  संयुक्त होता हैतब ञ् (आधा के बदले में बिन्दीका प्रयोग होता है
उदाहरणचञ्चल = चंचलअञ्जन = अंजन। (ञ्+छ तथा ञ्+झ का कोई उदाहरण मुझे नहीं सूझ रहा।)  
·        -वर्ग के पहले चार अक्षरोंके साथ जब इसका पंचमाक्षर  संयुक्त होता हैतब ण् (आधा के बदले में बिन्दीका प्रयोग होता है
उदाहरणघण्टी = घंटीकण्ठ = कंठठण्ड = ठंड। (ण्+ढ का उदाहरण नहीं मिल रहा।)
·        -वर्ग के पहले चार अक्षरोंके साथ जब इसका पंचमाक्षर  संयुक्त होता हैतब न् (आधा के बदले में बिन्दीका प्रयोग होता है
उदाहरणदन्त = दंतग्रन्थ = ग्रंथहिन्दी = हिंदीगन्ध = गंध
·        -वर्ग के पहले चार अक्षरोंके साथ जब इसका पंचमाक्षर  संयुक्त होता हैतब म् (आधा के बदले में बिन्दीका प्रयोग होता है
उदाहरणचम्पा = चंपागुम्फ = गुंफअम्बा = अंबाआरम्भ = आरंभ।  
***
·        उपर्युक्त नियम संस्कृतनिष्ठ शब्दों पर लागू होते हैं। अन्य शब्दों पर बिन्दी का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा सकता है। (मैं तो जबर्दस्ती ‘इंटरनेट’ को ‘इण्टरनेट’ लिखता हूँ।)
·        जहाँ पंचमाक्षर अपने वर्ग के चार अक्षरों के अलावे किसी और अक्षर के साथ संयुक्त हो रहा हो, वहाँ बिन्दी के प्रयोग की अनुमति नहीं है। जैसे- वाङ्मय, अन्य, उन्मुख इत्यादि।
·        पंचम वर्ण जब दुबारा आये, तब भी बिन्दी का प्रयोग नहीं होता- अन्न, सम्मेलन, सम्मति इत्यादि।  

बुधवार, 5 जनवरी 2011

“क्षैतन्जी”

बचपन में जैसे ही हम कभी छींकते थे, आस-पास कहीं खड़ी हमारी बुआ या चाची या माँ बोल पड़ती थीं- क्षैतन्जी!
हम बच्चे कुछ समझते नहीं थे.
कुछ बड़े होने पर हमने पूछना शुरु किया- यह क्षैतन्जीक्या है?
जवाब मिलता- कहना चाहिए.
कुछ और बड़े होने पर हमने बहस करना शुरु कर दिया- क्यों कहना चाहिए? नहीं कहने से क्या होगा?
हमारी चाची या बुआ या माँ के पास इनका कोई जवाब नहीं होता था.
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वर्षों बीत जाते हैं.
हम कॉलेज में हैं.
हिन्दी के प्राध्यापक ‘अपभ्रंश’ के बारे में बता रहे हैं.
वे दो उदाहरण देते हैं- 1. आनामासिधन और 2. क्षैतन्जी
बच्चों का हाथ पकड़कर पहली बार स्लेट पर जो शब्द लिखवा जाता है, वह है- आनामासिधन. (हालाँकि हमारे इलाके में इसका प्रचलन नहीं है. वैसे, बँगला में इस अनुष्ठान को ‘हाते-खड़ी’ (हाथ में खड़िया) कहते हैं.)
हिन्दी के प्राध्यापक बताते हैं कि ऊँ नमः सिद्धम का अपभ्रंश है- आनामासिधन.
इसी प्रकार, शतम् जीवः का अपभ्रंश है- क्षैतन्जी.
हमें एक प्रश्न का उत्तर मिल जाता है कि क्षैतन्जीवास्तव में एक आशीर्वाद है- सौ साल जीओ.
मगर दूसरा प्रश्न अब भी अनुत्तरित है, कि छींकने के बाद ही यह आशीर्वाद क्यों?
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फिर वर्षों बीत जाते हैं.
कुछ रोज पहले अखबार में एक ‘बॉक्स’ समाचार पर नजर पड़ती है, जिसका आशय है- छींकते वक्त क्षण भर (Fraction of Second) के लिए हमारे हृदय की धड़कन रुक जाती है!
दूसरे प्रश्न का भी उत्तर मिल गया.
जब भी कोई- खासकर एक बच्चा- छींकता है, तो वास्तव में वह मरकर जीता है! इसलिए घर के बड़ों के मुँह से अनायास ही निकल पड़ता था- सौ साल जीओ बच्चे, तुम अभी-अभी मृत्यु के मुँह से लौट कर आये हो.
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