एक फिल्म आयी थी- 'कल आज और कल'। तीन पीढ़ियों पर आधारित। बुजुर्ग पीढ़ी का
प्रतिनिधित्व पृथ्वीराज कपूर कर रहे थे, अधेड़ पीढ़ी का राज कपूर और
युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व रणधीर कपूर कर रहे थे। तीनों वास्तविक जीवन में भी दादा, पिता और पुत्र थे। फिल्म की कहानी में राज कपूर की स्थिति को 'सैण्डविच' की तरह दिखाया गया था। एक तरफ उन्हें अपने पिता
के पुराने ख्यालों का भी सम्मान करना था, तो दूसरी तरफ अपने युवा
बेटे के आजाद ख्यालों का भी सम्मान करना था।
अब समय बदल गया है। अब 'पुराने ख्यालों'-जैसी बातें समाज में नजर नहीं आतीं.
खैर, फिल्म की बात हमें इसलिए
याद आयी कि आज होली के अवसर पर एक एक ऐसा विडियो बन गया, जिसमें तीन पीढ़ियाँ एक साथ आनन्द मना रही है। आम तौर पर ऐसे घरेलू
विडियो सोशल-मीडिया पर साझा नहीं किये जाते, मगर दो सन्देशों के साथ
हम इन्हें साझा करना चाहेंगे।
पहला सन्देश। हर इन्सान के जीवन में दुःख है, तनाव है, परेशानियाँ हैं। ऐसे में ये त्यौहार ही हैं, जो कुछ पलों के लिए सारे दुःख-दर्द-तनाव से हमें मुक्त करते हैं।
तो जब भी कोई बुद्धीजीवि कोई त्यौहार न मनाने की सलाह दे, तो उनकी बातों को एक कान से सुनिये और दूसरे कान से निकाल
दीजिये... त्यौहार मनाते रहिए... त्यौहार ही हमारे एकरस जीवन में रंग और उमंग लेकर
आते हैं...
दूसरा सन्देश। जब एक इन्सान नृत्य, गीत या कला की किसी भी विधा में कुछ पलों के लिए खो जाता है, तो यकीन मानिए कि अनजाने में ही वह उन पलों में ईश्वर के सबसे करीब
होता है... इसलिए जब कभी मौका मिले, नृत्य या गीत में या कला
के किसी रुप में कुछ पलों के लिए अपने-आप को डुबा दीजिए...
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