"जयदीप, ये जो एण्टीबायोटिक दवायें हैं न, ये एक दिन बेकार
साबित होने जा रही हैं। These Antibiotic medicines
are going to be failed." –ये बातें जिन्होंने मुझसे
कही थी, वे न तो कोई डॉक्टर थे, न विज्ञान की किसी शाखा के जानकार थे। वे संगीत शिक्षक थे। एक दृष्टिहीन संगीत शिक्षक।
बात 1989 के शुरु की है। कानपुर के लाल
बंगला में एक छोटे-से संगीत विद्यालय में मैं (यूँ ही) शामिल हो गया- दरअसल मेरे
पास अतिरिक्त समय था। गुरुजी भी समझ ही गये होंगे कि संगीत इसके बस का रोग नहीं
है!
खैर, जब कभी अखबार में ऐसी रपटें देखता
हूँ, जिनमें कि एण्टीबायोटिक दवाओं के भविष्य में असफल साबित होने का जिक्र होता
है, तब मुझे उन गुरुजी की बात याद आती है और इसी बहाने श्रद्धा के साथ मैं उन्हें
नमन कर लेता हूँ।
***
जब बात निकल ही गयी है, तो.....
उनकी श्रवण शक्ति गजब की थी- यह तो मैं समझ गया था, मगर "कण्ठध्वनि"
से वे किसी के चरित्र, स्वभाव इत्यादि का भी अनुमान लगा सकते हैं- यह मैं नहीं
समझा था। उनसे मेरी व्यक्तिगत बातचीत कम ही हुई होगी, पर पता नहीं कैसे, उन्होंने
मेरे बारे में कुछ अनुमान लगाया था और एक दिन अचानक बोल बैठे थे, "जयदीप,
तुम्हारी जो सन्तान होगी, वह काफी प्रतिभाशाली होगी..."
मैं झेंप गया था- मेरी उम्र उस वक्त 20 के आस-पास थी- शादी दूर
की बात थी।
'97 में अभिमन्यु का जन्म हुआ- जालन्धर छावनी के सेना
अस्पताल में। जब अंशु को स्ट्रेचर पर लेबर रूम से वार्ड लाया जा रहा था, तब मैं
गलियारे में ही था। अभिमन्यु माँ के बगल में लेटा सो रहा था। उसके चेहरे को देखकर
पता नहीं क्यों, मुझे पिताजी की याद आयी। नजदीक आने पर उसकी उँगलियों पर नजर गयी-
ऐसी सुन्दर उँगलियाँ कम ही देखने को मिलती हैं... और तब अचानक संगीत के गुरुजी की
बात याद आ गयी- जयदीप, तुम्हारी सन्तान जो है, वह काफी प्रतिभाशाली होगी...
मैं उनकी इस बात को भविष्यवाणी तो नहीं, पर
"आशीर्वाद" के रुप में ग्रहण करता हूँ।