रविवार, 11 अगस्त 2013

62. कागज की कश्ती, बारिश का पानी...




मैंने बेटे को दो विकल्प दिये- या तो नाव तैराओ, मैं फोटो खींचता हूँ; 

या फिर, तुम फोटो खींचो, मैं नाव तैराता हूँ. 

जैसा मैंने सोचा था- वह फोटो खींचने के लिए राजी हुआ- नाव तैराने के लिए नहीं. 

शायद उसे कागज की कश्ती बनानी भी नहीं आती. 

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अगर उसने 'टच स्क्रीन' पाया है, तो कुछ खोया भी है- 

कागज की कश्ती बनाना... और उसे पानी में तैराना... 

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पता नहीं, इस पोस्ट को पढ़कर वह क्या सोचेगा. 

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