जब रोमियो के आये तीन दिन हुए थे. |
पहले ही स्पष्ट करना जरुरी है कि
"रोमियो" हमारे घर में रह रहे बिल्ली के नन्हे बच्चे का नाम है।
दो महीने पहले (5 मई
को) यह बच्चा हमारे घर में 'मान न मान, मैं तेरा मेहमान' के रुप में आ गया था।
जैसा कि हमारे घर की परम्परा रही है (पहले पिताजी कुत्ता पालने का शौक रखते थे और
माँ भुनभुनाती थी फिर मैं कुता रखता था तो श्रीमतीजी भुनभुनाती थी- हालाँकि बाद
में देखभाल में उन्हीं लोगों का हाथ ज्यादा होता था।), अंशु ने उसे भगाना चाहा,
मगर अभिमन्यु ने उसे रख लिया।
बिल्ली का वह बच्चा
औरों से अलग था- हमेशा लोगों के साथ रहना पसन्द करता था और हमेशा बिस्तर वगैरह पर
ही बैठना पसन्द करता था। ऐसा लगता था, मानो पहले से ही पालतू हो; जबकि आम तौर पर
इतने छोटे बिल्ली के बच्चे इन्सानों से दूर भागते हैं।
अभिमन्यु की गोद में आराम फरमाते हुए... |
खैर, वह घर में रहने
लगा। जल्दी ही अभिमन्यु का दोस्त बन गया। हमने भी अंशु से कहा- रहने दो, कौन जाने
किसी जन्म में कभी यह कोई अपना ही रहा हो! कुछ दिनों बाद तो ऐसा हुआ कि दो-एक
घण्टे उसे न देखने पर हमलोग खुद ही उसे खोजने लगते थे- कहाँ गया रोमियो?
वह खाने का शौकीन
बिल्कुल नहीं था। रोटी के कुछ टुकड़े और दो-चार शिप दूध, बस यही उसका खाना था। हाँ,
रसोई में बर्तनों की आवाज सुनते ही वह रसोई में आकर चुपचाप बैठ जाता था।
हमलोग मांसाहार न के
बराबर करते हैं। मगर रोमियो के कारण अभिमन्यु सप्ताह में एकबार खुद ही मछली या
चिकन लेकर आने लगा- आम तौर पर वह बाजार जाने से कतराता था। अभिमन्यु उसे कभी-कभी
नहलाता था- नहाने के बाद रोमियो छत पर बैठा रहता था- सूख जाने तक। हाल में
अभिमन्यु की किताबों की आलमारी से दुछत्ती तक एक पुल बना दिया गया था और वह
दुछत्ती पर भी कुछ समय बिताने लगा था।
रोमियो कभी-कभी
मच्छरदानी के ऊपर सोता था- झूलते हुए।
***
एक रोज इस तरह सोते हुए पाया गया वह... |
पता नहीं आगे उसके
दिन कैसे गुजरेंगे...
शरारत करते हुए... |
बाहर बरामदे पर रोमियो. |
खेलने के मूड में. |
और अब कल की तस्वीर- उदास रोमियो. |
पुनश्च: 9/8/2015
"रोमियो" चल बसा...
सुबह अंशु की सिसकियों से मेरी आँखें खुलीं...
देखा रोमियो के मृत शरीर को गोदी में लेकर वह रो रही है...