सुकान्तो भट्टाचार्य की जो कवितायें प्रसिद्ध हैं, उनमें से दो 'तुकान्त'
कवितायें हैं- 'रनर' और 'अट्ठारह साल की उम्र'। बाकी प्रसिद्ध कवितायें 'अतुकान्त' हैं, जैसे- 'दियासलाई
की तीली', 'एक मुर्गे की कहानी', 'सिगरेट', 'सीढ़ी', इत्यादि। अतुकान्त (छह) कविताओं का हिन्दी अनुवाद मैंने बहुत पहले ही किया था। कुछ समय पहले 'रनर' के अनुवाद को मैंने एक चुनौती के रुप
में लेकर उसे भी पूरा कर डाला- बेशक, तुक मिलाते हुए ही। लेकिन 'अट्ठारह साल की
उम्र' कविता का अनुवाद करने के बारे में मैंने कभी नहीं सोचा- लगता था, यह नहीं हो
पायेगा। पहली बात, यह तुकान्त तो है ही; दूसरी बात, इसकी कुछ पक्तियाँ मेरे सर के
ऊपर से गुजर जाती हैं।
फिर भी, कल रात मैंने इसका अनुवाद कर ही
दिया। यह और बात है कि मैं खुद इससे संतुष्ट नहीं हूँ, क्योंकि कुछ पंक्तियों का
अर्थ मैं अब भी नहीं पा रहा था:
कितनी दुःसह है अट्ठारह साल की उम्र
चुनौती स्वीकार करने के लिए उठाती है सर,
अट्ठारह साल की उम्र में ही अहरह
आते हैं विराट दुस्साहसीगण नजर।
अट्ठारह साल की उम्र नहीं जानती कोई
भय
पदाघात से तोड़ डालना चाहती हर बन्धन,
इस उम्र में कोई झुकाता नहीं अपना सर
अट्ठारह साल की उम्र नहीं जानती क्रन्दन।
यह उम्र जानती है रक्तदान का पुण्य
यूँ चलती है, जैसे वाष्पवेग से स्टीमर जल
में,
प्राण लेने-देने का थैला नहीं रहता खाली
आत्मा को सौंप देती है शपथ के कोलाहल में।
अट्ठारह साल की उम्र है भयंकर
ताजे-ताजे प्राण में असह्य यंत्रणा,
इस उम्र में प्राण तीव्र एवं प्रखर
आती है कानों में कितनी मंत्रणा।
अट्ठारह साल की उम्र है दुर्वार
पथ-प्रान्तर में फैलाती जाती बहु तूफान,
दुर्योग में हाल ठीक रखना हो जाता भार
क्षत-विक्षत होते हैं सहस्र प्राण।
अट्ठारह साल की उम्र में आते हैं आघात
अविश्रान्त; जुड़ते रहते हैं एक-एक कर,
यह उम्र काली लक्ष दीर्घश्वांस में
यह उम्र काँपती है वेदना में थर-थर।
फिर भी अट्ठारह का सुना है जयजयकार
दुर्योग औ' आँधी में यह उम्र नहीं मरती है,
विपत्ति के सम्मुख यह उम्र है अग्रणी
यह उम्र फिर भी कुछ नया तो करती है।
जान लो, यह उम्र भीरू, कापुरुष नहीं है
रास्ता चलते यह उम्र नहीं जाती है ठहर,
इस उम्र में इसलिए नहीं है कोई संशय
इस देश के सीने पर भी अट्ठारह आये उतर।