पिछ्ले हफ्ते के मंगलवार से शुरु हुई वर्षा इस
हफ्ते सोमवार तक जारी रही। इन सात दिनों की बरसात में हमारे बरहरवा के दक्षिण में
सैकड़ों वर्गकिलोमीटर का क्षेत्र एक विशाल झील में परिणत हो गया। कल वर्षा रुकी थी,
तो ये कल की तस्वीरें हैं।
यह जो झील बनी, इसका एक किनारा तो गंगा नदी है,
दूसरा किनारा गुमानी नदी है और तीसरा किनारा राजमहल की पहाड़ियाँ हैं। यानी लगभग
में यह एक त्रिभुजाकार झील है।
गुमानी एक पहाड़ी नदी है, जो पहाड़ियों से उतरने
वाले वर्षा जल को फरक्का के पास गंगा तक ले जाती है। फरक्का में बाँध है, जिस कारण
यहाँ गंगा का बहाव धीमा हो जाता है। बाँध के दरवाजों से पानी हालाँकि निकल रहा है,
लेकिन जो रफ्तार है, उससे लगता है कि पानी उतरने में तीन दिन लग जायेंगे- बशर्ते
कि फिर वर्षा न हो!
बताया जा रहा है कि धान की पैदावार लगभग एक
चौथाई घट जायेगी। बाकी जो नुकसान हो रहा है, वो तो है ही।
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कल हमने एक लेख साझा किया था (फेसबुक पर, लिंक यहाँ है), जिसमें बताया गया
है कि टिहरी बाँध के कारण मैदानी इलाके में गंगा का बहाव धीमा हो गया है, जिसके
फलस्वरुप गंगा अपनी गाद को बहाकर नहीं जा पा रही है। गाद नहीं बहने से गंगा की
गहराई कम होती है और बाढ़ के समय पानी अगल-बगल ज्यादा फैलता है।
बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है। अगर
"प्राकृतिक" रुप से हर साल या दो-चार साल में एकबार बाढ़ आने दिया जाय,
तो गंगा की पल्ली मिट्टी खेतों पर आ जाती है और इससे कृषि को बहुत फायदा होता है।
प्राकृतिक स्वरुप में गंगा का बहाव भी तेज होगा, बाढ़ पानी जल्दी उतरेगा और गंगा की
गहराई भी बनी रहेगी। पर टिहरी बाँध ने गंगा के "प्राकृतिक" बहाव को
समाप्त कर दिया है!
फिर भी, गंगा किसी तरह अपनी गाद को भागलपुर तक
बहा लाती है। यहाँ आकर गंगा की हिम्मत और ताकत जवाब दे देती है, क्योंकि आगे
फरक्का बाँध बहाव को रोक रहा होता है। नतीजा? गंगा में विशाल टापुओं का निर्माण।
इन्हें हिन्दी में "दियारा" और बँगला में "चर" कहते हैं।
दियारा पहले भी होते थे, पर फरक्का बाँध बनने के बाद से इनका क्षेत्रफल बहुत बढ़ने
लगा है। कहीं कोई शोध या अध्ययन तो होता नहीं, इसलिए लगता नहीं है कि कोई आँकड़ा
उपलब्ध होगा कि 1970 से पहले दियारा का कुल क्षेत्रफल कितना था और अब कितना है।
फरक्का बाँध ने जलजीवों को भारी नुकसान पहुँचाया
है। मीठे पानी की कुछ मछलियाँ प्रजनन के लिए खारे पानी में जाती थीं और इसी
प्रकार, खारे पानी की कुछ मछलियाँ प्रजनन के लिए मीठे पानी में आती थीं। आपने शायद
"हिल्सा" मछली का नाम सुना हो। कभी यह समुद्र से निकलकर बहाव के विरुद्ध
तैरते हुए हरिद्वार तक जाया करती थी, आज यह फरक्का बाँध के उस तरफ ही रह जाती है!
भले इनके लिए नहर आदि बनाने की बात हो रही है, पर लगता नहीं है कि यह
"कृत्रिम" उपाय कोई काम आयेगा।
गंगा की जो "डॉल्फिन" है- जिसे
स्थानीय भाषा में "सोंस" कहते हैं और जो एक नेत्रहीन मासूम बड़ी मछली होती
है- हमें लगता है कि इसका भी विचरण क्षेत्र फरक्का बराज के चलते सिकुड़ गया है और
इनकी संख्या भी कम हो रही होगी!
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फरक्का बाँध से सिर्फ हम आस-पास वाले लोग ही
बुरी तरह से प्रभावित नहीं हैं, बल्कि भागलपुर और पटना तक के लोग इससे प्रभावित
हैं। इस बाँध से न तो कोई सिंचाई होती है (मेरी जानकारी में तो इससे कोई नहर
"सिंचाई" के लिए नहीं निकलती है) और न ही इससे "पनबिजली" बनती
है। (न्यू फरक्का में जो बिजलीघर है, वह "ताप" बिजलीघर है- थर्मल पावर
स्टेशन- झारखण्ड के कोयले को जलाकर वहाँ बिजली बनती है। बदले में झारखण्ड अन्धेरे
में डूबा रहता है- यह एक अलग विषय है।)
आप जानना चाहेंगे कि आखिर फरक्का बाँध से लाभ क्या
है? पटना से लेकर फरक्का तक- 300 किमी की लम्बाई में गंगा किनारे रहने वाले लोगों
से पूछकर देखिये, उनका जवाब बड़ा रोचक होगा। वे कहेंगे- फायदा तो इससे कुछ नहीं है,
नुकसान ही नुकसान है, मगर इसी बराज के के चलते भारत ने बाँग्लादेश को
"टाईट" कर रखा है!
"बाँग्लादेश को टाईट करने के लिए फरक्का
में बराज बन रहा है"- यह इंजेक्शन 1970 के दशक वाली पीढ़ी को दिया गया था, मगर
आज दस साल का एक बच्चा भी आपको यही जवाब देगा। मेरे ख्याल से, विश्व का यह एकमात्र
ऐसा "मनोवैज्ञानिक" इंजेक्शन है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपना असर दिखा रहा है।
(वैसे, जहाँ तक मेरी जानकारी है, कोलकाता के
डायमण्ड हार्बर बन्दरगाह में पानी की उपलब्धता बनाये रखने के लिए यह बाँध बना था।
चूँकि यहाँ से गंगा की एक शाखा बाँगलादेश जाती है, इसलिए बाँग्लादेश के साथ एक
समझौता भी है कि कब कितना पानी उसके लिए छोड़ना है।)
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जो हो, व्यक्तिगत रुप से मैं "बाँध
विरोधी" हूँ और मेरा मानना है कि दुनिया की हर नदी को स्वाभाविक और प्राकृतिक
रुप से बहने देना चाहिए। वैसे भी, "सीमेण्ट" की एक आयु होती है, जो
सौ-डेढ़ सौ साल से ज्यादा नहीं हो सकती। 1930-40 से बाँध बनाने के फैशन चला है, अब
देखा जाय कि 2030-40 के बाद से इन बाँधों की क्या गति होती है!
(छायाचित्रों में एक तस्वीर मेरे घर के सामने की
है, एक-डेढ़ दिन के लिए यहाँ भी पानी जमा हो गया था।)
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पुनश्च: ऊपर एक लेख का जिक्र है. यह लेख ''झुनझुनवाला इकोनॉमिक्स" पेज पर है. शीर्षक है: "हम स्वयं बुला रहे बाढ़ की तबाही...". बाद में उसी पेज पर एक और लेख प्रकाशित हुआ है, जिसका शीर्षक है: "फरक्का का तांडव..". इस लेख का लिंक यहाँ है.
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पुनश्च: ऊपर एक लेख का जिक्र है. यह लेख ''झुनझुनवाला इकोनॉमिक्स" पेज पर है. शीर्षक है: "हम स्वयं बुला रहे बाढ़ की तबाही...". बाद में उसी पेज पर एक और लेख प्रकाशित हुआ है, जिसका शीर्षक है: "फरक्का का तांडव..". इस लेख का लिंक यहाँ है.