आज
सुबह-सुबह मैं "औराही हिंगना" नामक छोटे-से गाँव में था... फणीश्वर नाथ
रेणु जी की जन्मस्थली के सामने।
दरअसल, कल बरहरवा से आनन्द (फागु) के छोटे भाई की
बारात "सिमराहा" आयी थी, जो
अररिया से प्रायः 20
किलोमीटर दूर है और सिमराहा से "औराही हिंगना" प्रायः 4 किलोमीटर दूर है।
कल
शाम मैं अपने 1999 मॉडल लीजेण्ड स्कूटर से
सिमराहा पहुँचा- नयी-नवेली फोरलेन NH-57 पर
चलने का अपना ही मजा है।
(आमतौर पर मैं साइकिल चलाता हूँ- महीने में दो-तीन दिन स्कूटर चला लेता हूँ कि यह
कबाड़ न बन जाय।
मुझे लगता है, अब भी यह 55 के आस-पास ही माइलेज देता होगा- यह 4स्ट्रोक है।)
खैर, मुहल्ले के कुछ बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम किया, अशोक तथा कुछ अन्य दोस्तों से भेंट हुई, कुछ पुरानी मस्तियाँ हुईं। उत्तम बदमाश नहीं आया था। चन्द्रशेखर चाचा (नूनू चाचा) भी नहीं आ
पाये थे।
शादी का जश्न शानदार रहा- खासकर, "मयूर"
वाली पालकी में बैठकर वधू का आना- "वरमाला" के लिए। रात थोड़ी-बहुत नीन्द आयी। सुबह 5
बजे से पहले मैं निकल पड़ा।
सिमाराहा
से औराही तक का आधा रास्ता तो ठीक है, बाकी आधा शायद निर्माणाधीन है- ऊबड़-खाबड़। ध्यान रहे, रेणु
जी के सुपुत्र अभी यहाँ के माननीय विधायक हैं और वे उसी घर में रहते हैं।
सामने
फूस का बड़ा-सा हॉलनुमा कमरा है- पीछे पक्के मकान की झलक मिल रही थी। कुछ तस्वीरें मैंने खींची जरुर, मगर वे सुन्दर नहीं हैं- क्योंकि मैं नोकिया-5310 नहीं लेकर गया था, जिसकी तस्वीर अच्छी आती है। मैं एक साधारण मोबाइल साथ रखता हूँ, सो उसी का साधारण चित्र साझा कर रहा हूँ।
रेणु के गाँव में मैंने पाया कि हर ग्रामीण "रेणु" की महानता एवं प्रसिद्धि से भली-भांति वाकिफ है और उनकी जन्मस्थली देखने आनेवालों के प्रति उनका व्यवहार दोस्ताना है। एक बात पर मेरा ध्यान गया कि यहाँ हर घर (या झोपड़ी) के सामने आँगन है और "तोरण" के रुप में एक प्रवेशद्वार है- कोई फर्क नहीं पड़ता कि घरवाले कितने गरीब या पैसेवाले हैं।
रेणु के गाँव में मैंने पाया कि हर ग्रामीण "रेणु" की महानता एवं प्रसिद्धि से भली-भांति वाकिफ है और उनकी जन्मस्थली देखने आनेवालों के प्रति उनका व्यवहार दोस्ताना है। एक बात पर मेरा ध्यान गया कि यहाँ हर घर (या झोपड़ी) के सामने आँगन है और "तोरण" के रुप में एक प्रवेशद्वार है- कोई फर्क नहीं पड़ता कि घरवाले कितने गरीब या पैसेवाले हैं।