यूँ तो सावन के अन्तिम सोमवार को यहाँ भीड़ जुटती है, पर हमलोग एक दिन पहले रविवार- 18 अगस्त'2013- को वहाँ से हो आये...
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| चूँकि 'धुलियान पैसेन्जर' रद्द थी, इसलिए बरहरवा स्टेशन के एक प्लेटफार्म पर 'गया पैसेन्जर' का इन्तजार करते हम. |
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| तीनपहाड़ के तीन पहाड़ों में से एक पहाड़. |
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| कल्याणचक स्टेशन पर 'क्रॉसिंग' के लिए ट्रेन कुछ देर खड़ी रही. यहाँ हमने घर से लाया नाश्ता भी किया और "चॉप" भी खरीदकर खाये. |
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| बदली वाला दिन था... मौसम सुहाना हो रहा था... |
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| सफर अच्छा ही रहा |
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| 'धनरोपनी' का काम करीब-करीब पूरा हो चुका है. |
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| तालाब की दूसरी तरफ एक झोपड़ी |
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| महाराजपुर में गंगाजी का जलस्तर बढ़ा हुआ है- यहीं से जल लिया |
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| साहेबगंज जा रहे एक फिटफिटी या जुगाड़- यहाँ भुट्भुटिया- ने हमें उस मोड़ पर उतारा, जहाँ से मोती झरना का रास्ता अलग होता है. |
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| मोती झरना का प्रवेशद्वार |
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| 3 किलोमीटर का पैदल सफर शुरु... |
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| सफर जारी है... |
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| दाहिने खेतों की हरियाली... |
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| सामने पहाड़.. |
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| धान रोपती महिलायें... |
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| हल चलाता किसान.. |
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| यहाँ झरने की झलक दिखी- हालाँकि कि तस्वीर में नहीं दीखेगी. |
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| रास्ते के बगल में एक सुन्दर मकान. |
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| बस, अब आधा रास्ता बचा है. |
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| सोते का पानी पीकर देखा जाय.. |
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| 'छोटी' क्यों पीछे रहती. |
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| झरना फिर दीखा- |
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| थोड़ी दूर और... |
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| यह रहा मोती झरना! |
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| झरना दीखते ही फोटो खिंचवाना पड़ता है |
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| चलो, तुमदोनों का भी फोटो हो जाय. |
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| एक और प्रवेशद्वार |
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| यह झरना "दो-मंजिला" है- ध्यान से देखिये. |
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| पहुँच ही गये. |
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| झरने का दूसरा हिस्सा ही दीखता है- ऊपर वाला हिस्सा छुप जाता है. |
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| झरने के बहते पानी को रोककर नहाने के लिए दो तालाब बना दिये गये हैं. |
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| पीछे जो मन्दिर-सा दीख रहा है, वह गुफा का प्रवेशद्वार है. |
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| हम भी क्यों पीछे रहते- |
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| आखिर पुराने 'तैराक' ठहरे- वायुसेना के! |
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| उसी गुफा के अन्दर शिवलिंग स्थापित है- यहीं महाराजपुर से लाया गया गंगाजल चढ़ाया गया. |
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| झरने के सामने. |
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| झरने के सामने. |
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| एकबार फिर पानी में- |
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| मन नहीं भरा. |
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| अब बस करो. |
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| अच्छा, थोड़ी देर और... |
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| वापसी... एक इमली के पेड़ के नीचे. |
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| सुस्ता लिया जाय. (छोटी, अभिमन्यु, शिवम) |
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| खेतों में काम जारी है. |
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| गंगाजी का जलस्तर वास्तव में बढ़ा हुआ है. |
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| दियारा का काफी हिस्सा बाढ़ की चपेट में है |
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| एकबार फिर गंगाजी के पास. |
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| यही है महाराजपुर स्टेशन, जहाँ से मोतीझरना जाते हैं. वैसे, साहेबगंज से मात्र 15 किलोमीटर पड़ेगा |
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| बरगद के पेड़ के नीचे- जिसपर कि प्रवासी बगुले शोरगुल कर रहे थे- एक झोपड़ीनुमा होटल में पत्तल में दाल-भात-सब्जी-भुजिया खाते हुए. |
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| होटल की 'खिड़की' पर छोटी. |
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| वापसी में अबिमन्यु मोबाइल से चिपके हुए, शिवम बाहर देखते हुए, छोटी सोते हुए. |