मंगलवार, 17 सितंबर 2019

219. श्रद्धाँजलि: राजकिशोर जेठू


मेरे पिताजी के एक अनन्य मित्र का कल स्वर्गवास हो गया। हमलोग उन्हें "राजकिशोर जेठू" कहा करते थे- यानि वे उम्र में पिताजी से कुछ बड़े ही रहे होंगे, लेकिन थे मित्र ही। बिलकुल पड़ोस में उनका घर है, लेकिन वे दुमका शहर में बस गये थे। शुरु में अध्यापक रहे, बाद में वकील बने। एक समय में पटना के अखबार 'इण्डियन नेशन' के लिए हमारे इलाके से संवाद भेजते थे। लिखने-पढ़ने के शौकीन थे। 1955-56 में हमारे बरहरवा से जो ग्रन्थाकार हस्तलिखित पत्रिका प्रकाशित हुई थी- "मिलॅनी", उसका दूसरा अंक देखा था हमने, उसमें उनकी एक कविता थी- "चिता"। कविता की शुरुआती पंक्तियाँ थी:
"अन्धेरी निशा में नदी के किनारे
न जाने यह किसकी चिता जल रही है।"
मुझे बहुत दुःख है कि हम पूरी कविता नहीं दे पा रहे हैं। तस्वीर तो हमने पत्रिका के हर पेज की खींची थी और उस समय मेरा 'नोकिया- 5310' तीन सौ रिजॉल्युशन की तस्वीरें खींचता था, मगर अब उन तस्वीरों को खोज नहीं पा रहे हैं- किसी सी.डी. में होनी चाहिए। एक ब्लॉग पर इन तस्वीरों को अपलोड करते समय तस्वीरों का रिजॉल्युशन घटा दिये थे (वह वन-जी का जमाना था), जिस कारण अब पूरी कविता को पढ़ पाना सम्भव नहीं रहा। (प्रभात चक्रवर्ती ने बताया कि जैसे "मिलॅनी" का पहला अंक लापता हो गया था, उसी तरह से दूसरा अंक भी गायब है।)
       खैर, बाद में मेरी त्रैमासिक पत्रिका "मन मयूर" के लिए उन्होंने दो कवितायें भेजी थीं। यह 2007 की बात है। वे दोनों कवितायें इस प्रकार हैं:
        
       दो कविताएं
-राजकिशोर
फिर जागा हूँ
फिर जागा हूँ
धुन्ध मन का छँट गया है,
रोशनी में देखता हूँ-
लेखनी की रोशनाई बह गयी है,
लोग सारे सोचते होंगे
कवि का भाव-
अब मुरझा गया है,
क्योंकि उसकी लेखनी, आवाज
सबकुछ बन्द है।
सच नहीं, यह झूठ है,
मैं फिर लिखूँगा
भावना की धूप फिर से
हँस पड़ी है।
तुम हँसो, मैं भी हँसूँगा,
अब हमारी लेखनी स्वछन्द है।
***
दो सहारा
आज मैं परदेश में
एक अजनबी हूँ,
ढूँढ़ता हूँ हर गली-
कूचे, शहर में-
एक भी पहचान का चेहरा मिले,
किन्तु, मेरे दोस्त अब मैं क्या कहूँ?
इस वीराने में कहीं कोई नहीं,
जो मिला, मिलकर छलावा दे गया,
जो भी मेरे पास था, सब ले गया।
इसलिए मैं रूक गया हूँ राह पर
दो सहारा लौट आऊँ उस गली में
हम जहाँ बिछुड़े हुए थे।
***
       एक कहानी भी उन्होंने भेजी थी- 'समय का फेर'। यह सच्ची घटना पर आधारित कहानी थी। हो सका, तो उसे प्रस्तुत करेंगे।
       फिलहाल मेरी ओर से यही दोनों कवितायें उन्हें श्रद्धाँजलि के रुप में अर्पित हैं...

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