कुछ दिनों पहले एक छोटी-सी पत्रिका डाक
द्वारा मुझे मिली- "सद्भावना दर्पण"। टैग लाईन है: भारतीय एवं विदेशी साहित्य के अनुवाद और
अनुसन्धान की मासिक पत्रिका।
सम्पादक हैं: गिरीश पंकज।
जुलाई का जो अंक मुझे मिला, उसमें
"बनफूल" की दो कहानियाँ प्रकाशित की गयी हैं और "बनफूल" का
परिचय भी दिया गया है। बेशक, अनुवादक तथा परिचय लेखक के रुप में मेरा नाम दिया गया
है।
बाद में मुझे ध्यान आया कि 'फेसबुक' पर मैं अक्सर गिरीश
पंकज साहब का नाम देखता हूँ। चूँकि जुलाई में "बनफूल" का जन्मदिन पड़ता
है, इसलिए उन्होंने इस अंक में उनसे जुड़ी सामग्री प्रस्तुत की।
इसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ कि उन्होंने मेरे एक ब्लॉग
से उक्त सामग्री लेकर प्रकाशित की।
हिन्दी में शरतचन्द्र से लेकर बिमल मित्र तक की रचनायें
अनुदित हो चुकी हैं; मगर पता नहीं क्यों, विलक्षण प्रतिभा के धनी लेखक
"बनफूल" को नेपथ्य में धकेल दिया गया है। मेरी पूरी कोशिश है कि हिन्दी
के साहित्यरसिक इस महान लेखक से परिचित हों।
"सद्भावना दर्पण" में "बनफूल" का जिक्र
आने से बेशक काफी लोग इस लेखक से परिचित हुए होंगे- इसके लिए मैं इस पत्रिका तथा
इसके परिवार के प्रति, खासकर, गिरीश पंकज साहब के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करता
हूँ।
"बनफूल" की 20
अनुदित कहानियों का संग्रह हाल में प्रकाशित भी हुआ है:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें