बहुत पहले हमलोग गुलजार के
गीतों का एक कैसेट सुना करते थे।
हर गाने से पहले गुलजार साहब ने अपनी खास शैली तथा आवाज में
गीत की भूमिका बाँध रखी थी।
कल सुबह एक पहाड़ी की चोटी पर ढले हुए साँवले बादलों को
देखकर मुझे उनकी एक पंक्ति याद आ गयी: "...हाँ, वह पहाड़ का टीला जब बादलों
से ढक जाता था, तब एक आवाज सुनायी देती थी.."
फिर गाना शुरु होता था:
"फिर से अइयो / बदरा विदेशी
तेरे पंखों में / मोती जड़ूँगी।
तुझे काली कमली वाले की सौं..."
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