पिछले साल 13 नवम्बर- अभिमन्यु के जन्मदिन पर- एक
पोस्ट लिखते हुए मैंने जिक्र किया था कि उसने 'कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो' और 'दास
कैपिटल' पुस्तकें मँगवाई है।
मैंने यह भी लिखा था कि मेरे द्वारा मँगवाई गयी "फेलु दा" सीरिज
(सत्यजीत राय साहब की) के उपन्यासों को भी उसने शौक से पढ़ा है। मेरी सलाह पर उसने
अगाथा क्रिस्टी का जासूसी उपन्यास "मर्डर इन मेसोपोटामिया" (क्रिस्टी के
तो खैर 50 से ज्यादा उपन्यास हैं) और खलील जिब्रान का की दार्शनिक रचना "द
प्रोफेट" भी मँगवाकर पढ़ी। पहले से भी उसके संग्रह में ढेरों किताबें हैं-
बेताल पच्चीसी से लेकर अराउण्ड द वर्ल्ड इन ऐटी डेज तक।
इसी कड़ी में संयोग से कुछ "रेफरेन्स"
पुस्तकें घर पर ही एक सेल्समैन द्वारा मिल गयी। उनका जिक्र भी एक पोस्ट में है।
वर्तमान में जो पुस्तक मँगवाकर वह
पढ़ने में लगा है, वह है- "द फैब्रिक ऑव द कॉस्मॉस"।
जाहिर है, उसकी रुचि परिष्कृत है और
विविधता लिए हुए है।
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लगे हाथ एक और बात का जिक्र कर दूँ।
मेरे एक परिचित बड़े गर्व से बताते हैं कि
उन्होंने घर के बच्चे को पढ़ाई के बाहर भेज रखा है- वहाँ वह हर वक्त पढ़ाई करता है!
माहौल ही पढ़ाई का है- पढ़ाई के अलावे वहाँ और कुछ करने को है ही नहीं। क्या रात
क्या दिन- हर वक्त पढ़ाई और पढ़ाई!
जबकि
मैंने अभिमन्यु को पढ़ाई के लिए "बाहर" नहीं भेजा। मैंने चाहा कि वह
दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-ताऊ, भाई-बहन के बीच रहे, पुराने दोस्तों का उसे साथ
मिले, कॉलेज 10 मिनट में ही पहुँच जाये- साइकिल से- इससे समय बचे और इस बचे का
उपयोग वह दूसरे कामों में करे, कम्प्यूटर चलाये, गेम खेले, टीवी देखे, मोबाइल
चलाये, पुस्तकें पढ़े, रविवार को ड्राइंग क्लास जाये.... और इतना सब करके समय बच
जाये, तो दो-एक घण्टे कोर्स की पढ़ाई भी कर ले!
वैसे, पढ़ाई में भी वह ठीक है।
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आपके बेटे के उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनायें। जो मझे पूरा यकीन है कि उसका होगा। और अन्त मे सबसे जरूरी बात कही आपने कि अगर समय मिले तो कोर्स की किताबेंभी पढ़ ले।
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