दो राज्य
पश्चिम
बंगाल और झारखण्ड दो पड़ोसी राज्य हैं।
तथ्य
तथ्य यह है कि बंगाल देश का एक(मात्र) ऐसा राज्य है, जो
अपनी आवश्यकता से अधिक बिजली पैदा करता है। चूँकि बिजली को संगृहीत करके रखा नहीं
जा सकता, इसलिए उसकी बहुत-सी इकाईयाँ क्षमता से कम उत्पादन करती हैं- जैसे कि
फरक्का एनटीपीसी, जो बिलकुल झारखण्ड के पड़ोस में है।
दूसरी तरफ झारखण्ड की स्थिति बिजली के मामले में
भीखमंगे-जैसी है। फरक्का एनटीपीसी से बिजली खरीदने तक की उसकी औकात नहीं है।
ऐसा क्यों है? कारण पता नहीं, मगर मैं दो प्रवृतियों का
जिक्र करूँगा, जो दोनों राज्यों के नेताओं में पायी जाती है।
प्रवृत्ती
बंगाल में जब विधायक बदलते हैं, तो विधायक आवास की बनावट की
कौन कहे, वहाँ परदे तक नहीं बदलते हैं! विधायक चाहे काँग्रेस के हों, या सीपीएम के
या तृणमूल के, कोई बँगले में फिजूलखर्ची नहीं करवाता। 20-20 साल तक एक ही परदे
वहाँ टँगे रहते हैं!
दूसरी तरफ झारखण्ड का एक हालिया उदाहरण ही काफी है:
मुख्यमत्री आवास में तीन साल पहले 30 लाख रुपये में हेलीपैड बना था, अभी नये-नवेले
मुख्यमंत्री उसकी चहारदीवारी 41 लाख रुपये में बनवा रहे हैं!
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आप कहेंगे- बंगाल पुराना राज्य है, उससे भला क्या तुलना-
बिजली के मामले में।
ठीक है, बिहार भी अब पड़ोसी राज्य है झारखण्ड का। 13 साल
पहले जब झारखण्ड अलग हो रहा था, तब एक गाना प्रचलित हुआ था बिहार में- "अलग भइले
झारखण्ड, अब खहिह शकरकन्द!" यह गाना ही उस समय के माहौल को बयां कर देता है।
सब सोचते थे झारखण्ड तरक्की कर जायेगा और बिहार पिछड़ जायेगा। बीबीसी के संवाददाता
से एक बिहारी ने कहा भी था- लालू के राज में बालू फांकेंगे- और क्या?
मगर देखिये कि पिछले 13 सालों में बिहार में बिजली-उत्पादन
की चार इकाईयाँ बनकर चालू हो गयी हैं और हम झारखण्डी आज तक यही सोच रहे हैं कि
बिजली ट्रान्सफार्मर से बनती है, या सब-स्टेशन से, या फिर ग्रिड से! सारे झारखण्डी
अपने-अपने इलाके में बस इन्हीं चीजों की माँग करते रहते हैं।
नेता भी ऐसे ही हैं। वे भी शायद यही जानते हैं कि इन्हीं
चीजों से बिजली पैदा होती है!
परसों ही तो दुमका में झारखण्ड के मुख्यमंत्री एक जनसभा को
सम्बोधित कर रहे थे। कहाँ, ट्रान्सफार्मर, सब-स्टेशन, ग्रिड से ऊपर वे कुछ बोल ही
नहीं पाये....
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