जैसा
कि पहले मैंने कभी जिक्र किया था कि आषाढ़ का दूसरा पखवारा हमारे इलाके में सूखा
बीता था- लोगों को सुखाड़ का डर सताने लगा था। मगर सावन अपने साथ काली
घटायें लेकर आया, खेतों में पानी जमा और धान के पौधे रोपने का काम पूरा हुआ। भादों
के पहले पखवारे में अच्छी-खासी बारिश हो गयी। उधर उत्तर-प्रदेश में कुछ ज्यादा ही
बारिश हो गयी। गंगा का जलस्तर बहुत बढ़ गया।
हमारे इलाके के दो शहर गंगाजी
के किनारे बसे हैं- साहेबगंज और राजमहल। ये दोनों प्रखण्ड तो बाढ़ की चपेट में आ ही
गये हैं; साहेबगंज का पड़ोसी प्रखण्ड तालझारी तथा राजमहल का पड़ोसी प्रखण्ड उधवा भी
चपेट में है। तीन हफ्ते गुजर गये- गंगाजी का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर ही खड़ा
है!
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अब चूँकि ऋतु-परिवर्तन की आहट
मिलने लगी है, इसलिए उम्मीद है कि अब बारिश नहीं होगी और जलस्तर घटेगा। तीन दिनों
पहले शाम 'पछुआ' चल रही थी। धूप में तेजी घट गयी है। शाम जल्दी घिरने लगी है।
'कास' के सफेद फूल खिलने लगे हैं। हालाँकि भादों का आधा समय बाकी है, मगर 'आसिन'
का आहट मिलने लगी है, जब जमीन पर सफेद कास के फूल और आकाश में हिमालय-जैसे सफेद
बादल दिखाई पड़ते हैं... यानि शरत काल की शुरुआत।
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बाढ़ की बात पर याद आयी- रक्षाबन्धन
के ठीक बाद वाले दिन मेरी ट्रेन लेट थी- रात के अन्धेरे में यह महाराजपुर पार कर
रही थी। पिछली रात ही पूर्णिमा थी, इसलिए आज भी चाँद पूरा दीख रहा था। ओह, क्या
दृश्य था! गंगाजी की विशाल जलराशि के ऊपर चमकता पूरा चाँद! काश, मेरे पास अच्छे
दर्जे का कैमरा होता! मैं जान रहा था- इस समय 'दियारे' (टापु) पर रहने वाले लोगों
की जिन्दगी नर्क समान है, मगर इस दृश्य को देखकर अभिभूत हुए बिना मैं नहीं रह सका!
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