तुकादी एक खेल का नाम है।
एक बड़े-से रूमाल (लगभग 2 फीट गुणा 2 फीट) के
बीचों-बीच एक गेन्द (टेनिस वाली गेन्द) को रखकर रूमाल को धागे से इस तरह बाँधा
जाता है कि जब गेन्द को फेंककर मारा जाता है, तब इसकी आकृति 'धूमकेतु'-जैसी बन जाती
है। इस गेन्द को भी 'तुकादी' ही कहते हैं।
दो टीम बनती है। दोनों के पास एक-एक तुकादी रहती
है। मान लीजिये कि एक टीम के खिलाड़ियों ने लाल जर्सी पहन रखी है, तो उनकी तुकादी
(यानि रूमाल) का रंग भी लाल ही होगा। इसी प्रकार दूसरी टीम ने पीली जर्सी पहनी हो,
तो उनकी तुकादी (यानि रूमाल) का रंग पीला होगा। टीम में खिलाड़ियों की संख्या 5, 7,
9 या 11 हो सकती है- यह निर्भर करता है मैदान के आकार पर। छोटा मैदान- कम खिलाड़ी,
बड़ा मैदान- ज्यादा खिलाड़ी।
दो रेफरी होते हैं, जो खेल के दौरान एक-एक
तुकादी के आस-पास रहते हुए खेल पर नजर रखते हैं। आम तौर पर 10-10 मिनट के चार
क्वार्टर का यह खेल होता है। सुविधानुसार बदलाव किया जा सकता है। यहाँ तक कि
'अंकों' से हार-जीत के स्थान पर 'ऑल-आउट' वाला तरीका भी अपनाया जा सकता है।
खेल की शुरुआत में दोनों टीमें लाईन बनाकर
आमने-सामने खड़ी हो जाती हैं- दोनों टीमों के बीच दस से बीस कदमों का फासला रहेगा।
दोनों टीमों के कप्तान अपनी टीम से दो कदम आगे खड़े रहते हैं- तुकादी उन्हीं के
हाथों में होती हैं। सीटी बजते ही दोनों कप्तान विरोधी टीम के किसी खिलाड़ी पर
(कप्तान पर नहीं) निशाना साधकर तुकादी फेंकते हैं और इसी के साथ सारे खिलाड़ी मैदान
में फैल जाते हैं और खेल शुरू हो जाता है। हर खिलाड़ी अपनी टीम की तुकादी से विरोधी
टीम के खिलाड़ी को मारने की कोशिश करता है। जिसे तुकादी लग जाती है, वह खेल से बाहर
हो जाता है। खेल के दौरान कप्तान पर भी निशाना साधा जा सकता है। जब एक टीम का एक
खिलाड़ी 'आउट' या 'मात' होता है, तो विरोधी टीम को एक अंक मिलता है। कप्तान मात हो
जाय, तो दो अंक और 10 मिनट होने से पहले पूरी टीम मात खा जाय (ऑल आउट), तो विरोधी
टीम को 5 अंक अतिरिक्त मिलते हैं। अपनी टीम के अन्दर 'पास' भी दिया-लिया जाता है।
अगले क्वार्टर में फिर सारे खिलाड़ी 'जिन्दा' हो
जाते हैं।
रेफरी ध्यान रखते हैं कि कोई जान-बूझकर सामने से
न टकराये, कोई किसी को न खींचे और किसी को धक्का या लंगड़ी न मारे। ऐसा करना 'फाउल'
होगा और फाउल करने वाले खिलाड़ी को रेफरी चाहे, तो आउट भी कर सकेगा, नहीं तो
चेतावनी देगा। बेशक, तीसरी चेतावनी पाने वाले को आउट होना ही पड़ेगा। किसी के सिर
या चेहरे पर तुकादी से निशाना साधना 'रेड कार्ड' वाला फाउल होगा और ऐसा करने वाले
को पूरे मैच से बाहर किया जायेगा- यानि अगले क्वार्टर में भी वह नहीं खेल
पायेगा।
यूँ तो खिलाड़ी सिर्फ अपनी तुकादी को ही पकड़ेगा,
पर मौका मिलने पर वह विरोधी टीम की तुकादी को मैदान में दूर फेंक सकेगा, पर इसके
लिए दो सख्त नियम होंगे- 1. वह इसके लिए अपने बाँये हाथ का इस्तेमाल करेगा और 2.
तुकादी को कमर से नीचे रखते हुए (यानि झुलाते हुए) दूर फेंगेगा- इस दौरान वह तुकादी के रूमाल वाले हिस्से को पकड़ेगा, गेन्द वाले हिस्से को नहीं। इन नियमों को
तोड़ने वाला भी आउट होगा।
अब आप सोचेंगे कि यह खेल कहाँ खेला जाता है?
आपने अब तक इस खेल के बारे में सुना क्यों नहीं? और मुझे इस खेल की जानकारी कहाँ
से मिली?
...तो मेरा जवाब यह है कि इस खेल को हमने सपने
में देखा। जी हाँ, सपने में। शायद महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाके में इसे खेला जा
रहा था। मैंने 'टेनिस की गेन्द' की बात अपनी ओर से जोड़ी, सपने में तो- हमें रूमाल
खोलकर दिखाया गया था- ईंट का टुकड़ा बँधा हुआ था! 4 अगस्त की रात हमने इस सपने को
देखा। सुबह उठकर सोचा, कम-से-कम खेल का नाम नोट कर लें। फिर लगा, याद रहेगा, पर
दिन में भूल गया। नहीं ही याद आया। अगली सुबह नीन्द खुलने से पहले फिर खेल का नाम
याद आया। सोचा, आज तो इसे नोट करना ही पड़ेगा। उसी समय एक फोन आ गया और नाम नोट
करना नहीं हो पाया। बाद में फिर नाम भूल गया। बड़ा गुस्सा आया, लेकिन दोपहर तक नाम
याद आ गया।
***
लगे हाथ एक और नये खेल का जिक्र कर दिया जाय। यह
सपने वाला नहीं है, इसे हमने खेला था।
दरअसल एक रोज झमाझम बारिश हो रही थी। जवानी के
दिन थे, बैचलर थे और यूँ समझिये कि हॉस्टल में थे। कई लड़के बारिश में नहाने लगे।
अचानक हमने आइडिया दिया- फुटबॉल माँगकर लाया जाय। फुटबॉल आया। फुटबॉल के मैदान पर
पानी जमा था। उसी पर हमलोगों ने खेलना शुरू कर दिया।
बाद में आइडिया आया कि "वाटर फुटबॉल"
नाम से एक खेल बनाया का सकता है। मैदान अपेक्षाकृत छोटा हो। घास हो- असली या नकली।
मैदान में दो ईंच के करीब पानी जमा रहने की व्यवस्था हो। ऊँचाई पर कुछ फौव्वारे
लगे हों। मैदान के किनारे खम्भों पर भी फौव्वारों की व्यवस्था की जा सकती है।
यकीन मानिये, पानी पर फुटबॉल खेलने के लिए लगभग
दोगुने दम-खम की जरूरत पड़ेगी!
*****