भागलपुर से लेकर बंगाल तक जहाँ-जहाँ से
गंगाजी गुजरी है, उसके आस-पास के ग्रामीण इलाकों में बाला लखिन्दर और बेहुला की
कथा को नाटक के रुप में प्रस्तुत किया जाता है। यह आयोजन भादों के महीने में होता है। कहीं 5-7 रातों तक,
कहीं 2-3 रातों तक इसकी कहानी प्रस्तुत की जाती है। यह सामाजिक के साथ-साथ धार्मिक
आयोजन भी है।
यह आयोजन बँगला भाषा में होता है। मुझे यह एक रहस्य ही लगता
है कि जब यह कहानी भागलपुर की है, तो इसकी कथा बँगला में क्यों प्रस्तुत की जाती
है और इसकी कथा का जो "पुराण" है- "पद्म पुराण"- वह बँगला में
क्यों है? भागलपुर की भाषा "अंगिका" में यह क्यों नहीं है? हालाँकि
मैंने एक अनुमान लगाया है, जिसका जिक्र आगे आयेगा।
खैर, हमारे मुहल्ले में "बड़ी
माँ" ने कुछ वर्षों पहले इसका आयोजन शुरु करवाया। बड़ी माँ को मुहल्ले के
बँगलाभाषी "सोन्ध्या माँ" और भोजपुरीभाषी "संझिया माई" कहते
हैं। दर-असल उनकी बेटी का नाम सन्ध्या है- वह मेरी छोटी दीदी की सहेली रही है। मुहल्ले
के मेरे कुछ मित्र इस आयोजन का खर्च उठाते हैं; वैसे थोड़ा-बहुत सहयोग सबका होता है।
अभी वही कार्यक्रम चल रहा है। इस साल कहानी
को संक्षेप में प्रस्तुत किया जा रहा है- यानि तीन रातों में ही कहानी को खत्म
किया जा रहा है- आज अन्तिम रात है। कल रात बाला लखिन्दर और बेहुला का विवाह और बाला की मृत्यु की कथा दिखायी गयी। थोड़ी देर तक मैं भी जाकर बैठा था, मगर बाद में
उठकर आ गया। आते समय एक भाभी ने टोका भी- शादी छोड़कर नहीं जाना चाहिए। उस समय नाटक
में बाला की शादी का जिक्र चल रहा था। आज बेहुला बाला को जीवित करेगी।
मैं खुद पूरी कहानी नहीं जानता, न ही
रात-रात जागकर मैंने कभी इस कार्यक्रम को देखा है। फिर भी, संक्षेप में मैं आपको
बताने की कोशिश करूँगा।
चम्पा नगरी, यानि भागलपुर में एक चाँद
सौदागर हुआ करते थे। उन्होंने भगवान शिव के साथ मनसा देवी की पूजा करने से मना कर
दिया था। मनसा साँपों की देवी है, उसे "विषहरी" भी कहा जाता है। आगे
चलकर चाँद सौदागर के बेटे बाला लखिन्दर को एक साँप डँस लेता है और उसकी मृत्यु हो
जाती है। सर्पदंश से जिसकी मृत्यु होती है, उसके शव का "दाह-संस्कार"
नहीं किया जाता, बल्कि उस शव को नदी में बहा दिया जाता है- ऐसी परम्परा है।
जब बाला के शव को अर्थी सहित गंगाजी में बहाया गया, तो उसकी
पत्नी बेहुला भी उसी अर्थी पर बैठ गयी। यह कुछ वैसी ही कहानी है, जैसी कि
सावित्री-सत्यवान की। मेरा अनुमान है कि बाला की वह अर्थी भागलपुर से बहते-बहते
बंगाल में काफी दूर तक चली गयी होगी और बंगाल में ही कहीं बाला फिर से जीवित हो
गये थे। स्पष्ट है कि मनसा माँ बेहुला के सतीत्व से द्रवित हो गयी होगी और उसने
बाला के प्राण लौटा दिये होंगे। ऐतिहासिक रुप से, हो सकता है कि बंगाल में किसी
सिद्ध पुरुष या तांत्रिक ने बाला को जीवित कर दिया होगा। जो भी हो, चमत्कार की यह
घटना जरूर बंगाल में ही घटी होगी, इस कारण बेहुला की कथा बँगला में ही सुनायी जाती
है, अंगिका में नहीं।
जब सती बेहुला अपने पति बाला लखिन्दर को सही-सलामत घर ले
आती है, तब चाँद सौदागर भगवान शिव के बगल में बाकायदे मनसा देवी की प्रतिमा
स्थापित कर उनकी पूजा शुरु कर देते हैं।
***
अभी-अभी, जब मैं यह टाईप कर रहा हूँ, वहाँ भजन-कीर्तन चल
रहा है। थोड़ी देर तक हल्के-फुल्के, हास्य वाले कार्यक्रम भी चलते हैं, ताकि लोग
जुटते रहें। फिर जाकर असली कथा शुरु होगी।
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