जगप्रभा

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रविवार, 14 जुलाई 2013

57. चिरायता



       चित्र में सूखी हुई जो झाड़ियाँ आपको दीख रही हैं, वे "चिरायता" (चिरैता) की हैं। राजमहल की पहाड़ियों में बहुतायात में उगती हैं- खासकर, बरसात में। वैसे, आयुर्वेदिक दवाईयों (जैसे कि 'साफी' आदि) में जिस चिरायता का इस्तेमाल होता है, वे आसाम की होती हैं- वे बहुत लम्बी होती हैं- चार-पाँच फीट लम्बी। यह जानकारी राजन जी से मिली।
       बचपन में हम खुद ही बिन्दुवासिनी पहाड़ से मुट्ठीभर चिरायता उखाड़ लाते थे। फिर लम्बे अरसे के लिए मैं इसे भूल गया। कुछ रोज पहले एक छोटे रेलवे स्टेशन परिसर में एक बुजुर्ग सन्थाल महिला को सूखी हुई चिरायता लेकर बैठे हुए देखा। दो रुपये में एक 'मुट्ठा' चिरायता वह बेच रही थी- छोटी झाड़ियाँ थीं। मैंने एक मुट्ठा लिया।
       रात इसकी थोड़ी-सी पत्तियों को आधे गिलास पानी में डाल दिया। सुबह पानी काला हो चुका था। पत्तियों को फेंककर उस काले पानी का एक घूँट भरा- मारे कड़वाहट के आँखें बन्द हो गयीं- बचपन में पी गयी चिरायता की याद आ गयी।
       अगले रोज उस स्टेशन परिसर में मुझे चिरायता नहीं दीखा- जबकि मैं लेकर घर में रखना चाहता था। परिचित एक सन्थाल किशोर से मैंने पूछा- चिरायता कहाँ मिलेगा? वह बोला- मेरी मौसी के घर में इसका ढेर रखा हुआ है, वह हाट में बेचती है। वह मेरे लिए अपनी मौसी के यहाँ से ढेर सारा चिरायता खरीद लाया।
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       जैसा कि बताया जाता है- चिरायता खून को साफ करता है।
इसके सेवन के साथ एक चेतावनी भी दी जाती है कि लगातार बहुत दिनों तक इसे नहीं पीना चाहिए- वर्ना दूसरी दवाईयाँ शरीर पर असर नहीं करेंगी। या तो बीच-बीच में इसका सेवन छोड़ देना चाहिए, या फिर हफ्ते में दो-एक बार ही पीना चाहिए। किसी भी स्थिति में दो-तीन घूँट से ज्यादा चिरायता पी पाना मुझे तो सम्भव नहीं लगता।  
       मुझे ऐसा लगता है कि चूँकि इसका नाम "चिरायता" है, जिसमें "चिर" शब्द जुड़ा है, अतः इसका नियमित सेवन जरूर मनुष्य को "चिरायु" बनाता होगा।
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       पुनश्च:
इसे लिखने के बाद मैंने 'गूगल' के माध्यम से खोज किया, तो और भी कई बातों की जानकारी मिली। आप भी देख सकते हैं।
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चिरायता (Swertia chirata) ऊँचाई पर पाया जाने वाला पौधा है । इसके क्षुप 2 से 4 फुट ऊँचे एक-वर्षायु या द्विवर्षायु होते हैं । इसकी पत्तियाँ और छाल बहुत कडवी होती और वैद्यक में ज्वर-नाशक तथा रक्तशोधक मानी जाती है। इसकी छोटी-बड़ी अनेक जातियाँ होती हैं; जैसे-कलपनाथ, गीमा, शिलारस, आदि। इसे जंगलों में पाए जानेवाले तिक्त द्रव्य के रूप में होने के कारण किराततिक्त भी कहते हैं । किरात व चिरेट्टा इसके अन्य नाम हैं। चरक के अनुसार इसे तिक्त स्कंध तृष्णा निग्रहण समूह में तथा सुश्रुत के अनुसार अरग्वध समूह में गिना जाता है।
यह हिमालय प्रदेश में कश्मीर से लेकर अरुणांचल तक 4 से 10 हजार फीट की ऊँचाई पर होता है । नेपाल इसका मूल उत्पादक देश है । कहीं-कहीं मध्य भारत के पहाड़ी इलाकों व दक्षिण भारत के पहाड़ों पर उगाने के प्रयास किए गए हैं ।
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आयुर्वेद के अनुसार : आयुर्वेद के मतानुसार चिरायता का रस तीखा, गुण में लघु, प्रकृति में गर्म तथा कड़ुवा होता है। यह बुखार, जलन और कृमिनाशक होता है। चिरायता त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को नष्ट करने वाला, प्लीहा यकृत वृद्धि (तिल्ली और जिगर की वृद्धि) को रोकने वाला, आमपाचक, उत्तेजक, अजीर्ण, अम्लपित्त, कब्ज, अतिसार, प्यास, पीलिया, अग्निमान्द्य, संग्रहणी, दिल की कमजोरी, रक्तपित्त, रक्तविकार, त्वचा के रोग, मधुमेह, गठिया, जीवनीशक्तिवर्द्धक, जीवाणुनाशक गुणों से युक्त होने के कारण इन बीमारियों में सफलतापूर्वक उपयोग किया जाता है।
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100 ग्राम सूखी तुलसी के पत्ते का चूर्ण, 100 ग्राम नीम की सूखी पत्तियों का चूर्ण, 100 ग्राम सूखे चिरायते का चूर्ण लीजिए। इन तीनों को समान मात्रा में मिलाकर एक बड़े डिब्बे में भर कर रख लीजिए। यह तैयार चूर्ण मलेरिया या अन्य बुखार होने की स्थिति में दिन में तीन बार दूध से सेवन करें। मात्र दो दिन में आश्चर्यजनक लाभ होगा। बुखार ना होने की स्थिति में इसका एक चम्मच सेवन प्रतिदिन करें।

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बाजार से आप थोडा-सा चिरायता ले आइये और उसे आवश्यकतानुसार एक गिलास पानी में मिला लीजिए व उबलने रख दीजिए। उसे तब तक उबालें जब तक कि पानी का कलर चाय की तरह भूरा ना हो जाए। अब उस साफ शीशी में भरकर रख लीजिए व कुछ दिन सुबह खाली पेट एक-एक चम्मच इस्तेमाल कीजिए। कुछ ही दिन में आपके मंहुसे निकालने बंद हो जायेंगे और कई छोटे-मोटे बीमारियां चिरायता लेने के कारण दूर हो जाएंगे। क्योंकि चिरायता रक्त साफ करता है और शुद्ध रक्त स्वास्थ्य की पहली जरूरत है।
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चिरायते का काढ़ा एक सेर औंस की मात्रा में मलेरिया ज्वर में तुरंत लाभ पहुँचाता है । लीवर प्लीहा पर इसका प्रभाव सीधा पड़ता है व ज्वर मिटाकर यह दौर्बल्य को भी दूर करता है । कृमि रोग कुष्ठ, वैसीलिमिया, वायरीमिया सभी में इसकी क्रिया तुरंत होती है । यह त्रिदोष निवारक है अतः बिना किसी न नुनच के प्रयुक्त हो सकता है ।
अन्य उपयोग-संस्थानिक बाह्य उपयोग के रूप में यह व्रणों को धोने, अग्निमंदता, अजीर्ण, यकृत विकारों में आंतरिक प्रयोगों के रूप में, रक्त विकार उदर तथा रक्त कृमियों के निवारणार्थ, शोथ एवं ज्वर के बाद की दुर्बलता हेतु भी प्रयुक्त होता है । इसे एक उत्तम सात्मीकरण स्थापित करने वाला टॉनिक भी माना गया है ।
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31 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी लाभप्रद जानकारी ...

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  2. शुगर पेसेंट पिसकते है क्या।

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  3. चूँकि यह कड़वा है, इसलिए शुगर पेशेण्ट भी पी सकते हैं. शुगर लेवल को यह बढ़ाने से तो रहा- हाँ घटा जरुर सकता है.

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  4. चिरायता किस मौसम में पीना चाहिए

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    1. चिरायता आप पूरे वर्ष में कभी भी पनसारी से खरीद सकते हैं और सेवन कर सकते हैं | मुझे इसके सेवन से मूँह पर निकलने वाले मुहाँसों के पतन में मदद मिली थी |

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  6. सेवन विधि और समय सीमा बताए

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    1. Subah khali pet me piya jata h.khana khane ke baad nhi pina chaiye isse ulti home ki sambhawna bhad jati h..

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  7. इसको पिटने पर क्या परहेज रखना है

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  8. मुझे 1998 में मलेरिया हुआ था। दवा में लापरवाही हुई।
    अंग्रेजी दवा असरकारी नहीं रहा।
    चिरायत , पारिजात, गिलोय और निर्गुण के काढ़े से लाभ तो होता है।
    मैं छह -सात वर्ष से यह काढा ले रहा हूँ।
    छोड़ते ही पुनः हड्डी में दर्द बढ़ जाता है।
    मैं गर्मी में भी कुनकुने पानी से ही स्नान कर पाता हूँ।

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  9. Peeth dard gardan dard ghutne me dard readh ki haddi me dard ho to cirayta ka prayog kar sakte hai uttar de

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  10. Sir..
    Is chirata ko maine life me 1 bar hi istemal kiya hai.wo hai bukhar me pesab jalan me maine ek chay ki tarah 1 cuph piya jisse bikhar aur jalan dono hi 5 ghante ke ander thik ho gya thanks..
    ....ab agar mai iska sevan 7 din me 1 bar leta hu to koi problem to nhi hogi na pls muche bataye aur kin bimariyo me kam a skta hai ye bataye taki mai bhi logo ki madad kr sku....
    thankyou...
    Deepak...

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  11. रात में रख कर
    सुबह पिया जा सकता है

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  12. Iska use daily kar sakte hai kiya?? Iska hearts pe effect toh nahi padega iska clrearification kre

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  13. कितने समय तक सेवन करें

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