जगप्रभा

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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

152. छुट्टी


       बैंकों में चार दिनों की छुट्टियाँ पड़ गयी हैं। एक सज्जन ने दैनिक अखबार 'प्रभात खबर' में पत्र लिखकर बाकायदे आवेदन किया है कि सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि ऐसा न हो- बैंक प्रतिदिन खुलना चाहिए, कर्मचारियों को "रोटेशन" पर छुट्टियाँ देनी चाहिए। क्यों भाई? क्योंकि व्यवसायियों के गल्ले में रुपये ढेर जमा हो जाते हैं और यह उनके लिए परेशानी का सबब है। दूसरे और चौथे शनिवार की छुट्टियों के प्रति साहब की खास नाराजगी नजर आयी पत्र में।
       हद होती है। व्यवसायी स्वयं छुट्टियाँ क्यों नहीं ले लेते? कोई जरुरी है रोज सुबह सात बजे से रात ग्यारह बजे तक रुपये समेटना? बैंक बन्द है, और गल्ले में रुपये बढ़ने से आप परेशान हो जाते हैं (रुपये बढ़ने से परेशानी?!), तो आप भी छुट्टियाँ मनाईये। किसने रोका है? ऐसे तो न आपके पास बीबी के पास बैठने के लिए समय होता है, न बच्चों को कहीं घूमने ले जाने का। इन दिनों वही काम कीजिये। नाते-रिश्तेदारों से मिलिये, पुराने दोस्तों के साथ अड्डा जमाईये। सिर्फ पैसा कमाने के लिए तो ऊपरवाले ने आपको इन्सान नहीं बनाया है न!
       हालाँकि मेरे भी दोस्त व्यवसायी हैं- वे पागलों के तरह व्यवसाय नहीं करते। घर-परिवार के साथ समय भी बिताते हैं और छुट्टियाँ भी मनाते हैं। आज ही हमने देखा राजमंगल को- बच्चों को मोटरसाइकिल पर बैठाकर सैर पर निकला हुआ था। दरअसल, हम "84 बैच" वालों की बात औरों से जरा अलग है। (बरहरवा हाई स्कूल से 1984 में मैट्रिक देने वाले विद्यार्थियों का बैच बहुत विशाल था- इनमें से ज्यादातर अब भी मिलते-मिलाते रहते हैं, अपने-अपने क्षेत्र में प्रायः सभी सफल हैं और जिन्दगी को सही तरीके से जी रहे हैं... काम और फुर्सत के बीच तालमेल बिठाते हुए!)
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       राज नारायण वर्मा जी की फेसबुक वाल की एक बात याद आ गयी। बैंकों की हड़ताल वाले दिन उन्होंने छत पर जाकर चारों तरफ देखा था और पाया था कि सबकुछ सामान्य है- सूरज पूरब से उग रहा है... चिड़ियाँ चहचहा रही हैं... हवा चल रही है... जबकि पिछले कुछ दिनों से अखबारों/समाचार चैनलों ने प्रलय कि आशंका जता रखी थी... बैंक कई दिन बन्द रहेंगे... आसमान टूट जायेगा... धरती फट जायेगी...
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       खैर।
       हमने तो भई छुट्टी मनायी। पहले एक छोटी-सी पहाड़ी पर स्थित एक चर्च में गये। फिर उस पहाड़ी सड़क का आनन्द लेने गये, जो बरहेट की ओर जाती है। दरअसल, मेरा ख्याल था कि अभिमन्यु अभी तक उस रास्ते से नहीं गुजरा है। और टारजू (अभिमन्यु का हमउम्र- मेरा एक भांजा) चूँकि एक बाइकर है, इसलिए वह इस रास्ते को जरूर पसन्द करेगा। ऐसा हुआ भी। दोनों को उस ऊँची-नीची पहाड़ी रास्ते पर बाइक की सवारी में आनन्द आया।
       फिर एक झोपड़ीनुमा दूकान पर हमने नाश्ता किया और घर लौट आये।

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सोमवार, 7 दिसंबर 2015

151. एक कॉल "नम्बर" से-

कल (रविवार) की घटना
"ट्रिन-ट्रिन- "
मैं घर में नहीं था। 'नम्बर से' एक कॉल आती है।
"हैलो- "श्रीमतीजी फोन उठाती है।
"जयदीप जी घर में हैं?" उधर से अपरिचित महिला की आवाज आती है
"नहीं, बाहर निकले हुए हैं। आप कौन?"
"यह जयदीप जी का ही फोन है न? नम्बर डायवर्ट होकर मिला है।"
       "हाँ, उन्हीं का है। क्य़ों?"
"जयदीप जी से बात करनी है। कब तक आयेंगे?"
"आप कहाँ से बोल रही हैं?"
"जी, मुझे उन्हीं से कुछ बात करनी है।"
कहने की जरुरत नहीं कि अब तक श्रीमतीजी का पारा चढ़ चुका था। दुनिया की- खासकर, भारत की किसी भी श्रीमतीजी की यही दशा होगी।
मजे कि बात यह है कि अभी दो-एक रोज पहले ही हमदोनों "भाभीजी घर पर हैं" का एक प्रकरण देखकर ठहाके लगा रहे थे, जिसमें अंगूरी भाभी को यह शक हो जाता है उनके "लड्डू के भैया" का चक्कर किसी परायी महिला से चल रहा है, जिसका 'कोडनेम' "साक्षी" है (जबकि यह सक्सेना जी का नम्बर था); या फिर उनका चक्कर उस महिला से चल रहा है, जिनसे तिवारी जी की सगाई होने वाली थी (जबकि उसने तिवारी जी औपचारिक बातचीत की थी फोन पर)। उधर अनीता भाभी को अपने "विभू" पर सन्देह हो रहा था कि उसका चक्कर "शीला" से चल रहा है, जो कॉलेज में विभू के साथ ही थी (जबकि यह एक सामान्य मित्रता थी)।
धारावाहिक में इस तरह के प्रकरण को देखने के दो-एक दिनों के अन्दर ही मोबाइल पर इस तरह का फोन आ जाय, तो समझ सकते हैं कि एक बड़ी दुर्घटना घटने ही वाली थी।
"देखिये, मैं उनकी वाईफ बोल रही हूँ। क्या बात करनी है आपको उनसे?" श्रीमतीजी ने कड़ाई से कहा होगा।
"मैं "डिश टीवी" से बोल रही हूँ। आपका पैक...... " और उधर से सेल्सगर्ल वाली बातें शुरु हो जाती हैं।
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इस प्रकरण से इतना तो समझ में आता है कि उस डिश टीवी वाली लडकी से दो गलतियाँ हुईं- एक, 'हैलो' सुनने के बाद ही उसे अपना परिचय दे देना चाहिए था; और दो, घरों में टीवी पर कौन-से चैनल चलने हैं और कौन-से नहीं, यह फैसला श्रीमतियों के हाथ में होता है, फिर वह बेचारी "श्री" से ही बात करने पर क्यों तुली थी? ("श्री"जी आमतौर पर थोड़ी देर के लिए समाचार चैनल ही देखते हैं। बहुत हुआ, तो बच्चों के साथ-साथ कार्टून चैनल या डिस्कवरी-जैसे चैनल देख लेते हैं। मेरा तो यह भी बन्द है अभी- क्योंकि बेटा पढ़ाई के लिए बाहर है।)
लगे हाथों एक और शिष्टाचार की बात कर दूँ- जब कभी अनजान जगह पर फोन किया जाय, तो उधर से "हैलो- " का जवाब आने के बाद अपना परिचय तो देना ही चाहिए और इसके बाद जो बात कहनी चाहिए वह यह है कि- 'क्या मैं आपका दो-चार मिनट समय ले सकता/सकती हूँ?' इस प्रश्न को शालीनता के साथ कई तरह से पूछा जा सकता है।

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