जगप्रभा

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रविवार, 26 अगस्त 2018

204. दिगम्बर जेठू, बालिका नृत्यांगना तथा नैसर्गिक हँसी



      तस्वीर खींचते समय एक होता है- 'इधर देखिये, मुकुराईये' कह कर (अँग्रेजी में- 'Say Cheese') तस्वीर खींचना और एक होता है- जब कोई किसी काम में या बातचीत में, या फिर किसी भी एक्टिविटि में मशगूल हो, तब तस्वीर खींच लेना। पहले तरीके से तस्वीर खींचने पर आम तौर पर एक "कृत्रिम" हँसी कैमरे में कैद होती है, जबकि दूसरा तरीका अपनाने पर कई बार एक "नैसर्गिक" हँसी कैमरे में कैद हो जाती है।
      अभी 'विश्व छायाकारी दिवस' पर जानकारी (कि यह 19 अगस्त को क्यों मनाया जाता है) हासिल करते समय विख्यात छायाकार रघु राय का एक कथन मेरे सामने से गुजरा। कथन इस प्रकार से था: 'चित्र खींचने के लिए पहले से कोई तैयारी नहीं करता। मैं उसे उसके वास्तविक रूप में अचानक कैंडिड रूप में ही लेना पसंद करता हूं।'
"रघु राय" नाम तथा उनकी तस्वीरों से हम तब से परिचित हैं- जब पत्र-पत्रिकाओं का जमाना हुआ करता था। उनका यह कथन हमें बहुत अच्छा लगा, क्योंकि हम भी इसी सिद्धान्त पर चलना पसन्द करते हैं- भले हम छायाकार नहीं हैं।
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खैर, तो मुद्दे की बात यह है कि 15 अगस्त के दिन हम घूमते हुए शिष्टाचार वश 'दिगम्बर जेठू' से मिलने चले गये थे। कुछ देर बाद वहाँ नृत्यांगना की वेशभूषा में एक बालिका आयी अपनी माँ के साथ। याद आया- कुछ देर पहले बरहरवा हाई स्कूल के प्राँगण में ('नागरिक मंच' द्वारा आयोजित वार्षिक) स्वतंत्रता दिवस समारोह में हमने जो उद्घाटन नृत्य देखा था, उसे सम्भवतः यही बलिका नृत्यांगना कर रही थी। वह अपना पुरस्कार दिखलाने आयी थी।
दिगम्बर जेठू मेरे पिताजी के हमउम्र हैं- कुछ बड़े ही हैं- तभी तो उन्हें हमलोग 'काकू' के स्थान पर 'जेठू' कहते हैं। उस बालिका के लिए वे 'दादाजी' होंगे। तो दादा-पोती खूब मशगूल होकर बातें करने लगे। इसी बीच हमने उनकी कुछ तस्वीरें खींच लीं। जब बातचीत बन्द हुई, तब हमने तस्वीरें दिखायीं उन्हें। जेठू ने मेरी इस कलाकारी की तारीफ की कि हम एक "नैसर्गिक" हँसी को कैमरे में कैद करने में सफल रहे।
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अभी लिखते वक्त याद आ रहा है कि दिगम्बर जेठू के छोटे भाई दिलीप काकू ने भी एकबार मेरी छायाकारी की प्रशंसा की थी। वह रील वाले कैमरे का जमाना था। हमने सूर्योदय के वक्त बिन्दुवासिनी पहाड़ी पर जाकर उगते हुए सूर्य की तस्वीर ली थी। उस तस्वीर को देखने के बाद दिलीप काकू ने तुरन्त अपनी जेब से कलम निकाल कर तस्वीर के पीछे लिख दिया: "बधाई! बेटा बाप हो गया (फोटोग्राफी में)!"
बता दूँ कि दिलीप काकू का देहावसान बहुत पहले हो चुका है- वे पिताजी के बाल्यसखा थे- एक बँगला नाटक में दोनों ने जिगरी दोस्त की भूमिका भी निभायी थी।
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