इस
ब्लॉग में 26 नवम्बर'2012 का एक पोस्ट है- "सक़ीना"। उसमें सरबर ईरानी साहब का जिक्र है तथा लखनऊ से मोहर्रम
में आने वाले मौलाना साहब की नन्ही बच्ची के असमय निधन का जिक्र है।
सरबर साहब गोपाल चाचा की चाय दूकान पर अक्सर बैठते हैं।
करीब डेढ़-दो महीने पहले एक शाम वहाँ कैलाश (जो कोलकाता से कभी-कभी आता है) और
कुष्माकर भी बैठे थे। वहीं से तीनों को मैं अपने घर लाया। पता नहीं क्या बात चली,
मैंने "सक़ीना" वाली पोस्ट सरबर साहब को पढ़कर सुनाई। उन्होंने दो-तीन
जानकारियाँ ठीक भी करवाई। इसके बाद "सुदामा व कृष्ण: आज भी" वाली पोस्ट
कुष्माकर और कैलाश को पढ़ाया- उन्हीं पर यह पोस्ट है। फिर कुष्माकर की फेसबुक
आई.डी. बनायी गयी और थोड़ी देर बाद चाय-वाय पीकर सब विदा हो गये। मैंने गोपाल चाचा
की दूकान पर कुछ फोटो भी खींचे थे- उन्हीं में से एक सरबर ईरानी साहब के साथ वाले फोटो
को कुष्माकर ने अपना फेसबुक 'कवर' बनाया।
(आज वाला फोटो भी दरअसल उसी दिन का है।)
***
आज- इतने दिनों बाद अचानक मुझे सरबर साहब ने उसी चाय दूकान
से आवाज देकर बुलाया। मैं बाहर से घर लौट रहा था।
उनके पास गया। उन्होंने एक रत्न मुझे दिया। कहा- आपने तो कभी रत्न
हमसे माँगा नहीं, यह हम अपनी तरफ से आपको दे रहे हैं। उस दिन कम्प्यूटर पर
आपका काम देखे- तब से सोच-विचार कर देखे कि यह रत्न आपके काम का है। आप जिस
तरह से कुछ सोचते हो, प्लानिंग करते हो, उसमें यह मदद करेगा।
उन्होंने
इसे धारण करने का तरीका भी बताया।
मेरी
अनामिका उँगली में पहले से अँगूठी है। इसे उन्होंने मध्यमा
उँगली में पहनने को कहा। इस पत्थर की भी एक कहानी है- छोटी-सी।
अररिया
में एक रोज एक सिगरेट फूँकते हुए तथा दूसरी सिगरेट को जेब में डाले मैं अपने दफ्तर की तरफ
लौट रहा था। सामने से औघड़-जैसे एक साधू बाबा आ रहे थे। मेरे जेब में
एक भी रुपया नहीं था। उनके सामने आने पर कुछ नहीं सूझा, तो मैंने पूछ लिया-
बाबा सिगरेट पीजियेगा?
'लाओ
बच्चा।'- कहकर उन्होंने मुझसे सिगरेट लेकर अपने झोले में डाल लिया।
जब मैं आगे बढ़ने लगा, तब मुझे रोककर उन्होंने मुझे यह पत्थर दिया और साथ में
आशीर्वाद भी दिया। पत्थर महीनों तक घर में पड़ा रहा, एक रोज श्रीमतीजी ने
सही में उसे अँगूठी में जड़वा दिया- मैंने भी पहन लिया...
***
अब
एक और अँगूठी लगता है- मेरी कनिष्ठा उँगली में जुड़ने वाली है... देखा जाय...
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