हम भारतीय- आम तौर
पर- अपने इतिहास के बारे में वही जानते हैं, जो यूरोपीय इतिहासकारों ने तथा उनके
द्वारा खींची लकीरों पर चलने वाले भारतीय इतिहासकारों ने पाठ्य-पुस्तकों में लिख
रखा है। इस इतिहास को पढ़कर हम भारतीयों के मन
में हीन-भावना ही जन्मती है, क्योंकि इसमें सिर्फ हमारी पराजयों का जिक्र है। वैसे,
इतिहासकारों का एक दूसरा वर्ग भी है, जो टेली-विजन, हवाई-जहाज से लेकर परमाणु बम
तक हर आधुनिक चीज का संकेत वेद-पुराणों में खोज निकालता है। मैं व्यक्तिगत रुप से
इन दोनों ही प्रकार के इतिहासकारों को अतिवादी मानता हूँ।
बहुत साल पहले मैंने
एक दक्षिण भारतीय इतिहासकार (नाम याद नहीं- शायद के.एम. पणिक्कर या नीलकान्त
शास्त्री नाम था) द्वारा लिखी एक पुस्तक पढ़ी थी (तब मैं मद्रास में था और
अन्नामलाई विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर रहा था), जो मुझे अच्छी लगी थी। फिर भी, मुझे
ऐसी ऐतिहासिक कथाओं की जरुरत थी, जो हममें गर्व बोध जगाये।
मेरी खोज पूरी हुई,
जब मैंने कर्नल अजीत दत्त का एक कथा संग्रह पढ़ा। इसे पढ़ने के बाद मैंने अपनी बड़ी
डायरी में तीन पन्नों का एक आलेख भी लिखा, मगर अफसोस कि चार-पाँच साल बीत गये- कभी
इस आलेख को टाईप नहीं कर सका।
पिछले दिनों टीपू सुल्तान को हमारे देश/समाज का "नायक"
मानने/न मानने को लेकर जब बहस हुई, तब मेरा ध्यान उस आलेख की तरफ गया। अफसोस, कि
उस वक्त भी मैं टाईप नहीं कर सका।
आज इस वक्त मैं अपने उसी आलेख के कुछ अंश को टाईप कर रहा हूँ- पूरे
आलेख को टाईप करना अब भी नहीं हो पा रहा है।
पता नहीं, हमारे इन नायकों को इतिहास की पाठ्य-पुस्तकों से बाहर
क्यों रखा गया है... सन्देह होता है कि कहीं यह षड्यंत्र तो नहीं?
यह सही है कि बचपन में 'अमर चित्र कथा' में पढ़ी बाजीराव पेशवा
(द्वितीय) की कुछ बातें मुझे याद थीं, मगर इस संग्रह में उनकी कहानी "एक बाजी
बाकी सब पाजी" पढ़कर मुझे पता चला कि बाजीराव पेशवा ने दो-दो बार लालकिले पर
कब्जा किया था- 1719 और 1722 (सम्भवतः) में। वे
चाहते, तो मुगल सल्तनत का खात्मा कर सकते थे!
दूसरी बार मुगल बादशाह फर्रुखसियार ने बाजीराव के सम्मान में दरबार
आयोजित किया था पूछा भी था कि वे खुद (बाजीराव) दिल्ली के सुल्तान क्यों नहीं बन
जाते? बाजीराव ने बताया कि उन्होंने साहूजी (शिवाजी के पोते) को वचन दे रखा है कि
मुगल बादशाहों को नुक्सान नहीं पहुँचाना है। अब सवाल है कि साहूजी ने बाजीराव से
ऐसा वचन क्यों ले रखा था?
तो जवाब है कि साहूजी का जन्म औरंगजेब की छावनी में हुआ था और
बादशाह औरंगजेब साहूजी को पसन्द किया करते थे। 'साहू' शब्द का अर्थ होता है- साफ
दिलवाला और यह नाम औरंगजेब का ही दिया हुआ था।
ऐसे शूरवीर की कहानी- जहाँ तक मुझे याद है- मैंने इतिहास की
पाठ्य-पुस्तकों में नहीं पढ़ी। हाँ, जैसा कि मैंने बताया- "अमर चित्र
कथा" में मैंने पेशवा बाजीराव (द्वितीय) की कहानी पढ़ी थी और उसके कुछ चित्र
और संवाद मेरे जेहन में छपे हुए हैं- खासकर, बाजीराव के दो बहादूर अंगरक्षक शिन्दे
और होलकर वाला प्रसंग। (बाद में होलकर को इन्दौर और शिन्दे को ग्वालियर स्टेट ईनाम
में मिले थे। शिन्दे परिवार ही 'सिन्धिया' बना शायद।)
एक कहानी है- "राजधर्म"। यह बप्पा रावल की कहानी है।
मैट्रिक तक हम सबने इतिहास पढ़ा है। मैं सबसे पूछता हूँ- बप्पा रावल
के बारे में आप कितना जानते हैं? बहुतों को ऐसा लगेगा कि यह नाम वे पहली बार सुन
रहे हैं।
8वीं सदी से ही गजनी के लुटेरे शासकों ने भारत में लूट-पाट मचाना
शुरु कर दिया था। भारत में सोने-चाँदी का भण्डार था, मगर देश की रक्षा की
जिम्मेवारी सिर्फ 20 प्रतिशत क्षत्रियों पर थी- कोई और हथियार उठाता ही नहीं था!
गजनी के लुटेरों के लिए यह फायदे का सौदा था- बस क्षत्रियों को मार डालो- कोई
दूसरा आगे नहीं आयेगा लड़ने के लिए... ।
बप्पा रावल के राजा बनने की कहानी किसी परिकथा या फिल्म के नायक के
समान रोमांचक है। राजा बनने के बाद उसने दर्जनों उपजातियों में बँटे सभी
क्षत्रियों को "राजपुत्र" (राजस्थान के पुत्र, बाद में ये 'राजपूत'
कहलाये) के रुप में संगठित किया और गजनी पर आक्रमण किया। वहाँ का शासक सलीम भाग
खड़ा हुआ। पूरे गजनी को तुर्कों एवं अरबों से खाली करा लिया गया था। कन्धार, ईरान,
ईस्पहान, तूदान, खोरासन तक बप्पा रावल का एकलिंगी झण्डा लहराने लगा था।
आगे चलकर जब तक देशद्रोही राजा जयचन्द ने मोहम्मद गोरी को भारत आने
का निमंत्रण नहीं दिया, तब तक- यानि करीब 200 वर्षों तक- गजनी के शासक बप्पा रावल
की वीरता के ख्याल मात्र से भारत की ओर देखना भूल गये थे!
जयचन्द ने गोरी को निमंत्रण दिया था- पृथ्वीराज को हराने के लिए।
गद्दार!
अब सोचिये कि क्या सोचकर बप्पा रावल की कथा को भारतीय इतिहास के
पन्नों से गायब किया गया है?
***
एक और शूरवीर की कहानी है- महामात्य आनन्द वाशेक की। ये गजब के
सेनानायक थे! आनन्द वाशेक ने सुल्तानों की बड़ी से बड़ी फौज को अपनी बुद्धीमता एवं
रण-कौशल से पानी पिला दिया था। यह तेरहवीं सदी की बात है। बाद के दिनों में जब तक
आनन्द वाशेक जिन्दा रहे, दिल्ली के सुल्तानों ने चन्देल राजाओं को छेड़ने की हिम्मत
नहीं की।
कभी किसी ने इतिहास की पाठ्य-पुस्तक में महामात्य आनन्द वाशेक नाम
पढ़ा हो तो बताये।
***
इस प्रकार, इस कथा संग्रह में 19 कहानियाँ हैं।
"छह हाथों वाली मूर्ति" में विजयनगर साम्राज्य के पतन की
दर्दनाक एवं मार्मिक कहानी है और "कालाचाँद"- कहानी है एक उच्च कुल के
ब्राह्मण युवक के मुसलमान बनने की, जो आगे चलक पुरी के जगन्नाथ मन्दिर का ध्वंस
करता है। ये कहानियाँ काफी कुछ सोचने को मजबूर करती हैं।
***
मेरा डायरी वाला वह आलेख और भी लम्बा है, मगर मैं यहीं समाप्त करता
हूँ। कर्नल अजीत दत्त की उस पुस्तक का नाम "कथा-कशिका' है। वे फारबिसगंज के रहने वाले हैं। मैं तब पास के शहर अररिया में रहता था, जब मुझे उनकी यह पुस्तक
मिली थी।
***
सुना है कि बाजीराव पर फिल्म बन रही है। शायद बप्पा रावल और आनन्द
वाशेक पर भी कभी फिल्में बनें। शायद इस देश में कोई ऐसा नायक पैदा हो, जो
"हम्पी के खण्डहरों" के स्थान पर फिर से "विजयनगर" नामक एक
सुन्दर नगर बसाये। शायद कभी हमारी इतिहास की पाठ्य-पुस्तकों में ऐसी बातें शामिल
की जायें, जिनमें हमारी जयगाथाओं का वर्णन हो। शायद चौथी कक्षा का कोई बच्चा कभी
मराठी सेनानायक आंग्रेजी के बारे में पढ़े, जिसकी जलसेना ने फ्राँसीसी जलसेना को
पराजित किया था...
शास्त्रीजी ऐसा बदलाव ला सकते थे, मगर एक युद्ध और कुछ गद्दारों ने
उन्हें कुछ करने का समय ही नहीं दिया... अफसोस!
*****
पुनश्च: प्राचीन इतिहास पर भी मेरा एक आलेख है, जिसे आप मेरे दूसरे ब्लॉग
पर यहाँ
पढ़ सकते हैं।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अपेक्षाओं का कोई अन्त नहीं - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंजयदिप जी, हमारे इतिहास में ऐसे कई महान लोग है जिन्हें आज की पिढी जानती तक नहीं। ऐसे महान लोगों का परिचय करवाने ले लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंthanks for write this good article...Here at Sarkari Job you will be daily updated about Sarkari Jobs, Sarkari Exam, Answer Keys, Syllabuses, Admission, Interview Letter and Results.
जवाब देंहटाएंThis is very good post by author you can get the latest freejobalert updates
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