एक कहावत होती है- "चालीसा", यानि चालीस की उम्र
के बाद आँखों की रोशनी कम होना। 2006 में चालीस का होने के बाद अगले साल मैंने आँखों की जाँच करवायी
थी- मेरठ में। ये 6/6 थीं। चार-पाँच साल के बाद महसूस होना शुरु हुआ कि कम रोशनी में छोटे
अक्षर पढ़ने में परेशानी हो रही है। इस सच्चाई को हजम करने में और एक-डेढ़ साल बीते। अब एक चश्मा- मामूली-सा ही- ले ही लिया
है- छोटे अक्षरों को पढ़ने के लिए- खासकर, जब प्राकृतिक रोशनी पर्याप्त न हो। वैसे,
इसका ज्यादातर इस्तेमाल अभी तक तो सिर्फ दफ्तर
में ही हो रहा है।
तरसों सुबह दफ्तर को निकलने से पहले वही चश्मा लगाये मैं...
(नोट- फोटो में थोड़ी कलाकारी की गयी है।)
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