25 नवम्बर 2010 का
मेरा एक आलेख है- "टप्परगाड़ी" (आलेख क्रमांक- 5), जिसमें साल 1998 में
हमारे "टप्परगाड़ी" में बैठने का जिक्र है। उस आलेख में मैंने ऐसा लिखा है कि एक बाढ़ में मिट्टी की दीवार के
नीचे दबकर वह "टप्पर" नष्ट हो गया।
यह जानकारी गलत है। चौलिया
गाँव में तीन चार दिनों के लिए आयी उस बाढ़ में भी वह "टप्पर" बच गया था।
बाद के वर्षों में कई बार मैंने उस "टप्पर" को अपने उस दादाजी (पिताजी
के मामाजी) के आँगन में इधर से उधर पड़े देखा। मगर तस्वीर खींचने या अपनी भूल
सुधारने की सुध नहीं आयी।
बीते 14 नवम्बर को जब
हमारा चौलिया गाँव जाना हुआ, तो इस बार मैंने दादी से पूछ ही लिया- वह
"टप्पर" कहाँ गया?
उन्होंने ईशारा किया- एक छप्पर की तरफ, जहाँ ज्यादातर बेकार चीजें पड़ी
थीं। वहीं वह "टप्पर"- जो कभी आन-बान-शान का प्रतीक, बहू-बेटियों का
पर्दा हुआ करता था- आँसू बहा रहा था।
मैंने उसकी एक तस्वीर
ले ली। उसे ही यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। उस आलेख को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक किया जा सकता है।
*****
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें