सोमवार, 18 जुलाई 2022

270. ओलमोचा

 


                "ओल" के बारे में तो सभी जानते होंगे- इसे "सूरन" और "जिमिकन्द" कहते हैं, लेकिन ओल के पौधे के बारे में सब नहीं जानते होंगे। इसके पौधों को हमारे इलाके में "ओलमोचा" कहते हैं। बरसात शुरू होते ही ये पौधे घरों के पिछवाड़े में, परती जगहों में और 'घूरे' (जहाँ घरों का कचरा फेंका जाता है) पर उगने लगते हैं। आम तौर पर साफ-सफाई के समय इन्हें उखाड़ कर फेंक ही दिया जाता है, लेकिन पहाड़ियों (हमारे यहाँ की 'राजमहल की पहाड़ियाँ') पर जो ओलमोचे उगते हैं, उन्हें बाकायदे काटकर आदिवासी महिलाएं बाजार में बेचने के लिए लाती हैं और बरसात के उन शुरुआती दिनों में लोग बड़े चाव से उसके तनों की सब्जी खाते हैं। पहाड़ियों पर उगने वाले ये ओलमोचे होते भी बड़े-बड़े हैं।

                ओलमोचे की सब्जी बनाना कोई आसान नहीं है- हर कोई नहीं बना सकता। बनायेगा भी तो वह स्वाद नहीं आयेगा, जिसके लिए इसे खाया जाता है। घरों में अनुभवी महिलाएं ही इनकी सब्जी बनाती हैं। हालाँकि विधि मामूली है- लेकिन "खटाई" की मात्रा जो इसमें मिलायी जाती है, उसी में अनुभव काम आता है। खटाई कम हो जाय, तो खाते समय मुँह में खुजली हो सकती है। बहुत-से लोग इसे काटते-छीलते समय हाथों में प्लास्टिक की थैलियाँ पहनते हैं- कहा जाता है कि ऐसा न करने से हथेलियों में खुजली हो सकती है।

              

ओलमोचा की सब्जी बनाने की विधि, जैसा कि मेरी चाचीजी ने बताया-

पहले ओलमोचा को छीलकर, काटकर पानी में उबालना है।

उबालने के बाद इस पानी को फेंक देना है।

अब लहसून, सरसों और हरी मिर्च को पीसकर उसका पेस्ट बना लेना है।

कड़ाही में तेल डालकर पेस्ट को भुनना है- जैसे कोई भी मसाला भूना जाता है।

अब उबाले हुए ओलमोचे को अच्छी तरह से निचोड़ कर भुने हुए मसाले में डालना है।

इसके बाद नमक, हल्दी और नीम्बू का रस इसमें मिलाना है।

नीम्बू के रस के स्थान पर किसी भी खटाई का प्रयोग किया जा सकता है।

मिश्रण को तब तक भूनना है, जब तक मिश्रण कड़ाही न छोड़ने लगे।

सब्जी तैयार है।






 

शुक्रवार, 13 मई 2022

269. वर्षा-जल संग्रहण- मेरा आइडिया


 

       वर्षा-जल संग्रहण या रेन-वाटर हार्वेस्टिंग का अर्थ हुआ कि वर्षा-जल को नालियों में नहीं बहाना है, बल्कि ऐसी कोई व्यवस्था करनी है कि यह जल धरती के अन्दर रिस जाय। इसके तकनीकी पहलुओं की हमें जानकारी नहीं है। हमने बस अपनी कल्पना-शक्ति का इस्तेमाल करते हुए अपने 'उत्सव भवन' में इसकी व्यवस्था की है।

       छत का वर्षा-जल पाईप के माध्यम से नीचे आकर एक हौज में गिरता है। हौज कुएं से सटकर बना है। हौज के फर्श पर ईंटों की चिनाई जरूर है, मगर प्लास्तर नहीं है। इसलिए हौज में कितना भी पानी गिरे, कुछ घण्टों में वह जमीन में रिस जाता है। रिसने के बाद मिट्टी से छनते हुए इस जल को फिर कुएं में ही आना है।

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       विडियो में आप देखेंगे कि हौज में दो फौव्वारे लगे हुए हैं। ये भी मेरी कल्पना-शक्ति की उपज हैं। इस तकनीक के फौव्वारे हमने कहीं देखे नहीं हैं। छत पर पानी की एक टंकी से ये दोनों फौव्वारे जुड़े हुए हैं। चाबी खोलते ही फौव्वारे चालू हो जाते हैं। किसी 'मोटर' या 'पम्प' की जरुरत नहीं। इनका पानी इसी हौज में गिरता है। यह पानी फिर जमीन में रिसकर कुएं में पहुँच जाता होगा।

       फौव्वारे के निर्माण में साधारण पाईप और साधारण गमलों का इस्तेमाल हुआ है। कहीं हमने ऐसा देखा नहीं है, बस सोच-विचार कर इस तरह के फौव्वारे हमने बनवा दिये हैं।

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बुधवार, 27 अप्रैल 2022

268. कुछ नुस्खे (गर्मियों वाले)

 

       इन गर्मियों में मेरे द्वारा आजमाये जाने वाले कुछ नुस्खे इस प्रकार से हैं (ये सारे नुस्खे 'पर्यावरण-मित्रता' वाले हैं)-

 


       ठण्डा पानी। नीचे मिट्टी का घड़ा है और ऊपर 'कैण्डल' वाला फिल्टर। फिल्टर से साफ पानी घड़े में टपकता है और मिट्टी के घड़े में ठण्डा पानी रहता है। ज्यादा शुद्ध पानी चाहिए, तो मटके में ताम्बे की एक छोटी-सी लुटिया डुबाकर रखी जा सकती है। यह भी हमने किया था कभी, बेशक अभी यह किया हुआ नहीं है।

 


ठण्डा बिस्तर। यह खजूर के पत्तों की चटाई है। इससे बेहतर- बल्कि बेहतरीन- चटाई होती है बेंत के छिलकों से बनी चटाई, पर वह हमारे इलाके में मिलती नहीं है। (एक बार मिली थी।) रात सोने से पहले इसे पानी में भिंगोकर बिस्तर पर बिछा दिया जाता है। फिर इस पर सोने में आराम मिलता है। (हाँ, सिरहाने पर DC Fan है, यानि बैटरी से चलने वाला पंखा और बैटरी को- बिना बिजली के- सोलर-प्लेट से भी चार्ज किया जा सकता है- सब जानते ही हैं।)

 


कामचलाऊ बाथटब। बाथरूम को पहले ही हमने बड़े आकार का बनवाया था। उसके एक कोने में एक पक्का हौज बनवा लिया। अब गर्मियों में यह बाथटब का काम देता है। अभी इसकी जो डिजाइन है, उसके चलते इसमें ज्यादा पानी आता है। इसमें कुछ मॉडिफिकेशन करना है- राजमिस्त्री को समझा दिया गया है। तब इसमें जरा कम पानी आयेगा।

 


उपवन नहीं वन। घर के आस-पास सजावटी उपवन बनाने के बजाय हमने छोटे-छोटे वन ही उगने दिये हैं। इससे उन स्थानों का तापमान- गर्मियों में- जरा कम रहता है और थोड़ी-सी राहत मिलती है। बेशक, थोड़ी-सी जगह बैंगन-टमाटर-भिण्डी आदि के लिए भी है- लेकिन दिक्कत यह है कि हमें बागवानी का शौक नहीं है।

 



छत पर छाँव। एक छोटी छत के ऊपर अस्बेस्टस की छावनी डाल दी गयी है, ताकि गर्मियों में छत ज्यादा गर्म न हो। मुख्य छत के ऊपर क्या बनेगा- इसका अन्तिम निर्णय अभी हुआ नहीं है, इसलिए फिलहाल इसे गर्मी से बचाने के लिए इस पर थर्मोकोल की शीट डाल दी गयी है। (आठ शीट कम पड़ गयी हैं- कभी डाल देंगे।)

 


 धूप से खाना पकाना। जब गर्मियों में धूप तेज होती है, तो क्यों न इस तेज धूप का उपयोग खाना पकाने में किया जाय? यानि "सोलर कुकर" का इस्तेमाल किया जा रहा है खाना पकाने के लिए।

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गुरुवार, 17 मार्च 2022

267. 'अर्जुन कुल्फी'

 


       पहली तस्वीर में अर्जुन जी हैं। इनकी कुल्फी हमारे बरहरवा में प्रसिद्ध है। सबसे बड़ी बात है कि इन्होंने कभी कुल्फी की गुणवत्ता- क्वालिटी से समझौता नहीं किया है। इलाके के आबाल-वृद्ध-वनिता सभी इनकी कुल्फी को पसन्द करते हैं और आज तक किसी को भी शिकायत का मौका इन्होंने नहीं दिया है। मेरे ख्याल से, तीस-चालीस सालों से वे कुल्फी बना रहे हैं और आज "अर्जुन कुल्फी" एक विश्वनीय ब्राण्ड के रूप में जाना जाता है हमारे बरहरवा में।

       पाँच साल पहले जब हमलोग माँ-पिताजी की हीरक जयन्ती- डायमण्ड जुबली मना रहे थे, तब सुबह घर में हवन हुआ था और शाम के समय छोटे-से प्रीतिभोज का आयोजन हुआ था। मई का महीना था, सबका कहना था कि आइस्क्रीम की व्यवस्था होनी चाहिए। तब हमने आइस्क्रीम की व्यवस्था करने के बजाय अर्जुन जी से कहा था कि वे शाम को अपना ठेला लेकर ही हमारे घर आ जायें और मेहमानों को कुल्फी खिला दें- जो जितना खाना चाहे। ऐसा ही हुआ था।  

       एक और बात- होली के दिन वे "भांग वाली कुल्फी" भी बनाते थे- अब बनाते हैं कि नहीं, पता नहीं- पूछना भूल गये। हो सकता है कल-परसों उनके पास भांग वाली होली स्पेशल कुल्फी भी मिले...

       (भांग का नशा बहुत बुरा होता है- सही बात है, पर जिन्दगी में एक बार अगर होली के दिन भांग का नशा नहीं चढ़ा, तो हमें नहीं लगता कि जिन्दगी को "सम्पूर्ण" माना जाना चाहिए। बस पूरी जिन्दगी में एक बार, दुबारा आजमाना मूर्खता होगी।)

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       दूसरी तस्वीर में जो नौजवान "अर्जुन कुल्फी" खा रहा है, वह अभिमन्यु है। पूरा नाम- अभिमन्यु शेखर।

       जहाँ आजकल के नौजवान कानों के ऊपर महीन बाल रखते हैं- मतलब ऐसा फैशन चला हुआ है, वहीं साहबजादे कानों के ऊपर लम्बे बाल रखना पसन्द करते हैं; 1970 के दशक में विनोद मेहरा, फारूक शेख-जैसे अभिनेता जैसे बाल रखा करते थे। (हालाँकि वह इन अभिनेताओं के नाम से भी परिचित नहीं होगा शायद।)

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गुरुवार, 10 मार्च 2022

खजुराहो की प्रस्तर प्रतिमाओं के रेखाचित्र

घर के किसी कोने में रखा एक पैकेट मिला, जिसमें कुछ कतरन वगैरह रखे हुए थे। 
उसी में 15 रेखाचित्र भी मिले। 
ये रेखाचित्र हमने करीब 30 साल पहले बनाये थे। तब हम ग्वालियर में थे और वहाँ से खजुराहो घूमने जाने की योजना बना रहे थे। लाइब्रेरी से खजुराहो पर एक मोटी-सी अँग्रेजी पुस्तक उठा लाये- जानकारी हासिल करने के लिए। उसमें बहुत सारी प्रस्तर प्रतिमाओं के छायाचित्र भी थे। लगे हाथ हमने छायाचित्रों को देख-देख कर इन रेखाचित्रों को बनाया था। 
रेखाचित्रों पर कुछ नम्बर भी पड़े हुए नजर आये, जिससे हम अनुमान लगा रहे हैं कि हमने शायद 50 के लगभग चित्र बनाये थे। 
अन्त में- सफाई दे दी जाय कि हमने न तो विधिवत चित्रकारी सीखी है और न ही कभी अभ्यास किया है। बस एक नैसर्गिक गुण है कि थोड़ी-बहुत चित्रकारी कर सकते हैं।