जगप्रभा

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बुधवार, 14 जुलाई 2021

255. फिर फिर मोती झरना (अबकी चलचित्रकथा)

 


       मेरे इस ब्लॉग पर "मोती झरना" का जिक्र 25 जुलाई 2012 की पोस्ट "बोल बम" में आया हुआ है। इसके बाद 21 अगस्त 2013 की पोस्ट में इसकी यात्रा की एक छायाचित्रकथा "मोती झरना की यात्रा: चित्रकथा" है। इनके अलावे 8 सितम्बर 2013 की पोस्ट "मोती झरना का एक पुराना दृश्य" में भी मोती झरना का जिक्र है। 

    (ओ-हो, भूल ही गये थे- 28 जुलाई 2019 को भी हमलोग मोती झरना गये थे। तब ब्लॉग पर नहीं, बल्कि फेसबुक एल्बम के माध्यम से वहाँ की चित्रकथा (फोटो, विडियो दोनों थे एल्बम में) प्रस्तुत किये थे। उस एल्बम का लिंक यहाँ है। आज 28 जुलाई 2021 को जब फेसबुक ने याद दिलाया, तो याद आया।)

      आज हम मोती झरना- साथ में "कन्हैया स्थान"- की यात्रा की "चलचित्रकथा" पोस्ट करने जा रहे हैं। यानि आज की पोस्ट में छायाचित्र के स्थान पर विडियो होंगे। दरअसल, यह कार्यक्रम मुहल्ले की महिलाओं का था- हमें बस घसीट लिया गया था। (उन्हें मालूम था कि सैर-सपाटे में अगर देर हो जाय, तो हम बक-झक करने वाले नहीं हैं, इसीलिए मेरा चयन हुआ था। ऐसा हुआ भी था।)  

       तो प्रस्तुत है, फिर फिर मोती झरना की चलचित्रकथा-

 

           10 जुलाई को हमलोग सुबह 9 बजे रवाना हुए थे। हमारे यहाँ से 50-55 किलोमीटर की दूरी है। नयी सड़क बहुत अच्छी है, जो बाकुडीह, तीनपहाड़ होते हुए महाराजपुर जाती है। महाराजपुर में ही मोती झरना है। पहले ट्रेन से ही जाना-आना होता था। अभी एक तो कोरोना के चक्कर में ट्रेनें कम हैं, दूसरी सड़क अच्छी बन गयी है। तीसरी बात, मोती झरना से राजमहल के "कन्हैया स्थान" भी घूमने का कार्यक्रम था, इसलिए सड़क मार्ग को चुना गया।

 


     एक जमाना था, जब मोती झरना बीहड़, बियाबान हुआ करता था। सावन के सिर्फ अन्तिम सोमवार के दिन वहाँ भीड़ जुटती थी- काँवड़ियों के रूप में। बता दिया जाय कि यहाँ झरने के पीछे एक प्राकृतिक गुफा में शिव मन्दिर भी है। आज यह एक पर्यटन स्थल है। वर्षाकाल में जैसे ही झरने में पानी की मात्रा बढ़ती है, पर्यटक यहाँ जुटने लगते हैं। वैसे, अब सालोंभर इक्के-दुक्के लोग यहाँ आते रहते हैं। सौन्दर्यीकरण का काम भी बहुत हुआ है।

     अब तालाबों में नहाने का जमाना तो रहा नहीं। नदियों में कुछ ही लोग नहा पाते हैं। ऐसे में यहाँ आकर हर कोई मस्त हो जाता है। नहाने के दो बड़े-बड़े कुण्ड बना दिये गये हैं, जिनसे होकर झरने का पानी बहता है। खूब नहाते हैं लोग यहाँ- घण्टों। 


    (बस किसी "कॉरपोरेट" की नजर इसे न लगे- वर्ना यहाँ 'एण्ट्री फीस' लगा दी जायेगी और नहाने का चार्ज घण्टे के हिसाब से वसूला जाने लगेगा। मेरे ख्याल से, ऐसे किसी प्रयास का जबर्दस्त विरोध जनता की ओर से दर्ज करवाया जाना चाहिए।)

 

     साल के 365 दिन घर के काम-काज में लगी रहने वाली महिलाओं के लिए यहाँ आना एक दिन की आजादी के समान होता है। 


        चैतन्य महाप्रभु बंगाल से वृन्दावन जाने के क्रम में 1585 में कन्हैया स्थान आये थे। गंगा किनारे यह स्थान एक रमणीक, शान्त और आध्यात्मिक सुकून देने वाला स्थान है। किंवदन्ती के अनुसार कृष्ण एक बार गोपियों के साथ वृन्दावन से नावों की यात्रा करते हुए इस स्थान पर आये थे। यहाँ उन्होंने गोपियों संग रासलीला खेली थी। तब से इस स्थान को "कन्हाई नाट्यशाला" कहा जाता है। पहले साधारण मन्दिर था, अब इस्कॉन के तत्वाधान में मन्दिर को वृहत रूप दिया जा रहा है। 


    टीम की यंग लेडी ब्रिगेड। 


    कन्हैया स्थान से हमलोग राजमहल आये। कुछ रिश्तेदारों के घर जाना हुआ। इसी क्रम में उन स्थानीय घाटों पर भी हम गये, जहाँ नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत घाटों का सौन्दर्यीकरण किया गया है। ऐसे ही एक घाट का दृश्य। बस स्थानीय लोग इस सौन्दर्य को बनाये रखें।  

 


     सावन अभी आया नहीं है, आषाढ़ ही चल रहा है। आजकल सावन में होने वाली भीड़ से बचने के लिए हमलोग मोती झरना से पहले घूम आये। वहाँ पार्क में झूले लगे हैं- उन्हें सावन के झूले मान लिया गया... 

    सैर के बाद लौटने में रात के साढ़े आठ बज गये थे। 
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