जगप्रभा

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गुरुवार, 20 मई 2021

249. गाना


       गाने के मामले में हम उन लोगों में आते हैं, जो तभी गाते हैं, जब उनके कन्धे पर तौलिया, हाथ में साबुनदानी हो; या सुनने वाला (कम-से-कम) आस-पास कोई न हो।

       संगीत का हम 'सा' भी नहीं जानते हैं, मगर चूँकि गाना सुनना भारतीयों के जीन में होता है, इसलिए गाने हम भी सुनते हैं। लगभग सारे गायक-गायिका हमें पसन्द हैं। वैसे, अगर एक को चुनने कहा जाय, तो हम शैलेन्द्र सिंह को चुनेंगे।

       कुछ महीनों पहले हमने (अपने उत्सव भवन में) अपनी सिल्वर जुबली वाले कार्यक्रम में जिसे भी गाते हुए देखा- शुभंकर दास को, अभिमन्यु के दोस्त को, अपनी भतीजी को- पाया कि सब मोबाइल में कुछ देख-देख कर गा रहे हैं। समझ गया कि यह 'कराओके' का कोई आधुनिक संस्करण होगा। हमारे जमाने में इसके लिए खास 'कैसेट', फिर सी.डी. हुआ करती थी शायद- देखा नहीं, सुना ही था।

       उसी मौके पर लालू भैया (कुमुद आर्य) ने हमें जो गिफ्ट दिया था, वह एक स्पीकर था, जिसके साथ वायरलेस माइक भी था। महीने भर बाद जब हमने उत्सव भवन में ही दोस्तों के साथ ऐरोबिक्स, फ्री हैण्ड एक्सरसाईज और योग का अभ्यास शुरू किया था (फिलहाल बन्द है), तब इसी स्पीकर में म्युजिक बजता था। कुछ सेमिनार में माइक का भी इस्तेमाल हुआ। होली मिलन वाले कार्यक्रम में भी माइक का इस्तेमाल हुआ था- उद्घोषणा में।

       खैर, आज बैठे-ठाले हमने युट्युब पर 'कराओके' वाले गानों की खोज की, तो पाया कि हम-जैसे नालायक भी गाने के बोल को पढ़कर गा सकते हैं। इतना ही नहीं, किस विन्दु पर गाना शुरू करना है, कहाँ रूकना है- यह भी स्पष्ट समझ में आ रहा था।

तो फिर देर क्या थी? हमने माइक थामा और अपने बेसुरे एवं बेहूदे स्वर में मस्त होकर गाना शुरू कर दिया। एक गाने की बाकायदे "विडियो रिकॉर्डिंग" भी करवा ली- श्रीमतीजी से।

       ...तो उसी विडियो को प्रस्तुत करने के लिए यह पोस्ट है- ताकि मानव-सभ्यता के इतिहास में दर्ज रहे कि हमने भी कभी गाना गाया था!

       संगीत जानने वालों से हम क्षमा माँगते हैं और येसुदास साहब के पैर पड़ते हैं- कान पकड़ कर उट्ठक-बैठक करने के लिए भी राजी हैं। शायद दुबारा ऐसे हरकत हम कभी न ही करें!  



 

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