जगप्रभा

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मंगलवार, 20 मार्च 2018

199. "डाना"



       हमारे इलाके के एक झील का नाम है- पतौड़ा। बरहरवा से सात-आठ किलोमीटर दूर- उधवा कस्बे के पास। इस पर पहले से मेरा एक आलेख है इस ब्लॉग पर।
       अभी खबर है कि इस बार सबसे अधिक प्रजाति के प्रवासी पक्षी इसी पतौड़ा झील में आये थे।
Bird Watching अपने आप में एक शौक है। चिड़ियों की छायाकारी भी एक शौक है। मुझे गर्व है कि फेसबुक पर ऐसे ही एक छायाकार की मित्रता मुझे हासिल है।
मुझे तो बस चिड़ियों का कलरव पसन्द है- इससे ज्यादा कुछ नहीं। अभी जो ऋतु चल रही है, इसमें सुबह-सुबह नहीं भी तो कम-से-कम दो दर्जन तरह की चिड़ियों का कलरव सुनायी पड़ता है, पर मैं अज्ञानी ज्यादा-से-ज्यादा आठ-दस चिड़ियों की आवाजों को पहचानता हूँ।
अब यह संयोग ही है कि जब ऐसी खबर अखबार में छपी है- मैं "बनफूल" का "डाना" उपन्यास पढ़ रहा हूँ। डाना, यानि डैना। पुस्तक चिड़ियों पर ही आधारित है- ऐसा कहा जा सकता है, मगर नायिका का भी नाम इसमें "डाना" है। वह बर्मा की एक शरणार्थी युवती है। उसका नाम एक अँग्रेज नर्स ने "डायना' रखा था, जो बाद में "डाना" बन गया। उपन्यास में तीन और प्रमुख चरित्र हैं- एक पक्षी वैज्ञानिक, जो पक्षियों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहता है; एक अवकाशप्राप्त सज्जन, जो कवि हैं और किसी भी चिड़िया को देखकर मुग्ध होकर उसपर कवितायें रचने लगते हैं; और एक दुनियादार सज्जन, जो रहते तो इन्हीं दोनों के साथ हैं, मगर पक्षियों में कोई रुचि नहीं रखते- हाँ, उनके स्वाद (पक्षी का मांस) में रुचि जरुर रखते हैं। इस प्रकार, उपन्यास जरा अलग हटकर है।
हालाँकि "डाना" का अनुवाद सम्भव नहीं लगता, फिर भी, अगर कभी अनुवाद किया, तो हम इसके आवरण पर मित्र Sanjay Kumar Singh की किसी तस्वीर का उपयोग करना चाहेंगे....
हमने पढ़ा है कि इस उपन्यास को लिखते समय "बनफूल" ने बाकायदे दूरबीन लेकर पक्षियों का गहन अध्ययन किया था। हमने यह भी पढ़ा है कि बँगला के एक अन्य लेखक परशुराम ने "बनफूल" को सलाह दी थी कि "डाना" उपन्यास का अँग्रेजी में अनुवाद करवा कर इसे "नोबल पुरुस्कार" के लिए भेजा जाना चाहिए। "बनफूल" पुरुस्कारों पर यकीन नहीं करते थे।
वैसे, लगता तो नहीं कि "डाना" का अनुवाद सम्भव है। हर दूसरे-तीसरे पेज पर एक कविता है और पद्य का अनुवाद हमेशा कठिन होता है।
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"डाना" मँगवाने के साथ ही साथ मैंने डॉ. सलीम अली की प्रसिद्ध पुस्तक "भारत के पक्षी" को भी मँगवा लिया था, क्योंकि मुझे पता था कि "डाना" में बहुत-सी चिड़ियों का नाम बँगला में होगा और मैं शायद उन्हें न पहचान पाऊँ। ऐसे में, डॉ. सलीम अली के पुस्तक काम आती। एक Exotic India नाम की वेबसाइट पर बीते नवम्बर में ऑर्डर दिया। दो महीनों बाद उन्होंने सूचित किया कि पुस्तक आउट ऑव स्टॉक है। आज चार महीने बीत गये, अभी तक पुस्तक नहीं मिली है।
लगता है कहीं और से इसे मँगवाना पड़ेगा।
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यह एक सुखद संयोग ही है कि 20 मार्च को इस आलेख को लिखा और देर रात पता चला कि कि आज "विश्व गौरैया दिवस" है।

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