बिहार-झारखण्ड
में करवा-चौथ का चलन लगभग नहीं है; इसके बदले इधर एक दूसरा त्यौहार मनाया जाता है। मगर मेरी सहधर्मिणी अंशु चूँकि मेरठ की है, इसलिए वह
विवाह के बाद से ही, यानि ’96 से ही यह त्यौहार मनाती है।
’96 में हमलोग तेजपुर
में थे- आसाम की हरी-भरी वादियों में। उसके पहले करवा चौथ वाले दिन सुबह-सुबह ही मुझे
40-45 किलोमीटर दूर ‘मिसामारी’ जाना पड़ा था। दरअसल वायु सेना का दो-दो हफ्ते का (ड्राय)
राशन नजदीक के किसी थल सेना युनिट से ही आता है- उसी सिलसिले में मुझे जाना पड़ा था।
तीन-चार गाड़ियों में राशन लाकर उसे अपने राशन स्टैण्ड में उतरवाकर जब तक मैं डेरे
पर पहुँचा- रात हो चुकी थी- अंशु के व्रत तोड़ने का समय हो रहा था।
यहाँ खास बात यह है कि
मैंने भी दिन-भर पानी नहीं पीया था। अंशु के साथ ही मेरा भी व्रत (एक तरह से) खुला
था।
इसके बाद 15 वर्षों तक
मैं लापरवाह बना रहा- इस त्यौहार के दौरान।
आज इस 16वें वर्ष में
मैंने फिर फैसला किया कि अगर वह मेरे लिए व्रत रखती है, तो मुझे भी उपवास रखना
चाहिए। हालाँकि मैंने कहा था कि मन करेगा तो मैं चाय पी लूँगा; पर मैंने नहीं पी।
अभी अंशु दीया तैयार
कर रही है... 7 बज चुके हैं... एकाध घण्टे में ही चाँद उगेगा... तब हम दोनों साथ
ही जल ग्रहण करेंगे...
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