कल शाम गौरैया घोंसले में नहीं आयी। यह तो चिन्ता की बात थी ही, ऊपर से, देखा, एक छिपकली
घोंसले में घुस रही है- गौरैयों के न होने का फायदा उठाते हुए। एक छ्ड़ी से हेलमेट
पर आवाज किया, तो थोड़ी देर में छिपकली निकल कर भागी। मगर घोंसले से चूँ-चूँ की
आवाजें आनी बिल्कुल बन्द हो गयीं।
करीब हफ्ते भर से घोंसले से चूँ-चूँ की
आवाजें आ रहीं हैं। रात हमारे खाना खाते वक्त माँ गौरैया रोटी के टुकड़े लेकर जाती
है। जरूर इन्हें चबाकर इनमें अपनी लार मिलाकर इन्हें अपनी चोंच से वह बच्चों को
खिलाती होगी। इस वक्त चूँ-चूँ की आवाजें और तेज हो जाती हैं।
रात जब हम सोने जा रहे थे, तब भी देखा
गौरैया नहीं आयी थीं। घोंसले से आवाजें भी नहीं आ रही थीं। हालाँकि अंशु ने बताया कि
उसने हल्की आवाजें सुनी थीं। मुझे लगा, मुझे तसल्ली देने के लिए वह ऐसा बोल रही है।
सुबह आज देर से सोकर उठ। उठते ही खबर मिली-
गौरैया आ गयी है और घोंसले से चूँ-चूँ की आवाजें भी आने लगी हैं। यानि कल शाम या
तो अन्धेरे के कारण या फिर, रास्ता भटक जाने के कारण गौरैया नहीं आयी थीं।
अब फिर घर चहचहाहट से भर गयी है।
अब ये बच्चे उड़ना सीखें, तो हम भी निश्चिन्त
हो जायें...
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