सोमवार, 31 मार्च 2014

106. "ढेलाकंटा" के फूल तथा नववर्ष





       "ढेलाकंटा" एक फल हुआ करता था हमारे इलाके में। छोटा-सा फल काला-सा। स्वाद कुछ खास नहीं, मगर बच्चों को इसे पेड़ से तोड़कर खाने में उतना ही मजा आता था, जितना कि बेर तोड़कर खाने में।
       इस पेड़ की खासियत यह थी कि गर्मियाँ शुरु होते ही इसके सारे पत्ते झड़ जाते थे और इसकी सारी टहनियाँ सफेद फूलों से लद जाती थीं।
       बाद में इसमें नयी पत्तियाँ आती थीं और फल लगने शुरु हो जाते थे। जब गर्मी चरम पर होती थी, तब इसके फल पकते थे।
       पहले तो हमारे घर के पिछवाड़े में ही इसका एक विशाल पेड़ हुआ करता था। उसपर हमलोग झूला भी डालते थे, गर्मियों की दोपहर उसी के नीचे खेलते थे और पेड़ पर चढ़कर ढेलाकंटा तोड़ते थे।
       अब इसके बड़े पेड़ नहीं दीखते। इक्के-दुक्के छोटे पेड़ दीख जाते हैं। ऐसे ही एक पेड़ के सफेद फूलों को देखकर याद आया- हमारे विक्रम सम्वत् के नये साल का असली स्वागत तो यही करता है। हालाँकि पीपल में भी नये पत्ते आ चुके हैं, मगर फूल तो फूल ही हैं...
       उसी पेड़ की एक तस्वीर 
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