जब मैं 22-23 साल का युवा हुआ करता था, तब अक्सर काली पैण्ट और
सफेद शर्ट पहनना पसन्द करता था; और आज जबकि मैं 45-46 साल का अधेड़ (बल्कि
बुजुर्ग!) हूँ, तो अक्सर गहरे रंग की शर्ट पहनता हूँ! (मेरे ब्लॉग 'आमि यायावर'
में जाकर पड़ताल किया जा सकता है कि सफेद शर्ट-काली पैण्ट मुझे कितनी पसन्द थी!)
मेरे ड्रेस कोड में इस परिवर्तन के पीछे श्रीमतीजी का हाथ रहा है
और मुझे सन्देह है कि श्रीमतीजी के ब्रेन वाश के पीछे मेरे किसी रिश्तेदार का हाथ
रहा है- कि इसे काली पैण्ट और सफेद शर्ट पहनने से रोको-।
खैर, श्रीमतीजी को आधी सफलता ही मिल पायी;
क्योंकि शर्ट तो मैंने सफेद पहननी छोड़ दी, मगर काली पैण्ट मैं नहीं छोड़ पाया और
अन्त में श्रीमतीजी ने इसे स्वीकार कर लिया। अब वे खुद ही मेरी पैण्ट के लिए काला
कपड़ा पसन्द करती हैं। (वैसे, काले में भला पसन्द कैसी?)
जब मैं दसवीं में था, तभी काली पैण्ट का
चस्का लगा था। यानि आज करीब तीस साल से मैं काली पैण्ट ही पहन रहा हूँ! बीच में
दो-तीन बार दूसरे रंग को आजमाना चाहा, पर बात नहीं बनी। यहाँ तक कि (युवावस्था के
दिनों में) मेरी जीन्स भी काली ही हुआ करती थी।
कुछ साल पहले मेरी पुरानी पसन्द को ध्यान
में रखते हुए श्रीमतीजी ने सफेद शर्ट बनवायी थी मेरे लिए, मगर पहनने का ध्यान ही
नहीं रहता। अब तो ऐसी स्थिति है कि जो कपड़े वे निकाल कर रखती हैं, वही पहन लेता
हूँ। दो-चार रोज पहले पता नहीं कैसे उन्होंने सफेद शर्ट निकाल दी। उसे पहनने के
बाद मैंने कहा- चलो तस्वीर भी खींच दो सफेद शर्ट काली पैण्ट में। उन्होंने मेरी
गलतफहमी दूर की- यह सफेद नहीं, हल्का आसमानी है। जो भी हो, मुझे तो सफेद ही लगती
है। सो उस तस्वीर के बहाने यह लिख रहा हूँ।
साथ ही, एक जमाने के एक विज्ञापन की एक
मशहूर् 'पंच लाइन' की तर्ज ("पनामा के दमदार कश की कसम, किसी फिल्टर में
कहाँ ये दम!"- अब हिन्दी में ऐसे दमदार विज्ञापन बनते ही कहाँ हैं?) पर कहना
चाहता हूँ- "काली-सफेद की कसम, किसी रंग में कहाँ ये दम!"
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