बुधवार, 9 अप्रैल 2014

107. रामनवमी' 2014



       बरहरवा में चैत्र नवरात्र के अवसर पर बिन्दुवासिनी मन्दिर में 5 दिनों का शतचण्डी यज्ञ होता है- पहाड़ी बाबा ने इसकी शुरुआत की थी। पंचमी को यज्ञ शुरु होता है और नवमी को पूर्णाहुति होती है। इस दौरान मन्दिर में काफी लोग आते हैं।
       पहले ऐसा होता था कि प्रथमा तिथि (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) से ही मेला लगना शुरु हो जाता था, पंचमी से नवमी तक मेले में काफी भीड़-भाड़ रहती थी और दशमी का मेला विशेष रुप से जनजातीय समुदाय वालों के लिए होता था। ढोल-नगाड़ों के साथ छोटे-बड़े जुलूस बनाकर ये मेले में आते थे- नाचते-झूमते।
       अब तौर-तरीके बदल गये हैं। अब यज्ञ की समाप्ति के बाद मेला ठीक से जमना शुरु होता है और यह प्रायः महीने भर तक रहता है।
       बरहरवा का यह "रामनवमी" मेला रात का मेला है और इलाके में काफी प्रसिद्ध है।
       नवमी के रोज मन्दिर जाना हुआ था। उसी के कुछ छायाचित्र:

1.   मन्दिर का सम्मुख दृश्य। (मन्दिर पहाड़ी पर है। सीढ़ियों पर खासी भीड़ थी, उसका भी चित्र लिया था- पता नहीं क्यों नहीं आया?)


2.        भगवान सूर्य का रथ।


3.       मातृ मन्दिर के सामने तो इतनी भीड़ थी कि ग्रिल तक भी पहुँचना मुश्किल था!


4.       और यह जो भीड़ देख रहे हैं, इसका ध्यान यज्ञशाला की तरफ है, जहाँ थोड़ी देर बाद यज्ञ की "पूर्णाहुति" होने वाली है। (यज्ञशाला के अन्दर हवनकुण्ड की तस्वीर लेते समय कुछ तकनीकी समस्या आयी, जो ठीक नहीं कर पाया, अतः मैंने यह मान लिया कि हवनकुण्ड की पवित्र अग्नि की छायाकारी नहीं करनी चाहिए!)


5.       पहाड़ी बाबा की प्रतिमा के सामने।


6.       शिव के दो प्रसिद्ध रुपों- अर्द्धनारीश्वर तथा ताण्डव नृत्यरत- की प्रतिमायें। प्रसंगवश, सती के रक्त की तीन बून्दें इस पहाड़ी पर गिरी थीं, जिस कारण इसे एक शक्तिपीठ की मान्यता प्राप्त है।


7.       बरगद।


8.       हनुमानजी की विशालकाय प्रतिमा। संयोगवश, इस बार रामनवमी मंगलवार को ही पड़ी। कहते हैं कि हिमालय से संजीवनी बूटी ले जाते वक्त हनुमानजी ने इस चोटी पर एक पैर रखा था।


9.       दीक्षा कुटीर तथा "अद्वैतम" गुफा। कुटिया पहले झोपड़ी थी, जर्जर होने के बाद हाल ही में इसका जीर्णोद्धार हुआ है- नये रुप-रंग में।


10.    पहाड़ी बाबा की कुटिया- पहले इस पर भी फूस की छप्पर थी। (गुरुमन्दिर की भी तस्वीर नहीं आयी- पता नहीं क्यों?)


11. रामनवमी का जुलूस भी निकलता है, जिसमें मन्दिर के साधू पहले हाथियों पर बैठते थे। अब रथ आता है। यह रात के समय का चित्र है- जुलूस लौट रहा है बरहरवा की सभी सड़कों पर घूमने के बाद।

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