जगप्रभा

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गुरुवार, 11 अप्रैल 2024

276. पिताजी की एक सीख

 

चेतावनी: यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, किसी को सलाह देने का इरादा मेरा बिलकुल नहीं है। स्वास्थ्य का मामला है, कृपया सलाह योग्य चिकित्सक से ही लें।

 

माँ-पिताजी नाती-पोतों के साथ: एक पुरानी तस्वीर

मेरे पिताजी और दादाजी दोनों होम्योपैथ चिकित्सक रहे थे।

वर्षों पहले एक बार पिताजी ने मुझसे कहा था कि पैंतीस-चालीस की उम्र के बाद ‘फेरम फॉस,’ ‘कैलक्रिया फॉस’ और ‘मैग फॉस’ की गोलियों की शीशियाँ घर में हमेशा रखना और बीच-बीच में ऐसे ही चार-चार गोलियाँ खा लिया करना।

पिताजी ने जब यह बात बतायी थी, तब मेरी उम्र बीस-बाईस रही होगी, तो स्वाभाविक रूप से मैंने उनकी इस सलाह को एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया— यानि मैं भूल गया। दूसरी बात, कसरत और योगाभ्यास— अनियमित ही सही— की मेरी आदत बचपन से बनी हुई थी। ऊपर से, भारतीय वायु सेना में कमान की तैराकी टीम में भी मैं शामिल हो गया था। उस दौरान (1987 से 1995 तक) बहुत कसरत और बहुत तैराकी करता था मैं। तो मेरे मन में यही था कि मुझे कभी इस तरह की गोलियों की जरूरत नहीं पड़ेगी।

 

जब मेरी उम्र पैंतालीस के करीब हुई, तब एकाएक मैंने महसूस किया कि घुटनों में हल्का दर्द रहने लगा है— खासकर सुबह के समय। एक बार राजन जी से बातचीत के क्रम में मैंने इसका जिक्र किया। उन्होंने तुरन्त कहा, “कैल्शियम कम हो गया है, कैल्शियम की गोली लो।”

मुझे उनकी बात कुछ सही लगी। घर आकर नेट पर सर्च किया। पता चला— युवा उम्र तक शरीर ठीक भोजन से कैल्शियम लेता रहता है, लेकिन एक उम्र के बाद यह प्रक्रिया सुस्त पड़ जाती है, तब शरीर सीधे हड्डियों से कैल्शियम लेने लगता है। परिणाम— घुटनों में दर्द।

मुझे अचानक पिताजी की बात याद आ गयी कि क्यों उन्होंने कहा था कि पैंतीस-चालीस की उम्र के बाद ‘कैलक्रिया फॉस’ की दो-चार गोलियाँ यूँ ही खाते रहना!

 

इसके कुछ दिनों बाद टीवी पर एक आयुर्वेदाचार्य को यह बताते हुए सुना कि  घुटनों में अकड़न एवं दर्द का कारण कैल्शियम की कमी तो होती ही है, मैग्निशियम की भी कमी होती है। तब मुझे समझ में आया कि पिताजी ने साथ में ‘मैग फॉस’ की गोलियाँ भी साथ में लेते रहने के लिए क्यों कहा था।

जब अभिमन्यु से (फोन पर) इन बातों का जिक्र हुआ, तो उसने बताया कि मैग्निशियम शरीर के अन्दर बनता ही नहीं है, इसे हमेशा बाहर से ही लिया जाता है। यानि यह शाक-सब्जियों में होता होगा और मैं बचपन से ही शाक-सब्जी बहुत कम खाता था— बस नाम के लिए खाता था।

 

जो भी हो, ‘फेरम फॉस’ वाला मामला साफ हुआ एक जमाने के बाद— इसी साल जनवरी में। स्वामी विवेकानन्द जयन्ती के दिन मैं श्रीमतीजी के साथ रक्तदान शिविर में गया था। (1997-98 के बाद से रक्तदान नहीं किया था, इस बार सोचा कि किया जाय।) शिविर में पता चला कि जिनका HB 12 से कम होगा (जहाँ तक याद है, 12 ही कहा गया था), उनका रक्त नहीं लिया जायेगा। मेरा तो 12 से अधिक हो गया— शायद 12.3, लेकिन श्रीमतीजी का 12 से नीचे रह गया— शायद 11.8। तो वे रक्तदान नहीं कर सकीं, मैंने किया। अब जाकर समझ में आया कि पिताजी ने ‘कैल’ और ‘मैग’ के साथ-साथ ‘फेरम फॉस’ खाते रहने की सलाह क्यों दी थी।

 

अन्त में दो बातें। घुटनों का दर्द— जहाँ तक याद है— तीन महीनों में ठीक हो गया था। इस दौरान सुबह-शाम मैं ‘कैलक्रिया फॉस’ की चार-चार गोलियाँ नियमित रूप से खाता रहा था।

दूसरी बात, तीन शीशियाँ सेल्फ पर सदा रखी रहती हैं। जब कभी इनकी तरफ ध्यान जाता है— हफ्ते, दो हफ्ते में एक दिन— किसी एक शीशी से चार गोलियाँ निकालकर हम खा लिया करते हैं। 

 


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रविवार, 17 दिसंबर 2023

275. इतु लक्ष्मी पूजा

एक लम्बे अन्तराल के बाद आज अपने गाँव चौलिया जाना हुआ। जाकर देखा कि चाचीजी घर में किसी पूजा की तैयारी कर रही है। पूछने पर पता चला आज संक्रान्ति है।

 





बाद में जानकारी हासिल की कि सूरज आज वृश्चिक से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करेगा। सूर्य के दक्षिणायण की यह अन्तिम संक्रान्ति है, अगली संक्रान्ति (मकर संक्रान्ति) से सूर्य का उत्तरायण शुरू हो जायेगा। सौर कैलेंडर (बंगाब्द और शकाब्द) के हिसाब से आज अग्रहायण या मार्गशीर्ष मास समाप्त हो रहा है और कल से पौष मास शुरू होगा।

गांव में आज जो पूजा होती है, जिसे “इतु लक्ष्मी पूजा” कहते हैं।

इस पूजा में जो कथा सुनाई जाती है, उसमें यह संदेश होता है कि बेटियां घर की लक्ष्मी होती हैं। पूजा में बेटियों के नाम से कलश बैठाए जाते हैं।

मन तो है कि उस कथा (दो बहनों की कहानी) को यहाँ लिखा जाय, लेकिन संक्षेप में लिखने के बावजूद वह कहानी लम्बी हो जायेगी।

विडियो में आप देख सकते हैं कि जो नए धान कटकर खेत से आए हैं, उसकी एक "अंटिया" को बाकायदे देवता या देवी के रूप में स्थापित किया गया है।

यानि यह एक पूजा नई उपज को तथा बेटियों को - दोनों को सम्मान देने के लिए है।

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बुधवार, 29 नवंबर 2023

274. यू.एस. दास

 


करीब दो महीने पहले मेरा चचेरा भाई उमा शंकर दास (Uma Das) हमारे घर आया हुआ था।

मेरे सिर पर बाल कुछ ज्यादा घने हैं। आम तौर पर 55 की उम्र के बाद ऐसे घने बाल सबके सिर पर नहीं रहते। तो भाभीजी ने मजाक में कहा - मोनू दा के सिर पर तो बहुत बाल हैं, थोड़ा सा आप ले क्यों नहीं लेते?

आज हम अपने सिर के सारे बाल उसी भाई को अर्पित कर आए। दस दिनों पहले उसका दुखद देहान्त हो गया था। फेफड़े में किसी तरह का बैक्ट्रियल इन्फेक्शन हो गया था, जिस पर किसी एंटीबायोटिक ने काम नहीं किया।

मेरा वह भाई मेरा दोस्त था, मेरा हमउम्र। उसका पुकार नाम बबलू था। असल में हम तीन कजन की तिकड़ी थी। तीसरा मेरा फुफेरा भाई है संजय राउत, पुकार नाम बापी, अभी हजारीबाग में है।

बबलू (डॉ. यू.एस. दास) पेशे से तो फिजियोथेरेपिस्ट था, लेकिन वह ऐलोपैथ, होम्योपैथ, आयुर्वेद, एक्युप्रेशर/एक्युपंक्चर, प्राकृतिक चिकित्सा, योग-चिकित्सा का भी ज्ञान रखता था। ऊँचा कद, गोरा रंग, मृदुभाषी एवं मितभाषी और सदा मुस्कुराने वाला। उसका साथ हमें बहुत पसन्द था। उसके मुकाबले बापी बहुत ही अलमस्त स्वभाव का है— बात-बात पर ठहाके लगाने वाला।

बबलू मेरा चचेरा भाई इस रिश्ते से था कि उसके दादाजी और मेरे दादाजी सगे भाई थे। हमारे पैतृक गाँव चौलिया से निकलकर जहाँ मेरे दादाजी बरहरवा में बसे, वहीं उसके दादाजी बरहरवा से 15 किमी दूर कोटालपोखर में बसे थे।चौलिया गाँव की स्थिति इन दोनों कस्बों के ठीक बीच में है।

ऊपर की तस्वीर में दिवंगत बबलू— सम्भवतः मई’2023 की तस्वीर है, उसी की फेसबुक वाल से ले रहे हैं।

नीचे की तस्वीर में बबलू का बेटा है, नाम उत्कर्ष, आज की तस्वीर।


 

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