(28 मार्च के दिन हमने फेसबुक पर निम्न पोस्ट लिखा था, बाद में ध्यान गया कि इसे ब्लॉग पर दर्ज किया जाना चाहिए।)
किसी एक पोस्ट से मुझे एक मजेदार बात याद आ गई। मेरा बेटा अभिमन्यु जब नवीं में था, तब एक शिक्षक के पास गणित का ट्यूशन पढ़ने जाता था। तब हम अररिया में थे। जाहिर है कि वे शिक्षक बिहारी ही थे। (मैं उनसे कभी मिला नहीं।)
शिक्षक ने अभिमन्यु से मेरे बारे में पूछताछ की। उन्हें पता चला कि मैं पहले भारतीय वायु सेना में था और अब भारतीय स्टेट बैंक में हूं। उनकी मजाकिया टिप्पणी थी, "अच्छा, बिहारी चाहे पक्की नौकरी।" (हालांकि हमारा साहेबगंज जिला झारखंड में आ चुका था।)
अभिमन्यु ने घर आकर कहा, "मुझे तुम कभी पक्की नौकरी के लिए नहीं कहोगे।" मैंने कहा, "ठीक है, नहीं कहेंगे।"
बाद के दिनों में (12वीं केबाद) उसने अपनी हॉबी को पेशा बनाने का फैसला लिया और उसने मल्टीमीडिया की पढ़ाई की। आज वह ग्राफिक डिजाइनर है कोलकाता में, खुद की छोटी कंपनी (moldbreaker studio) है, दोपहर तक सोता है, देर रात तक काम करता है और अपनी मर्जी के हिसाब से जीवन बिताता है।
होली में वह घर आया हुआ है। ऊपर की तस्वीर में वह दाहिने कोने पर है - लापरवाह व्यक्तित्व। बांई तरफ उसका कजन (मेरी चचेरी बहन का बेटा) है - स्मार्ट व्यक्तित्व।
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(इस अंश को अभी जोड़ा जा रहा है।)
इस साल होली में अभिमन्यु घर आया था। उसके साथ ‘टारजू’ भी आया- मेरी चचेरी बहन (मुनमुन) का बेटा यानि अभिमन्यु का कजन। दोनों की मंगेतर भी साथ थीं। मेरा भांजा ओमू भी आया- सपत्नीक, हाल ही में शादी हुई है। दो भांजियाँ भी आयीं। घर में भतीजे-भतीजियाँ तो हैं ही। यानि इस साल घर में काफी रौनक रही।
सबने खूब होली खेली। सभी मोती झरना, कन्हैया स्थान घूमने भी गये थे। एक दिन चण्डोला पहाड़ भी घूमने गये थे।
कुल-मिलाकर इस साल की होली यादगार रही।
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