पचास-पचपन की उम्र के बाद ज्यादातर लोग सिर के झड़ते बालों और पेट पर चढ़ती चर्बी से परेशान हो जाते हैं। मेरे साथ उल्टा है— हम सिर के घने बालों और पेट पर से घटती चर्बी से तंग आ गये हैं। जब कभी सर्दी-जुकाम होता है, तब लगता है कि घने (और बढ़े हुए) बालों के कारण तबियत खराब लग रही है, जल्दी से बाल कटवाने पड़ते हैं। दूसरी तरफ, पिछले कुछ समय से पेट पर से चर्बी बिलकुल खत्म हो गयी है, जिसके चलते सारी पैण्टें एकाध ईंच ढीली पड़ गयी हैं। शरीर मरियल-जैसा दिखने लगा है। ‘अण्डरवेट’ तो हम हमेशा से रहे हैं, फिर भी, 53 किलो पर मेरा वजन स्थिर रहता था। कभी-कभी 55 किलो तक भी जाता था। अब हालत यह है कि मेरा वजन 50 किलो पर या शायद इससे भी नीचे चला गया है।
सिर के घने बाल को कोई समस्या नहीं कहा जा सकता, लेकिन कम वजन से चिन्तित होना स्वाभाविक है। अभी जनवरी में रक्तदान शिविर में पता चला था कि वे लोग 50 किलो से कम वजन वाले व्यक्तियों के रक्त नहीं लेते। इसका मतलब यही हुआ कि 50 किलो से कम वजन होना कोई अच्छा लक्षण नहीं है।
दरअसल, पिछले कुछ समय से हमने खान-पान में थोड़ा-सा बदलाव किया है। नॉनवेज के शौकीन हम कभी नहीं रहे थे, अब तो दूध भी छोड़ दिये हैं। भोजन सादा होता है, मात्रा कम ही होती है और जल्दी खाना खाना होता है। (जल्दी खाने का स्पष्टीकरण: नाश्ता सुबह 8 से 9 के बीच {कायदे से, नाश्ता फलों, अंकुरित अनाजों और/या सूखे मेवों का होना चाहिए}, दोपहर का भोजन 12 से 1 के बीच और रात का खाना शाम 7 से 8 के बीच {कायदे से, 6 से 7 के बीच होना चाहिए}।) बढ़ती उम्र को देखते हुए हमने यह बदलाव किया, ताकि बीमारियों से बचे रहे। शुगर, प्रेशर, थायरायड, युरिक एसिड, किडनी, फैटी लीवर इत्यादि बीमारियों का जिक्र इतना सुनने लगे हैं कि हमें लगा, भले शरीर दुबला-पतला रहे, लेकिन बीमारियों से बचना ज्यादा जरूरी है।
वजन घटने का एक कारण यह भी हो सकता है कि पिछले कुछ समय से हम दोस्तों के साथ ‘फिटनेस क्लास’ चला रहे थे। दोस्तों का ऐसा था कि जब जिसकी मर्जी होती थी, छुट्टी कर लेता था, लेकिन मेरी रोज की कसरत हो जाती थी। इस उम्र में इतनी कसरत की जरुरत नहीं थी। हम लोग ऐरोबिक्स, कसरत, योगासन इत्यादि करते थे— 45 मिनट से लेकर 1 घण्टे तक। बीते नवम्बर से हमने इसे बन्द कर दिया। कहा— सबने सीख लिया है, अपने-अपने घर में किया करो, कम-से-कम योगासन किया करो। कोई नहीं करता। हम सप्ताह में तीन-चार दिन आधे घण्टे अपने “जय योग” (योगासन, प्राणायाम, ध्यान की एक शृंखला) का अभ्यास कर लेते हैं।
कम वजन का असर कहीं मेरे “स्टामिना” पर तो नहीं पड़ा है— इसे जाँचने के लिए हमने एक शाम छत पर “स्किपिंग” किया। ‘फिटनेस क्लास’ शुरू करने से पहले, यानि दो-तीन साल पहले कसरत का मेरा एक तरीका हुआ करता था, जिसके तहत हम लगभग 20 मिनट स्किपिंग किया करते थे, 20 मिनट फ्रीहैण्ड कसरत किया करते थे और कुछ मिनट के लिए रिलैक्सेशन कसरत किया करते थे। सप्ताह में दो-तीन दिन और साल में दो-चार महीने के लिए यह मेरा अभ्यास था। खैर, तो अचानक हमने एक शाम स्किपिंग किया यह देखने के लिए कि क्या वजन कम होने से मेरा स्टामिना भी घट गया है? स्किपिंग मेरा 5,000 स्टेप्स का हुआ करता है— 4,000 स्टेप्स सामान्य स्पीड में और अन्तिम 1,000 कुछ ज्यादा स्पीड में। इसमें कोई 20 मिनट समय लगता है और यह ‘कामचलाऊ’ ‘वार्म-अप’ है। कामचलाऊ इसलिए कह रहे हैं कि एक समय में 7 किलोमीटर की जॉगिंग मेरा वार्म-अप हुआ करता था, बाद में लगभग 3 किलोमीटर की जॉगिंग का वार्म-अप करने लगे थे और अब पचास की उम्र के बाद— 5,000 स्टेप्स की स्किपिंग के वार्म-अप से काम चला रहे थे। तो हमने पाया कि बिना साँस तेज हुए हमने आराम से 5,000 स्किपिंग कर लिया और अगली शाम (यानि 24 घण्टों बाद) जाँघों की मांसपेशियों में एक रत्ती भी दर्द का अनुभव नहीं हुआ। यानि मेरी स्टामिना पर कोई फर्क नहीं पड़ा है वजन घटने का।
तो अब हम इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि शायद 50 किलो ही मेरे लिए सही वजन है। क्योंकि हमें याद है कि पहले ऐसा होता था कि दोपहर के बाद हमें पेट फूला-फूला-सा महसूस होता था, कई बार खींचकर पेट को अन्दर करना पड़ना था, अब यह समस्या नहीं है। अब कभी भी पेट फूला-फूला-सा महसूस नहीं होता।
बात दरअसल क्या है कि मांसपेशियाँ दो तरह की होती हैं— लाल और सफेद। जो लोग मैराथन दौड़-जैसी प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं, वे दुबले-पतले— कई बार मरियल-जैसे, होते हैं। उनके शरीर में लाल मांसपेशियों की मात्रा अधिक होती है, जो उन्हें थकने नहीं देतीं। इसके मुकाबले दौड़ के स्प्रिण्ट मुकाबलों— 100 या 50 मीटर की दौड़, में भाग लेने वाले खिलाड़ी हट्टे-कट्टे, बलिष्ठ होते हैं, इनके शरीर में सफेद मांसपेशियाँ ज्यादा होती हैं। ये कुछ ही सेकेण्ड में अपनी पूरी ऊर्जा खर्च कर थक जाते हैं। ......तो हमने मान लिया कि मेरे शरीर में लाल मांसपेशियों की मात्रा ज्यादा है, जिसके कारण आज 55 से अधिक उम्र में भी हम 5-7 किलोमीटर की जॉगिंग कर सकते हैं, 5-700 मीटर की तैराकी आराम से कर सकते हैं (अभ्यास न होने पर भी बीते नवम्बर में हम एक तालाब में तैरने उतरे थे, कोई खास थकान महसूस नहीं हुई थी— इससे बड़ी बात, बाजुओं की मांसपेशियों में अगले दिन कोई दर्द नहीं हुआ था) और 5-7 किलोमीटर साइकिल चलाकर कहीं आना-जाना तो मेरे लिए आम बात है (हमारा पैतृक गाँव 7 किमी दूर है, कभी-कभार (अकेले) जाना होता है, तो साइकिल से ही जाते हैं)।
ज्यादातर शुभचिन्तक यही समझते हैं कि हमें जरूर कोई अन्दरूनी बीमारी है। ऐसा हो भी सकता है। लेकिन हम सोचते हैं कि जब हम शारीरिक-मानसिक रूप से खुद को स्वस्थ महसूस कर रहे हैं, तो किसलिए फालतू में चेकअप-वेकअप कराने जायें?
हमारी मित्र-मण्डली में एक डॉक्टर साहब हैं, जब चाहें, वे मेरा शुगर-प्रेशर चेक कर सकते हैं, लेकिन हम टाल देते हैं। वे भी चेहरा देखकर हँसते हुए कहते हैं— नहीं, आपको शुगर नहीं होगा। जब शुगर ही नहीं होगा, तो बाकी बीमारियाँ कहाँ से आयेंगी।
वायु सेना का मेरा एक दोस्त (एण्ट्रीमेट) अभी दो महीनों पहले— 57 की उम्र में— रिटायर हुआ (हमने 20 वर्षों में— 36 की उम्र में— सर्विस छोड़ी थी), उसने फोन पर बात की, पता चला, वह थायरायड, किडनी, युरिक एसिड, ब्लड-प्रेशर और शुगर की समस्याओं से ग्रस्त है। मेरे कुछ यहाँ के दोस्त भी शुगर, युरिक एसिड से ग्रस्त हैं।
अब अन्त में एक बात। जब हम वायु सेना में थे और ग्वालियर में पोस्टेड थे, तो एक बार भाई साहब ने कहा कि वहाँ उनका एक क्लासमेट भी पोस्टेड है, मैं जाकर उनसे मिलूँ। हम जाकर मिले। हमारे कस्बे के पड़ोस के ही रहने वाले थे। जब हम मिलकर लौट रहे थे, तब हम मन-ही-मन सोच रहे थे— कितने लम्बे-तगड़े हैं ये..... और एक हम हैं, कमजोर कद-काठी के। खैर, कुछ दिनों बाद फिर कभी उधर से गुजरना हुआ, तो हम उनके क्वार्टर की ओर चले गये। ताला लगा था, पड़ोसी ने बताया कि वे एम.एच. (मिलिटरी हिस्पिटल) में भर्ती हैं। बाथरूम में चक्कर आने से गिर गये थे, गहरी चोट लगी है, उनकी श्रीमतीजी भी वहीं गयी हुई हैं। हम भी एम.एच. जाकर उनसे मिले थे। लेकिन फिर हमने ऐसा सोचना बन्द कर दिया कि हम लम्बे-तगड़े क्यों नहीं हैं। लगा, यही कद-काठी ठीक है, कम-से-कम कभी चक्कर तो नहीं आता!
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