वर्षा-जल संग्रहण या रेन-वाटर हार्वेस्टिंग का अर्थ हुआ कि वर्षा-जल को नालियों में नहीं बहाना है, बल्कि ऐसी कोई व्यवस्था करनी है कि यह जल धरती के अन्दर रिस जाय। इसके तकनीकी पहलुओं की हमें जानकारी नहीं है। हमने बस अपनी कल्पना-शक्ति का इस्तेमाल करते हुए अपने 'उत्सव भवन' में इसकी व्यवस्था की है।
छत का वर्षा-जल पाईप के माध्यम से नीचे आकर एक हौज में गिरता है। हौज कुएं से सटकर बना है। हौज के फर्श पर ईंटों की चिनाई जरूर है, मगर प्लास्तर नहीं है। इसलिए हौज में कितना भी पानी गिरे, कुछ घण्टों में वह जमीन में रिस जाता है। रिसने के बाद मिट्टी से छनते हुए इस जल को फिर कुएं में ही आना है।
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विडियो में आप देखेंगे कि हौज में दो फौव्वारे लगे हुए हैं। ये भी मेरी कल्पना-शक्ति की उपज हैं। इस तकनीक के फौव्वारे हमने कहीं देखे नहीं हैं। छत पर पानी की एक टंकी से ये दोनों फौव्वारे जुड़े हुए हैं। चाबी खोलते ही फौव्वारे चालू हो जाते हैं। किसी 'मोटर' या 'पम्प' की जरुरत नहीं। इनका पानी इसी हौज में गिरता है। यह पानी फिर जमीन में रिसकर कुएं में पहुँच जाता होगा।
फौव्वारे के निर्माण में साधारण पाईप और साधारण गमलों का इस्तेमाल हुआ है। कहीं हमने ऐसा देखा नहीं है, बस सोच-विचार कर इस तरह के फौव्वारे हमने बनवा दिये हैं।
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