विजयादशमी
के दिन शस्त्र-पूजन की परम्परा है। अब एक किसान या खेतीहर मजदूर के लिए
अस्त्र-शस्त्र क्या है? बेशक, कुदाल (फावड़ा), हँसिया, तराजू इत्यादि। दूसरी जगहों
के बारे में हम नहीं जानते, पर हमारे पैतृक गाँव में इन्हीं शस्त्रों की पूजन की
परम्परा है। ऊपर जो दो छायाचित्र हैं, वे हमारे पैतृक गाँव के दो आँगनों के है।
इन्हें देखकर समझा जा सकता है कि मुख्य रुप से कृषि से आजीविका प्राप्त करने वाले
गृहस्थों के लिए अस्त्र-शस्त्र क्या होते हैं।
हमलोग
अब कृषि से प्रत्यक्ष रुप से नहीं जुड़े हैं, मगर इस पुरानी परम्परा को आज तक हमारे
घर में भी निभाया जाता है। आँगन को गोबर से लीपकर गृहस्थी के सारे हथियारों को
धोकर एक साथ रखा जाता है और उनकी पूजा की जाती है। "ढेकी" को समाप्त हुए
जमाना बीत गया (हालाँकि सुदूर ग्रामीण इलाकों में ढेकी अभी भी इस्तेमाल में है,
खासकर, सन्थाली बस्तियों में), मगर एक ओखली और मूसल हमारे यहाँ अब तक सुरक्षित है।
साल भर वह कहाँ रहता है, पता नहीं (मतलब व्यक्तिगत रुप से मुझे नहीं पता), मगर आज
के दिन वह बाहर आता है। एक दिन और बाहर आयेगा- जब नये चावल का त्यौहार
"नवान्न" मनाया जायेगा। उस दिन बाकायदे इस ओखली का प्रयोग किया जायेगा-
चावल का प्रसाद बनाने के लिए। एक परिवार है, जिसके यहाँ से हर साल मेरे भाई का एक
दोस्त "मूसल" माँगने आता है- शायद गोवर्धन पूजा के दिन। उस दिन उसके घर
में इसकी पूजा होती है।
प्रसंगवश,
बता दिया जाय कि एक छोटी चक्की तो हमारे यहाँ है ही- दाल वगैरह दलने के लिए- एक
बड़ी चक्की के दो पत्थर भी हमारे यहाँ दशकों से बेकार पड़े हुए हैं। अभी हाल ही में
मुहल्ले के दोनों आटा-मिल बन्द हो गये हैं और अन्य मिल जरा दूर के मुहल्ले में हैं।
ऐसे में हम गम्भीरता से इन बड़ी चक्कियों को फिर से स्थापित करने के बारे में सोच
रहे हैं- गेहूँ पीसने के लिए। इस बड़ी चक्की को हमारे यहाँ "जाँता" कहते
हैं।
आज
अपने पैतृक गाँव चले गये थे। पता चला, आज के दिन कभी वहाँ बैलों की छोटी-मोटी दौड़
भी आयोजित होती थी। अब नहीं होती। शायद फिर कभी शुरु हो जाय। जब पाँच साल बाद गाँव
में फिर से "चरक मेला" की शुरुआत हो सकती है (इस मेले पर दो आलेख मेरे
इस ब्लॉग में हैं), तो बैलों की दौड़ भी शुरु हो सकती है! इसी दिन धान की कीमत भी
तय करने की परम्परा थी पहले। अब नहीं है।
धान
पकने से याद आया। देश के पश्चिमी हिस्से में धान पक चुका है, फसल कट चुकी है और अब
पराली (हमारे यहाँ पुआल कहते हैं) जलाने- न जलाने को लेकर समस्या हो रही है। देश
के मध्य भाग में धान की फसल पकने लगी है- शायद एक-दो हफ्ते में कटने भी लगे। मगर
हमारे इलाके में- मेरा अनुमान है कि सारे पूर्वी भारत में अभी धान के पौधों बालियाँ
आ रही हैं। नीचे की दो तस्वीरों से अनुमान लगाया जा सकता है कि अभी धान में
बालियाँ ठीक से आयी भी नहीं हैं। हमारे यहाँ फसल कटते-कटते "अगहन" (अग्रहायण-
मार्गशीर्ष) महीना आ जायेगा। दरअसल, पूर्वी भारत की खेती अब भी "मौनसून"
आधारित है, जबकि पशिचमी भारत में सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं- इसलिए ऐसा
अन्तर है। वैसे, धान की फसल पकने का सही एवं प्राकृतिक समय "अगहन" मास
ही है, इसलिए एक युग में इसे महीने को साल का पहला महीना माना जाता था।
जब
आप चित्र देखेंगे, तो आपको उसमें स्कूटर भी नजर आयेगा। अब उस पर भी कुछ कह दिया
जाय। पहली बात, यह स्कूटी नहीं, स्कूटर है- बजाज का 'लीजेण्ड'। 150 सी.सी. का फोर स्ट्रोक इंजन है इसमें।
इसका नम्बर है- 8499। इस नम्बर को तारीख में बदलने पर तारीख बनती है- 8 अप्रैल 99
और इसे हमने सही में 1999 के अप्रैल महीने में लिया था- 5 तारीख को। यह आज भी चल
रहा है और हाल ही में इसकी मरम्मत करने वाले मैकेनिक ने स्वीकार किया कि इसकी
माइलेज गजब की है- यानि आज की नयी गाड़ियाँ भी शायद इतनी माइलेज न दे!
अन्त
में दो और तस्वीरें- श्रीमतीजी की। एक तस्वीर तलवार के साथ है- इस तलवार को हमने
अमृतसर में लिया था- स्वर्ण मन्दिर के परिसर से- एक यादगार के तौर पर। दूसरी
तस्वीर एयर गन के साथ है, इसे हमने पूर्णिया में लिया था- बेटे के जन्मदिन के
तोहफे के रुप में- जब वह छोटा था। आज शस्त्र-पूजन के लिए इन्हें भी बाहर निकाल
लिया था।
इतना
ही।
शुभ
विजयादशमी- बड़ों को चरणस्पर्श, छोटों को प्यार और हमउम्र को स्नेह।