जगप्रभा

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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

229. रेडियो-दिवस के बहाने...


https://youtu.be/QNDCpLRCZms

       पता चला कि आज विश्व रेडियो दिवस है।
       सबसे पहले तो बात पिताजी और चाचाजी की। दोनों के पास छोटे-छोटे ट्रान्जिस्टर थे- शायद जापानी। जब मेरी दोनों दीदी बड़ी हुई और दोनों ने रेडियो सुनना शुरु किया, तब शायद पिताजी ने एक रेडियो खरीदा होगा। बाद में ट्रांजिस्टर खराब हो गया, तब अक्सर घर में पिताजी की हाँक सुनायी पड़ती थी- अरे समाचार का समय हो गया, रेडियो लाओ। फिर दीदी भागकर रेडियो दे आती थी। वर्ना रेडियो पर दीदियों का ही कब्जा रहता था। पिताजी बँगला समाचार सुनते थे। हमें याद है- एक "नीलिमा सान्याल" अक्सर समाचार पढ़ा करती थीं।  पिताजी रेडियो ढाका भी सुना करते थे। हमें याद है- एक फिल्म का विज्ञापन- "धीरेन... जोखोन बृष्टि एलो..." । पिताजी ने सुधार किया- "The Rain- जोखोन बृष्टि एलो..."। यानि फिल्म का नाम था- "जब वर्षा आयी"। इसमें एक टैग जोड़ दिया गया था- "दी रेन"।
       एकबार की हमें याद है, पिताजी शाम के समय एक नया रेडियो खरीदकर लाये- मास्को ओलिम्पिक में भारत हॉकी का फाईनल मैच खेल रहा था- उसकी कमेण्ट्री सुनने के लिए। शायद पुराने रेडियो में कुछ खराबी आ गयी होगी। ...और उस साल भारत ने हॉकी में स्वर्णपदक जीता था। पिताजी खेल-कूद में गहरी रुची रखते थे- शायद ही कोई क्रिकेट कमेण्ट्री हो, जो उन्होंने न सुनी हो!
       हमें कभी रेडियो का शौक नहीं था।
       1996 में हमने आसाम के छोटे-से शहर तेजपुर में अपनी गृहस्थी की शुरुआत की थी। बहुत जरूरी कुछ घरेलू सामानों के साथ। कमरा लिया था हमने- सोनाभील टी-एस्टेट के पास सोहनलाल अग्रवाल जी के घर में। तब मनोरंजन के साधन के रुप में एक "टू-इन-वन" लेने का विचार मन में आया। तब हम अंशु को अपनी साइकिल पर बैठाकर तेजपुर शहर तक चले जाते थे- कभी-कभी। इसी तरह से हम फिलिप्स का एक टू-इन-वन खरीद लाये।
       तब हमलोग जो कैसेट सुना करते थे, उनमें से कुछ के नाम अभी भी याद हैं। "आनन्द" और "सफर" फिल्म के गाने- मुख्य संवादों के साथ। "खामोशी- द म्युजिकल"। गुलजार के संवादों के साथ उनके लिखे गाने। फिल्म "रंगीला"। राजू श्रीवास्तव का एक कैसेट, जिसमें जबर्दस्त क्रिक्र्ट कमेण्ट्री थी।
       यह टू-इन-वन बहुत दिनों तक चला। 2004-5 तक हमलोग इसमें गाने सुनते थे- कभी कैसेट, तो कभी रेडियो। रेडियो में शुरु में हमारी प्रमुख पसन्द "विविध भारती" रही।
       जब टू-इन-वन खराब हुआ, तो हमने रेडियो लिया। रेडियो एक के बाद एक करके तीन ले लिये गये, पर किसी ने बहुत लम्बे समय तक साथ नहीं दिया।
       ....जबकि 1996 का वह टू-इन-वन आज भी साथ देता है...
       अभी तक हम इसपर विविध-भारती सुनते हैं...
       इसकी आवाज की मिठास का जवाब नहीं। जब तक इसमें कैसेट बजते थे, तब तक कई मैकेनिकों ने इसके "हेड" को बदलना चाहा था- मगर हमने मना कर दिया था। इसका "हेड" 10-15 वर्षों तक बहुत मीठे स्वर में कैसेट बजाया करता था।
       इति।

1 टिप्पणी:

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