बीते शुक्रवार को एक
केंचुल मिला था, जिसकी लम्बाई 8 फीट के करीब थी- चार ईंच कम। यानि इतने लम्बे-लम्बे साँप आज भी हमारे इलाके
में हैं। हम सोचते थे कि अब बड़े-बड़े साँप हमारे इलाके से- खासकर, रिहायशी इलाके से
खत्म हो गये हैं। जंगल-पहाड़ों में होते होंगे, तो होते होंगे।
केंचुल
सही-सलामत था। यह मिला हमें रतनपुर में, जहाँ पुराने निर्माण को तुड़वा कर नये
निर्माण का काम चल रहा है।
कहते
हैं कि मोर का साबुत पंख या साँप का साबुत केंचुल मिलना सौभाग्य का सूचक होता है।
सौभाग्य वाली बात छोड़ भी दी जाय, तो आठ फीट लम्बे एक साबुत केंचुल को दुर्लभ तो
कहा ही जा सकता है। हमने इसे वहीं स्टोर में रखवा दिया। यहीं थोड़ी गलती हो गयी- या
तो उसे घर ले आना चाहिए था, या फिर, उसे किसी दराज में रखवाना था। अगली सुबह वह
केंचुल अपनी जगह से गायब था। अब अगर चूहा ले गया हो, तो उसे कुतर कर बर्बाद कर
दिया गया होगा।
अफसोस
तो हुआ कि एक दुर्लभ चीज हाथ आकर भी खो गयी- लापरवाही के चलते। गनीमत है कि एक
तस्वीर ले ली थी हमने।
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