ये दोनों तस्वीरें कल
की हैं। हमारे यहाँ के
बिन्दुधाम की। दोनों के बीच फासला सौ मीटर से ज्यादा का नहीं होगा। एक ओर पूरे ताम-झाम
एवं आडम्बर के साथ महाशतचण्डी यज्ञ की पूर्णाहुति चल रही है, तो दूसरी तरफ
धरतीपुत्र "साफा होड़" (आदिवासियों का वह समुदाय, जिसने ईसाई धर्म नहीं
अपनाया है और जो हिन्दू धर्म के बहुत-से त्यौहारों को मनाता है) निष्ठा एवं
श्रद्धा के साथ अनुष्ठान कर रहे हैं।
एक
तरफ पक्की यज्ञशाला और पक्का हवनकुण्ड है, तो दूसरी तरफ खुला आकाश और वृक्ष की
छाँव। एक हवन कुण्ड में ढेरों लकड़ियाँ स्वाहा हो रही हैं- घी के साथ; तो दूसरी तरफ
उपले के छोटे-से टुकड़े से हल्का-सा धुआँ उठ रहा है।
एक
तरफ जय श्रीराम और हर-हर महादेव का घोष हो रहा है, तो दूसरी तरफ शान्त स्वर में
भजन गाये जा रहे हैं- उनकी अपनी धुन एवं बोली में।
मैं-
एक प्रकृति एवं पर्यावरण प्रेमी होने के नाते खुद को साफा होड़ लोगों के अनुष्ठान
के करीब पाता हूँ- आप अपना पक्ष चुनने के लिए स्वतंत्र हैं।
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