जगप्रभा

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शनिवार, 24 मार्च 2018

200. पहला मोबाइल



       वर्ष 2002 या 03 की बात है। हम 'बिहटा' में थे- पटना और आरा के बीच यह कस्बा है। वहाँ वायु सेना का एक स्टेशन है। बीस वर्षों की सेवा की अन्तिम पोस्टिंग थी हमारी- 2005 में घर लौटना था।
       'सिगनल सेक्शन' से बाकी सभी सेक्शनों को खबर मिलती है- जिन्हें "सिम" चाहिए, उनके नामों की सूची भेज दी जाय। करीब सारे सेक्शन अपने यहाँ कार्यरत कर्मियों के नामों की सूची भेज देते हैं। जो ज्यादा बुद्धीमान होते हैं, वे अपना नाम दर्ज नहीं करवाते- वे हँसते हैं- ऐसे भला "सिम" मिलता है?
       यह वह समय था, जब सिम लम्बे इन्तजार के बाद मिलता था। बाहर "ब्लैक" में शायद एक-डेढ़ हजार रुपयों में सिम बिकते थे!
खैर, सिगनल सेक्शन करीब डेढ़ सौ लोगों की सूची पटना स्थित BSNL मुख्यालय को भेज देता है। सुनने में आ रहा था कि वहाँ अभी जो अधिकारी हैं, वे हमारे सिगनल अधिकारी के मित्र हैं। सच्चाई जो हो, डेढ़ सौ सिम बिलकुल वाजिब कीमत पर वायु सेना स्टेशन, बिहटा को भेज दिये जाते हैं और सिगनल सेक्शन सूची के अनुसार उन सिम को सभी सेक्शनों में भेजवा देता है।
अब सिम तो हमारे हाथ में आ गया, मगर किसी के पास मोबाइल हैण्डसेट ही नहीं है। इक्के-दुक्के के पास होगा भी तो हमें नहीं पता।
ज्यादातर लड़के उसी शाम पटना निकल जाते हैं- हैण्डसेट खरीदने के लिए। हम नहीं गये। हरियाणा के एक मित्र ने याद दिलाया- यार कुछ दिनों पहले CSD कैण्टीन में हमने हैण्डसेट देखे थे। हो सकता है, अभी भी दो-एक पीस हो। पहले वहीं चलते हैं।
हमदोनों शाम कैण्टीन पहुँचे। सही में, सैमसंग R220 के दो सेट शो-केस में पड़े हुए थे। हमने खरीद लिया। बड़े चाव से डिब्बे को खोला, खूबसूरत हैण्डसेट को निकाला। जबर्दस्त पैकिंग थी। साथ में मोटी-से पुस्तिका भी थी- हैण्डबुक। मगर हैण्डबुक कौन पढ़ता है। कैण्टीन के स्टाफ ने सेट निकाल कर उसमें बैटरी जोड़ा। अब वह उलट-पलट कर मोबाइल को "ऑन" करने के लिए स्विच ढूँढ़ने लगा। नहीं मिला। हम दोनों ने भी उलट-पलट कर देखा- यह मोबाइल आखिर ऑन कहाँ से होगा? कहीं ऑन-ऑफ स्विच नहीं था!
हम निराश हो रहे थे। तभी हरियाणा वाले मित्र को कुछ याद आया- अरे यार, जिस बटन से फोन काटते हैं, उसी को दबाने से ऑन होगा शायद। हमने देखा था किसी को ऐसा करते हुए। कितना भी तो हरियाणा दिल्ली के पास है, उसने जरुर देखा होगा। वही किया गया.... और फोन ऑन हो गया!
सिम डाला गया।
क्वार्टर में आकर घर के बेसिक फोन पर फोन लगाया, मगर अपना "मोबाइल नम्बर" नहीं बता पाया। क्योंकि हमें सिम के साथ कागज का एक टुकड़ा भी नहीं मिला था!
अगली सुबह दफ्तर में एक-दूसरे के फोन पर डायल करके सभी अपना-अपना मोबाइल नम्बर जान रहे थे। वैसे, सूची में नाम के क्रम से गणना करके एक तेज-तर्रार साथी ने पहले ही बता दिया था कि आपके नम्बर के आखिरी अंक 111 होंगे। यह सही निकला।   
आज फेसबुक ने याद दिलाया, तो यह वाकया याद आया।
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