कल के अखबार में एक दुःखद समाचार प्रकाशित हुआ था- हमारे इलाके
में कुछ ग्रामीण एक “सोंस” को मारकर खा गये।
“सोंस” एक मछली का नाम है, जो गंगा में पायी जाती
है। जब नदियाँ मुक्त होकर बहती थीं, यानि जब बाँध आदि नहीं बने थे और जब नदियाँ प्रदूषित
नहीं हुआ करती थीं,
तब इनकी संख्या बहुत रही होंगी, मगर अब इनकी संख्या दो हजार से कम है। २००९ से इसके
शिकार पर प्रतिबंध है। गंगा के एक हिस्से को (सुल्तांगंज से कहलगाँव तक का क्षेत्र)
इनके लिए आश्रयस्थली भी घोषित कर दिया गया है।
“सोंस” एक प्रकार की डॉल्फिन है। ‘विकिपीडिया’ में इसपर जो जानकारी दी गयी है, उसे मैं यहाँ साभार
उद्धृत कर रहा हूँ,
ताकि इसके बारे में जानकारी और भी लोगों तक पहुँचे:
गंगा नदी डॉल्फिन (Platanista gangetica gangetica) and सिंधु नदी
डॉल्फिन (Platanista
gangetica minor) मीठे पानी की डॉल्फिन की दो प्रजातियां हैं। ये भारत, बांग्लादेश, नेपाल तथा पाकिस्तान में पाई जाती हैं। गंगा नदी डॉल्फिन सभी
देशों के नदियों के जल, मुख्यतः गंगा
नदी में तथा सिंधु नदी डॉल्फिन, पाकिस्तान के सिंधु नदी के जल में पाई जाती है। केंद्र सरकार ने ०५
अक्टूबर २००९ को गंगा डोल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया है। गंगा
नदी में पाई जाने वाली गंगा डोल्फिन एक नेत्रहीन जलीय जीव है जिसकी घ्राण शक्ति
अत्यंत तीव्र होती है। विलुप्त प्राय इस जीव की वर्तमान में भारत में २००० से भी
कम संख्या रह गयी है जिसका मुख्य कारण गंगा का बढता प्रदूषण, बांधों का निर्माण एवं शिकार है। इनका
शिकार मुख्यतः तेल के लिए किया जाता है जिसे अन्य मछलियों को पकडनें के लिए चारे
के रूप में प्रयोग किया जाता है। एस समय उत्तर प्रदेश के नरोरा और बिहार के पटना
साहिब के बहुत थोड़े से क्षेत्र में गंगा डोल्फिन बचीं हैं। बिहार व उत्तर प्रदेश
में इसे 'सोंस' जबकि आसामी भाषा में 'शिहू' के नाम से जाना जाता है। यह इकोलोकेशन
(प्रतिध्वनि निर्धारण) और सूंघने की अपार क्षमताओं से अपना शिकार और भोजन तलाशती
है। यह मांसाहारी जलीय जीव है। यह प्राचीन जीव करीब १० करोड़ साल से भारत में
मौजूद है। यह मछली नहीं दरअसल एक स्तनधारी जीव है। मादा के औसत लम्बाई नर डोल्फिन से
अधिक होती है। इसकी औसत आयु २८ वर्ष रिकार्ड की गयी है। 'सन ऑफ़ रिवर' कहने वाले डोल्फिन के संरक्षण के लिए
सम्राट अशोक ने कई सदी पूर्व कदम उठाये थे। केंद्र सरकार ने १९७२ के भारतीय वन्य
जीव संरक्षण कानून के दायरे में भी गंगा डोल्फिन को शामिल लौया था, लेकिन अंततः राष्ट्रीय जलीव जीव घोषित करने
से वन्य जी संरक्षण कानून के दायरे में स्वतः आ गया। १९९६ में ही इंटर्नेशनल
यूनियन ऑफ़ कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर भी इन डॉल्फिनों को तो विलुप्त प्राय जीव घोषित कर
चुका था। गंगा में डॉल्फिनों की संख्या में वृद्धि 'मिशन क्लीन गंगा' के प्रमुख आधार स्तम्भ होगा, क्योंकि केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री
जयराम रमेश के अनुसार जिस तरह बाघ जंगल की सेहत का प्रतीक है उसी प्रकार डॉल्फिन
गंगा नदी के स्वास्थ्य की निशानी है।
***
मछुआरों को चाहिए कि जब
भी कोई “सोंस” उनके जाल में फँसे, तो वे उसे वापस पानी में छोड़ दें। यह एक
“विलुप्तप्राय” जलीय जीव है, यह हमारे देश का “राष्ट्रीय” जलीय जीव है। इसे न मारा
जाय। नहीं तो यह प्राणी विलुप्त हो जायेगा।
मॉरिशस में एक पक्षी पाया जाता था, जिसे “डोडो” कहा जाता
था- उसके सरल स्वभाव के कारण। उसके खात्मे का दाग “डच” लोगों पर लगा हुआ है। डच
लोगों ने इतना मारकर खाया उसे कि वह पक्षी धरती से विलुप्त ही हो गया।
ऐसा कोई दाग हम गंगा किनारे रहने वालों पर- खासकर भागलपुर से
साहेबगंज के बीच के इलाकों के- न लगे।
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नीचे की तस्वीर बाँग्लादेश की है-
...और यह दर्दनाक तस्वीर आसाम से है-
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