आज टॉमी गुजर गया।
बहुत अफसोस हो रहा है। नन्हा-सा पिल्ला था वह। कुछ ही रोज पहले हमारे
परिवार का सदस्य बना था। छोटा भाई लेकर आया था उसे। बता रहा था, अच्छी नस्ल का था। उसका स्वभाव
था भी बहुत अच्छा। हर वक्त खेलने के मूड में रहता था। सबके साथ खेलता था, सबके पैरों से लिपटता फिरता
था। आस-पास के दर्जन भर बच्चों का तो वह दोस्त बन गया था! कुल-मिलाकर, बहुत ही प्यारा था।
कल थोड़ी-सी गलती हो गयी, वह शाम के धुंधलके में बाहर
निकल गया। लौटा,
तो
सिर से खून बह रहा था। अब दुर्घटना हुई, या किसी ने पत्थर से मार दिया, पता नहीं। सेवा की गयी, दवा लगाई गयी, मगर आज वह चल बसा। कुछ ही
दिनों में सबका मन बहलाकर, सबका दिल जीतकर वह चला गया।
संयोगवश, परसों रात ही वह खेलते हुए मेरे पास आ गया था। हम अलाव
जलाकर हाथ सेंक रहे थे। मैंने उसे गोद में बिठाकर उसका गला सहलाया, वह प्यार से लेट गया मेरी
गोद में। कुछ देर में जब वह उतरा, तो पास ही में अलाव की गर्मी सेंक रहे बिल्ली के दोनों
बच्चों को खेलने के लिए बुलाने लगा; मगर बिल्ली के बच्चे- चिंटू-पिंटू- उसके साथ खेलने के लिए
राजी नहीं हुए। (विडियो)
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लगता है, एक दूसरा पिल्ला जल्दी ही घर लेकर आना होगा- तभी सबका मन
ठीक होगा। इसके पहले जब हमारा रोमियो (बिल्ली का बच्चा) चल बसा था, तब भी हमलोग उदास हुए थे।
बाद में जब रोमियो-जूलियट के रुप में दो बच्चों को फिर लेकर आये, तब सबका मन बहला। (पहला रोमियो
खुद ही घर में आ गया था।) बड़े होने पर दूसरा रोमियो घर छोड़ गया- यह बीते मार्च की बात
है- तब हमलोग दस दिनों के लिए बाहर गये हुए थे। आठवें दिन वह घर छोड़ गया था। बाद में, बीते अक्तूबर में जूलियट
ने दो बच्चों को जन्म दिया- ऊपर चिंटू-पिंटू के रुप में उन्हीं का जिक्र हुआ है।
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टॉमी का रंग हल्का भूरा था। इसके पहले हमारे घर में जितने भी कुत्ते रहे
हैं- सब काले रंग के रहे हैं और सबका नाम भी एक ही रहा है- “झिमी”। यह टॉमी अपवाद था-
रंग अलग था और कोई इसे “झिमी” पुकारने के लिए तैयार नहीं था। सोच रहा हूँ, इस बार काले रंग का ही पिल्ला
फिर लाया जाय और उसे “झिमी” ही पुकारा जाय।
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पहला “झिमी” एक सन्थाली कुत्ता था। पिताजी एक मॉर्निंग वाक से उसे
घर लाये थे। माँ बहुत बिगड़ी थी कुत्ते को देखकर, पर खाना भी वही खिलाती थी।
इधर रोमियो को घर में देखकर श्रीमतीजी भी बिगड़ी थी, मगर बेटे अभि के कारण उसे
घर में रखना पड़ा, अब
ऐसा है कि श्रीमतीजी इन बच्चों से बातचीत भी करती है! वे भी म्याऊँ ऐसे बोलते हैं, मानो ‘माँ’ बोल रहे हों!
दूसरे-तीसरे “झिमी” की कोई खास बात नहीं थी, मगर अन्तिम “झिमी” अपनी उम्र
पूरा नहीं कर पाया था। इस पिल्ले को उत्तम हमारे घर में छोड़ गया था- उसके घर में कुछ
दिक्कत हुई थी। साल भर में ही यह शानदारा गबरू कुत्ता बन गया था। एक रात वह कहीं से
अपना एक पैर कटवा आया। सेवा की गयी- याद है कि सबसे ज्यादा सेवा बड़े भाई ने की थी।
ठीक होने के बाद भले वह तीन पैरों पर चलता था, मगर उसका गबरूपन बरकरार था।
इसी दौरान मुझे नौकरी के सिलसिले में बाहर जाना पड़ा (२००८ में अररिया जाना पड़ा था), और हमें न देखकर “झिमी” परेशान
हो गया था। उसने किसी पलतू बकरे का कान काट लिया था और बदले में कुछ लोगों ने उसे मौत
के घाट उतार दिया। तब से, यानि २००९-१० से कोई कुत्ता हमारे घर नहीं लाया गया था।
कुछ दिनों पहले यह टॉमी ही आया था, जो सबका दुलारा बन गया था।
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अगर कोई कुत्ता अब घर आया, तो यहाँ ‘पुनश्च’ के रुप में उसकी जानकारी
दे दूँगा।
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