क्या आपने कभी रामप्रिय मिश्र "लालधुआँ" का नाम
सुना है?
यह सवाल हम इसलिए पूछ रहे हैं कि हमने अपने बचपन में बाल-गीतों
की एक पुस्तिका पढ़ी थी, जिसके रचयिता रामप्रिय मिश्र "लालधुआँ" जी थे। पुस्तिका का नाम था-
"बात-बात में बात"। पुस्तिका आयताकार थी- लैण्डस्केप। आवरण पर बड़े-बड़े
कुछ फूल अंकित थे, जिनके बीच बच्चों के चेहरे उकेरे हुए थे। कोई दर्जन भर कवितायें
थीं इस संग्रह में- सभी चार-चार पंक्तियों की। हर कविता के साथ रेखाचित्र भी बने
हुए थे।
आज एक जमाने बाद जब याद करने की कोशिश करते हैं, तो पहली और
आखिरी कविताओं के साथ बीच की सिर्फ दो ही कवितायें याद आ रही हैं।
गूगल पर जानना चाहा, तो बिहार की एक साहित्यिक संस्था की वेबसाइट
पर कुछ कवियों के साथ-साथ रामप्रिय मिश्र "लालधुआँ" का जिक्र मिला।
उन्हें "महाकवि" कहकर सम्बोधित किया गया था। जाहिर है, वे प्रसिद्ध कवि
रहे होंगे। पर अफसोस, कि नेट पर उनपर और कोई जानकारी हम नहीं ढूँढ़ पाये। उन कविताओं
को तो शायद ही कभी खोज निकाल सकें।
भूमिका में कवि ने लिखा था कि हर कविता किसी-न-किसी मुहावरे पर आधारित
है, मगर बच्चे बिना उन मुहावरों को समझे इन कविताओं को गुनगुनायेंगे। जब वे कुछ
बड़े होंगे, तब वे इन कविताओं में छुपे मुहावरों को समझेंगे।
खैर, तो पहली कविता इस प्रकार थी-
"चाँद खटोले चरखा लेकर
बुढ़िया काते सूत,
उस बुढ़िये को देख चहकता
चिड़िये तक का पूत।"
***
आखिरी कविता थी-
"धरती गोल घूमकर देखा
मगर न पाया भेद,
चौड़ी दरी के नीचे
मुन्ना पाया गेन्द।"
***
जैसा कि मैंने कहा, बीच की भी दो कवितायें मुझे याद आ रही हैं-
"खा लो भैया चना-चबेना
पी लो गंगा नीर,
कभी किसी दिन याद करोगे
थी गरीबी में पीर।"
***
"गुरूजी गुड़ तो चेला चीनी
ये चीनी के पेड़,
छोड़ पढ़ाई तब से अब तक
चरा रहे हैं भेड़।
***
एक कविता ऐसी है, जो आधी याद आ रही है-
"एक ताल में नयी मछलियाँ
बगुला भगत पुराने,
...............................
....................................... ।
***
और एक ऐसी भी है, जिसकी एक ही पंक्ति याद है-
"कौआ राम करम के खोटे
.......................,
...............................
........................................ ।"
***
अन्त में, स्वाभाविक रुप से यही कहना चाहेंगे हम कि अगर किसी
महानुभाव के पास "लालधुआँ" जी के बारे में कुछ जानकारी हो, तो वे कृपया
उसे सबके समने लायें और अगर "बात बात में बात" की सारी कवितायें कोई
सामने ला सके, तो यह सोने पे सुहागा वाली बात होगी...
इति।
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