मेरे इस ब्लॉग में क्रमांक 141 में एक आलेख है-"रोमियो"। इसमें बिल्ली के उस बच्चे का जिक्र है, जो मई'15 में हमारे घर
में आकर रहने लगा था और अभिमन्यु से कुछ ज्यादा ही हिल-मिल गया था। यह हिलना-मिलना
कुछ ज्यादा ही हो गया था। इतना कि अगस्त में जब अभिमन्यु कोलकाता चला गया, तब वह शायद
अवसाद से ग्रस्त हो गया और कुछ ही दिनों के अन्दर ही चल बसा था। तब अंशु बहुत रोई
थी।
अभिमन्यु अक्सर फोन पर
रोमियो का हाल-चाल पूछता था और अंशु उसे झूठा हाल-चाल बताती थी। कुछ दिनों बाद जब
अभिमन्यु घर आया, तो मैं उसे लेने स्टेशन पर गया था। ट्रेन से उतरकर उसने सबसे
पहले यही कहा था कि बाजार होकर घर चलते हैं- रोमियो के लिए चिकन लेते हुए। हमने
कहा था- पहले घर चलो। घर आने के बाद उसे बताया गया कि रोमियो नहीं रहा।
दिसम्बर में अभिमन्यु
फिर घर आया था। इस बार वह बिल्ली के बच्चों का जोड़ा लेकर आया। बहुत ही नन्हे बच्चे
थे। अंशु ने एक-डेढ़ महीने तक उन्हें ड्रॉपर से दूध पिलाया। चूँकि ये दो थे, इसलिए
अभिमन्यु से हिलने-मिलने के बजाय आपस में खेलने में ज्यादा मस्त रहते थे।
अब तो ये करीब छह महीने
के हो गये थे। हमें लगा, बड़े हो रहे हैं, तो इन्हें इनकी स्वाभाविक स्वछन्दता
मिलनी चाहिए और अब ये रात में बाहर जाने-आने लगे थे। आम तौर पर 'रोमियो' ही बाहर
जाता था। 'जुलियट' घर में रहना ही पसन्द करती थी। हाँ, इस बार भी बिल्ले का नाम
'रोमियो' ही रहा। बिल्ली को 'जुलियट' नाम दिया गया। हालाँकि अंशु उन्हें
चुन्नू-मुन्नी कहती थी।
कभी-कभार जुलियट भी रात
में बाहर जाती थी, मगर वह प्रायः भोर में बिस्तर के आस-पास चक्कर लगाने लगती थी।
फिर अंशु उसे मच्छरदानी के अन्दर लाकर अपने बगल में सुलाती थी।
वही जुलियट आज सुबह नहीं
लौटी।
जब रोमियो को मछली दी
गयी, तो उसने खाने से इन्कार कर दिया। जबकि मछली के भक्त थे ये दोनों। कई कोशिशों
के बाद भी जब उसने कुछ भी नहीं खाया, तब मेरे कान खड़े हुए कि जरुर जुलियट के साथ
कुछ बुरा हुआ है और या तो रोमियो ने यह घटना देखी है, या फिर उसे आभास हो गया है!
जुलियट के इन्तजार आज का
सारा दिन बीत गया, मगर वह नहीं लौटी। पता नहीं, क्या हुआ होगा उसके साथ। रोमियो ने
दिन भर कुछ नहीं खाया। अभी रात में उसने थोड़ा दूध पीया, मगर बगल में पड़ी मछली को
उसने देखा तक नहीं। अंशु को रह-रह कर रोना आ रहा है। अभिमन्यु को इस पोस्ट के
माध्यम से पता चल ही जायेगा। वैसे, अब वह इनका ज्यादा हाल-चाल नहीं पूछता था, मगर
अफसोस तो उसे होगा ही। कल ही वह घर आ रहा है... और आज यह घटना घट गयी...
काश कि कल भोर में
जुलियट की म्याऊँ से हमारी आँखें खुले...
***
पुनश्च (19.5.2016):
कल रात एक प्यारी-सी बच्ची "हनी" ने बड़े भोलेपन से
जुलियट के बारे में कहा था- "कल आ जायेगी।" पता नहीं क्यों, मुझे भी
उसकी बात पर भरोसा हो गया था। और सचमुच आज सुबह पाँच बजे जब अंशु सीढ़ी घर में गयी,
तो वहाँ जुलियट मौजूद थी! वह कहाँ से आयी, कब आयी, कैसे आयी, पता नहीं, मगर उसे
गोद में लेकर अंशु ने मुझे यह खबर दी। तब मैं बिस्तर पर ही था।
ऊपर वाले की मेहरबानी, शुभचिन्तकों की दुआ और "हनी" की
बात से आखिरकार वही हुआ-
...जुलियट के लौटने की खबर के साथ मेरी आँखें खुली।
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