सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

155. जीवाश्म!


       दोनों चित्रों में जो पत्थर दिख रहा है, वह सम्भवतः "जीवाश्म" है। जीवाश्म भी ऐसा-वैसा नहीं, किसी डायनासोर की हड्डी का!
       यह पत्थर मेरे पास सालभर से ज्यादा समय से रखा हुआ है; ये दोनों चित्र भी कम्प्यूटर के मेरे 'ड्राइव' में लम्बे समय से पड़े हैं; मगर इनपर लिखने का मुहुर्त निकल ही नहीं रहा था। आज पता नहीं कैसे, इस पर लिख रहा हूँ।
       आप सोचेंगे यह भला मुझे कैसे मिल गया? थोड़ा-सा धीरज रखिये, सिरे से बताता हूँ।
       हमारे सन्थाल-परगना में जो राजमहल की पहाड़ियाँ हैं, उनके बारे में कहा जाता है कि ये "जुरासिक काल" की हैं- यानि करोड़ों साल पुरानी। जाहिर है, यहाँ कभी डायनासोर या उस-जैसे  विशालकाय प्राणी भी रहते होंगे। आज उन प्राणियों की बची-खुची हड्डियाँ पत्थरों में तब्दील हो चुकी होंगी। अँग्रेजों के जमाने से ही यहाँ पत्थर-खनन का व्यवसाय चल रहा है। पिछले कुछ दशकों में खनन का यह व्यवसाय अन्धाधुन्ध तरीके से चल रहा है। इस लूट में सभी शामिल हैं- ऊपर से नीचे तक। एक न्यायाधीश महोदय ने थोड़ी-सी रुची क्या दिखायी इस अवैध व्यवसाय को नियंत्रित करने में, उनका तबादला ही हो गया!
       खैर, तो ज्यादातर जीवाश्म पत्थरों के रुप में यहाँ से निकलते जा रहे हैं; फिर भी, साहेबगंज जिले के मँडरो नामक स्थान में एक इलाके को जीवाश्म (फ़ॉसिल) पार्क के रुप में चिह्नित कर दिया गया है। मैंने उस मँडरो नामक स्थान से मात्र पाँच किलोमीटर इधर एक कस्बे में प्रायः दो साल तक जाना-आना किया, मगर अफसोस, कि उस फॉसिल पार्क को देखने कभी नहीं गया!
       मैं जहाँ जाता था, उस स्थान का नाम भगैया है। यहाँ तशर (रेशम) के कपड़े की बुनायी का काम अच्छे-खासे पैमाने पर होता है। कभी इस पर भी लिखने का मुहुर्त निकलेगा- क्योंकि इस कुटीर उद्योग से जुड़ी कई तस्वीरें मेरे पास पड़ी हुई हैं।
       खैर, तो भगैया के ही प्रवीण जी ने एक रोज दफ्तर में अचानक पत्थर का यह टुकड़ा मेरे सामने रख दिया था और मुस्कुराते हुए पूछा था, "बताईये तो यह क्या है?"
       मैंने कई बार अखबारों में मँडरो के फॉसिल पार्क के बारे में पढ़ा था। सो, मैंने अनुमान लगाया कि जरुर यह उसी पार्क से लाया गया पत्थर होगा और मैंने इत्मीनान से उत्तर दिया- "डायनासोर की हड्डी!"
       प्रवीण जी ने समर्थन किया और बताया कि अब वहाँ घेरेबन्दी कर दी गयी है और अब वहाँ से कोई ऐसे पत्थर उठाकर नहीं ला सकता।
       पत्थर बहुत दिनों तक मेरे पास पड़ा रहा। एक दिन मैंने अभिमन्यु से तस्वीर खींचने को कहा। उसने कहा क्या करना है इस पत्थर की तस्वीर का। तब मैंने उसे बताया कि यह पत्थर किसी डायनासोर का जीवाश्म हो सकता है... । वह रोमांचित हो गया। फिर उसने गहराई से निरीक्षण किया और समर्थन किया कि हाँ, यह जीवाश्म ही है!

       खैर, बढ़िया आलेख तो नहीं ही बन सका, जैसा भी बना, उसे लिखकर आज प्रस्तुत कर रहा हूँ। 

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