5 मार्च
को सुबह 9 बजे फेसबुक पर लिखा:
एक वो भी दिन हुआ करते थे, जब हफ्ता भर पहले से ही होली के
गीत- जोगीरा किस्म के- यहाँ-वहाँ बजने लगते थे! खासकर, पिचकारी-रंगों की दूकानों में, ट्रक-जीपों में...
...एक यह भी दिन है कि आज होलिका दहन
है और अभी तक कानों में कहीं से भी जोगीरा-सा-रा-रा- की आवाज नहीं टकरायी।
मैं ढोल-मंजीरा के साथ होरी गाने
की बात नहीं कर रहा हूँ- इस परम्परा के खत्म हुए दशकों हो गये... मैं तो कैसेट- अब
सीडी- वाले गानों की बात कर रहा हूँ...
..क्या करुँ, खुद ही कम्प्यूटर पर गाना बजा रखा
है- "रंग बरसेला हो... महीनवा आइल फागुन के..."
उसी
दिन दोपहर 1 बजे लिखा:
इस पोस्ट को लिखने के बाद यही बात
मैंने बिनय (बिनय भगत- वह मेरा लंगोटिया दोस्त है- फेसबुक वाला वर्चुअल दोस्त
नहीं) से बतायी। उस वक्त वह
अपनी माइन्स में था। बोला, थोड़ी देर में तुमसे मिलते हैं। घण्टेभर बाद पहाड़ से आकर वह "मुन्शी पोखर पटाल"
(-इसे सिर्फ बरहरवा वाले ही समझेंगे, कोई और नहीं) पर मिला। राजन जी भी
वहीं थे। बिनय ने बताया
कि जोगीरा गाने वालों से बात हो गयी है- शाम को वे लोग गाते-बजाते निकलेंगे- हो
सका तो एक "जानी" भी होगा साथ में (अगर आप बिहार-यूपी के हैं, तो "जानी" समझ ही रहे होंगे, वर्ना छोड़िये, क्या कीजियेगा
जानकर) और वे लोग देर रात तक ढोल-मंजीरे के साथ होरी-फाग गायेंगे. थोड़ा खर्चा है, जुगाड़ करना
पड़ेगा। और कुछ लोगों को खबर कर देना है ताकि हुजुम बना रहे। वे लोग बिनय के
घर में तीन-चार बजे आ जायेंगे, 5 बजे उत्तम के घर
से काफिला निकलेगा और रात स्टेशन चौक या सार्वजनिक मन्दिर पर बैठकर गाना-बजाना
होगा। एक अरसे बाद यह पुरानी परम्परा फिर शुरु होगी... देखा जाय कैसा
रहता है...
6
मार्च को सुबह 7 बजे फेसबुक पर:
एक जमाने में हमारे बरहरवा में
होलिका की शाम "महामूर्ख सम्मेलन" हुआ करता था, जिसमें सारे बरहरवा के दिग्गज (गणमान्य) लोग शामिल होते थे, उपाधियाँ बाँटी जाती थीं,
मानपत्र (बेशक, भोजपुरी में) पढ़ा एवं प्रदान किया जाता था और एक से बढ़कर एक
चुटकुले लोग अपने-अपने अन्दाज में सुनाया करते थे. हँसते-ठहाका लगाते लगाते पेट
में बल पड़ जाया करते थे।
एक और खास चीज होती थी- नामी
गिरामी लोगों के नामों के सामने हास्य/व्यंग्य/कटाक्ष वाली पंक्तियाँ/मुहावरे/गाने
के बोल लिखकर उन्हें पढ़कर सुनाना। कई बार इसकी प्रतियाँ बाकायदे दीवारों
पर चिपकायी भी जाती थी- रातों-रात। होली की सुबह
उठते ही लोगों की नजर इनपर पड़ती थी और वे इन्हें पढ़कर मजे लिया करते थे। सच पूछिये
तो उन दिनों लोगों को इन्तजार रहता था इसका कि किसपर कैसी फब्ती कसी गयी है!
वास्तव में "होली"
मनाने का उद्देश्य ही है- अपने अन्दर के कचरे को निकाल बाहर करना।
किसी को गाली देने का मन सालभर से है,
तो दे डालो- अब उसे
समझना चाहिए कि आखिर किस बात के लिए यह गाली मुझे मिल रही है।
समझदार होगा तो समझ ही जायेगा और खुद को सुधार लेगा।
किसी को पसन्द करते हो, तो होली के बहाने जता ही दो- उम्र
को मारो गोली- फागुन भर बुड्ढे भी देवर लगते हैं।
जैसे खजुराहो मन्दिरों की बाहरी
दिवारों पर कामकला की एक से बढ़कर एक मूर्तियाँ बनी हैं, इन्हें जी भर के देख लेने के बाद ही लोग गर्भगृह में प्रवेश करते
हैं- देवता के सामने. (यह और बात है कि अब एक को छोड़ बाकी मन्दिरों में पूजा नहीं
होती)। आखिर सन्देश क्या है इस व्यवस्था
के पीछे? यही न कि ईश्वर के सामने जाने से
पहले हम अपनी जिज्ञासायें/लिप्सायें मिटा लें,
ताकि ईश्वरभक्ति के समय
मन न भटके।
तो होली का सन्देश भी कुछ ऐसा ही
है कि मन की बुरी भावनाओं को निकाल फेंकने की पूरी आजादी है।
जिनके पैर छूते हो, उसे भी आज बुरा-भला कह सकते हो-
बशर्ते कि वाकई उस आदमी में कुछ कमी हो।
अगर राजनीति की बात करें, तो देश के सारे प्रधानमंत्रियों पर होली पर तंज कसे जा सकते हैं, व्यंग्यवाण चलाये जा सकते हैं,
मगर "लाल बहादुर
शास्त्री" पर नहीं- क्योंकि उनमें कोई कमी ही नहीं थी! इसी प्रकार, आप गाँधी पर चुभती हुई पंक्तियाँ रच सकते हैं, मगर "सुभाष" पर नहीं,
क्योंकि सुभाष में कोई
कमी थी ही नहीं।
खैर, अब भी व्यंग्य दोहे रचने की परम्परा बनी हुई है. अब गुलाम कुन्दनम साहब
(रोहतास) ने ऐसे ही राजनीतिक दोहे फेसबुक पर डाले हैं- जो जोगीरा की शैली में है।
उनका आनन्द आप भी लें- बुरा न मानो होली है:
राजनितिक जोगीरा
1) अड़ही देखलीं गड़ही देखलीं , देखलीं सब रंगरूट
बड़ नसीब साहेब के देखलीं , बेचत आपन सूट ..... जोगीरा सा रा रा रा
जल जमीन जंगल के खातिर , अध्यादेशी रूट
संसद बइठि बात पगुरावे , साहब बेचें सूट ......जोगीरा सा रा रा रा
2) भइंस बिआइल पाड़ी पड़रू ,गाय बिआइल बाछा
भयल विकसवा पैदा पल्टू , खोल पछोटा नाचा ........जोगीरा सा रा रा रा
3) कौन दुल्हनिया डोली जाए, कौन दुल्हनिया कार
कौन दुल्हनिया झोंटा नोचे, नाम केकर सरकार .... जोगीरा सा रा रा रा
संघ दुल्हनिया डोली जाए , कारपोरेट भरि कार
धरम दुल्हनिया झोंटा नोचे , बउरहिया सरकार ....जोगीरा सा रा रा रा
4) चिन्नी चाउर महंग भइल , महंग भइल पिसान
मनरेगा क कारड ले के , चाटा साँझ बिहान .....जोगीरा सा रा रा रा
का करबा अमरीका जाके , का करबा जापान
एम डी एम क खिचड़ी खाके , हो जा पहलवान .....जोगीरा सा रा रा रा
5) इक रुपया में चार चवन्नी , चारो काटें कान
बुलेट ट्रेन में देश चढ़ल बा , परिधानी परधान ....जोगीरा सा रा रा रा
6) कौन देस के लोहा जाई , कौन देस अलमुनिया
आ कौन देस में डंडा बाजी , कौन देस हरमुनिया ..... जोगीरा सा रा रा रा
चीन देस के लोहा जाई , अमरीका अलमुनिया
आ नियामतगिरि में डंडा बाजी , संसद में हरमुनिया ....जोगीरा सा रा रा रा
7) केकरे खातिर पान बनल बा , केकरे खातिर बांस
केकरे खातिर पूड़ी पूआ , केकर सत्यानास...... जोगीरा सा रा रा रा
नेतवन खातिर पान बनल बा , पब्लिक खातिर बांस
अफ़सर काटें पूड़ी पूआ , सिस्टम सत्यानास .... जोगीरा सा रा रा रा
8 मार्च को, यानि आज:
झूमर
होलिका (5 मार्च) की शाम जोगीरा गाने वालों का काफिला निकला
तो था, मगर "जानी" का इन्तजाम नहीं हो सका- कहा गया कि इसके लिए दो
दिनों पहले बात करनी चाहिए थी। मामला वैसा जमा
तो नहीं, फिर भी, बरहरवा के बाजार में वर्षों बाद होलिका की शाम मृदंग ("नाल")
पर थाप पड़ी। बहुत सारे रसिया जुटे। "सम्मत" (होलिका दहन) पर कुछ गानों
के साथ यह कार्यक्रम रात साढ़े दस बजे खत्म हुआ। जैसा कि रामेश्वर जी ने बताया, ये
लोग झूमर गा रहे हैं। बाकी रसिया लोग बीच-बीच में जोगीरा के दोहे भी जोड़ रहे थे। तय
हुआ है, अगले साल ठीक से इन्तजाम किया जायेगा।
होली
होली (6
मार्च) तो वैसी ही रही, जैसी हर साल होती है। अशोक ने अपने घर के बाहर भारी-भरकम
म्युजिक सिस्टम के साथ खाने-पीने का इन्तजाम कर रखा था। नया बस यही रहा कि इस बार
हमारा एक पुराना दोस्त सतनाम आया हुआ था दिल्ली से।
इमली बड़ा
जैसे
उत्तर-प्रदेश में होली पर घरों में "गुझिया" जरुर बनता है, वैसे, हमार्व
इलाके में पूआ-पूरी के साथ "दही-बड़ा" जरुर बनता है। हमारे घर में
दही-बड़े के साथ-साथ "इमली-बड़ा" जरुर बनता है। जो भी खाता है, वह इसकी
तारीफ किये बिना नहीं रह सकता।
दु:खद
घटना
होली की
दुपहर एक दु:खद घटना घटी- एक आपराधिक छवि वाले युवक ने मेन रोड पर एक अन्य युवक को
घायल कर दिया- बोतल सिर पर मारकर। बताया जा रहा है कि घायल की स्थिति गम्भीर है-
उसे पहले चन्द्रगौड़ा फिर रात में कोलकाता ले जाया गया है।
ऐसी ही
बातों से होली बदनाम होती है... और बहुत-से लोग होली खेलना छोड़ देते हैं...
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