भूपेन हाजारिका ने गंगा से पूछा था- ओ गंगा, तू बहती क्यों है?
गीत के बोल तो याद नहीं, पर ऐसे ही कुछ थे कि तेरे तटों पर बसने वाले इतना कष्ट,
इतना दुःख, इतना दर्द सहते हैं और तू है कि इन सबसे बेखबर, चुपचाप अपनी ही धुन में
अविरल बहती रहती है... क्यों?
आज मैं गंगा से उल्टा सवाल पूछना चाहता हूँ- ओ गंगा, तू बहती
क्यों नहीं?
***
बीते सप्ताहान्त (शनि, रविवार) मैं फरक्का से करीब छ्ह किलोमीटर
दूर जाफरगंज में था- छोटी दीदी के घर।
अभिमन्यु की भी इच्छा थी गंगा में नहाने की। गंगा के जिस घाट पर हम नहाने गये,
वहाँ से फरक्का बराज एक क्षितिज की तरह नजर आ रहा था- करीबन 5 किलोमीटर दूर। गंगा
क्या थी, बस पानी की पतली-सी धार थी, जिसमें कोई प्रवाह नहीं था। बाकी सारा
हिस्सा- कोई दो किलोमीटर चौड़ा- सफेद बालू का रेगिस्तान था।
गंगा की यह निश्चल स्थिति, जो कि फरक्का
बाँध के कारण हुई है, देखकर ही मेरा मन आज अभी कहना चाहता है- गंगा, तू बहती क्यों
नहीं?
तू इस वर्षा ऋतु में अविरल बह; उन्मुक्त
होकर बह; उन्मत्त, उत्ताल होकर बह; उद्दण्ड, उच्छृंखल होकर बह; बहा ले जा इस बार
तू कंक्रीट और लोहे के इन बाँधों को...
याद कर, तेरी छोटी बहन अलकनन्दा गत वर्ष
कैसे बहा ले गयी थी कंक्रीट तथा लोहे के निर्माणों को...
ओ गंगा,
अब और सहनशील मत रह... तेरी सन्तान तेरा दम घोंटने की योजना बना रही है...
उत्तराखण्ड में तुझपर और तेरी सखियों पर 100 से ज्यादा बाँध बनने वाले हैं... तुझे
मार डालेंगे ये दोपाये... तू और बर्दाश्त मत कर गंगा... तेरी बहन यमुना को तो
इनलोगों ने मार ही डाला है... तू मत मर गंगा, तू बर्दाश्त मत कर, विद्रोहिनी बन
जा, विपाशा बन जा, तू इस साल प्रलय बन जा, रौद्र रुप धारण कर ले इस साल तू
गंगा...
इस बरसात में तू उत्ताल हो जा, उद्दण्ड हो
जा, बहा ले जा इन बाँधों को.. टिहरी से लेकर फरक्का तक हर बाँध को बहाकर समुद्र
में मिला दे... इसी के साथ बह जायेगी सारी गाद, जो इन बाँधों के कारण जमा हो गयी
है तेरे पेट में, इसी के साथ बह जायेगा सैकड़ों नगरों का मल-जल, जो तुझमें घुल गया
है, इसी के साथ बह जायेंगे हजारों फैक्ट्रियों के रासायनिक कचरे, जो तेरे अन्दर
विष भर रहे हैं...
एकबार, बस एकबार इन बाँधों को तू तोड़ दे
गंगा, फिर तू वैसे ही बहने लगेगी, जैसे सहस्राब्दियों से बहती आयी है.. कल-कल,
अविरल, निश्छल... फिर तुझमें कभी कोई प्रदूषण ठहरेगा ही नहीं...
गंगा, तू सुन रही है न.. वर्षा ऋतु बस आने
ही वाली है.. सोच ले, इस साल तुझे बहाकर ले जाना ही होगा इन बाँधों को... मोह-माया
त्याग दे, सहनशीलता त्याग दे, माँ की ममता भी त्याग दे...
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